मन दुछत्ती पर अक्सर छिपाती हूँ
अनगिनत ऊँघती उमंगों की चहचाहट
एहसास में भीगे सीले से कुछ भाव
उड़े-से रंगो में लिपटी अनछुई-सी
बेबसियों का अनकहा-सा ज़िक्र
व्यर्थ की उपमा पहने दीमक लगे
भाव विभोर अकुलाए-से कुछ प्रश्न
ढाढ़स के किवाड़ यवनिका का आवरण
कदाचित शालीनता के लिबास में
ठिठके-से प्रपंचों से दूर शाँत दिखूँ
ऊँघते आत्मविश्वास का हाथ थामे
उत्साह की छोटी-छोटी सीढ़ियों के सहारे
अनायास ही झाँक लेती हूँ बेमन से
कभी-कभार मन दुछत्ती के उस छोर पर
उकसाए विचार चेतना के ज्वार की सनक में
स्वयं के अस्तित्त्व को टटोलने हेतु।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
अनायास ही झाँक लेती हूँ बेमन से
जवाब देंहटाएंकभी-कभी मन दुछत्ती के उस छोर पर
उकसाए विचार चेतना के ज्वार की सनक में
स्वयं के अस्तित्त्व को टटोलने हेतु।
..बहुत खूब!
सादर आभार आदरणीय दी।
हटाएंसादर
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (20-01-2021) को "हो गया क्यों देश ऐसा" (चर्चा अंक-3952) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
उड़े-से रंगो में लिपटी अनछुई-सी
जवाब देंहटाएंबेबसियों का अनकहा-सा ज़िक्र
व्यर्थ की उपमा पहने दीमक लगे
भाव विभोर अकुलाए-से कुछ प्रश्न...
मन में उठते भावों को बहुत खूबसूरती से सृजित किया है आपने.. बेहतरीन और लाजवाब सृजन ।
दिल से आभार प्रिय दी।
हटाएंसादर
सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया अनुज।
हटाएंसादर
वाह बहुत खूब, शानदार विषय "दुछत्ती" जो कि घर के कितने वांछित अवांछित समान को खुद मे सहेजें एक किवाड़ी से या एक यवनिका पट से ढकी रहती है ठीक मानव मन में सहेजी अनगिनत भावनाएं एहसास सुख अवसाद आदि जिन्हें होली दीवाली झांक लिया जाता है।
जवाब देंहटाएंआम व्यवहार में उपयोग होते ये अवयव प्रतीक के रूप में अपनी रचना में बहुत नया प्रयोग।
अभिनव सुंदर।
दिल से आभार प्रिय कुसुम दी सृजन का मर्म स्पष्ट करती साहित्यिक समीक्षा ने रचना को को निख़ार दिया।
हटाएंआभारी हूँ प्रिय।
सादर
"मन दुछत्ती पर अक्सर छिपाती हूँ"
जवाब देंहटाएंवाह ! बेजोड़ पंक्ति !!!
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति 🌹🙏🌹
सादर आभार आदरणीय दी।
हटाएंसादर
घर में दुछत्ती ऐसी जगह है जहाँ कुछ भी रख दो उसे कोई मलाल नहीं..ऐसी जगह को आपने भावों से सजीव कर दिया..
जवाब देंहटाएंदिल से आभार आदरणीय दी।
हटाएंसादर
भाव विभोर अकुलाए-से कुछ प्रश्न
जवाब देंहटाएंढाढ़स के किवाड़ यवनिका का आवरण, एक अलहदा एहसास लिए, भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर।
हटाएंसादर
अफ़सोस अब तो वैसी दुछत्तियां ही नहीं रहीं ! कहाँ छिपाए कोई अपने मन के दुखों को
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर।
हटाएंसादर
आधुनिक घरों में दुछत्तियां कम ही बनती हैं लेकिन पहले बिना दुछत्ती के घर ही नहीं होते थे । आपने दुछत्ती के बिम्ब को आधार बनाकर मनुष्य के मन को टटोला है । निस्संदेह हृदयस्पर्शी रचना है यह अनीता जी आपकी । अभिनंदन ।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर।
हटाएंसादर
मन दुछत्ती पर अक्सर छिपाती हूँ
जवाब देंहटाएंअनगिनत ऊँघती उमंगों की चहचाहट
सटीक.. कितनी चीजें छुपी हुई होती है मन की दुछत्ती में जिन्हें हम रोजमर्रा के जीवन में छुपाकर रख देते हैं...कभी मौका मिलता है इन्हें देखना का तो कितना कुछ अपने और अपने जीवन के विषय में जान लेते हैं... सुन्दर सृजन,मैम .....
बहुत बहुत शुक्रिया अनुज।
हटाएंसादर
उत्साह की छोटी-छोटी सीढ़ियों के सहारे
जवाब देंहटाएंअनायास ही झाँक लेती हूँ बेमन से
कभी-कभार मन दुछत्ती के उस छोर पर
उकसाए विचार चेतना के ज्वार की सनक में
स्वयं के अस्तित्त्व को टटोलने हेतु।
शालीनता के इस लिबास में स्वयं के अस्तित्व पर स्वयं ही भ्रम होने लगता है...फिर मन दुछत्ती में पड़े अपने अलसाये से विचार देखकर अपने सच्चे अस्तित्व का अंदाजा करना.....
वाह!!!
बहुत ही अद्भुत बिम्ब लाजवाब भावाभिव्यक्ति।
बहुत बहुत शुक्रिया प्रिय सुधा दी।
हटाएंआपकी प्रतिक्रिया अनमोल है।
सादर
दुछत्ती में कितना कुछ समेटा जा सकता है ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर।
हटाएंसादर
अनायास ही झाँक लेती हूँ बेमन से
जवाब देंहटाएंकभी-कभार मन दुछत्ती के उस छोर पर
उकसाए विचार चेतना के ज्वार की सनक में
स्वयं के अस्तित्त्व को टटोलने हेतु।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, अनिता दी।
सादर आभार प्रिय ज्योति बहन।
हटाएंसादर
ऊँघते आत्मविश्वास का हाथ थामे
जवाब देंहटाएंउत्साह की छोटी-छोटी सीढ़ियों के सहारे
अनायास ही झाँक लेती हूँ बेमन से...ऐसी ही होती हैं दुछत्तियां...धर का ही नहीं मन का भी अहम भाग होती हैं...वाह अनीता जी
दिल से आभार आदरणीय दी।
हटाएंसादर
मन दुछत्ती पर अक्सर छिपाती हूँ
जवाब देंहटाएंअनगिनत ऊँघती उमंगों की चहचाहट
एहसास में भीगे सीले से कुछ भाव
दुछत्ती के प्रयोग ने मन को छू लिया प्रिय अनीता जी,
आजकल घरों में दुछत्ती मिलती ही नहीं। यहां तक कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी नये वास्तु शिल्प के मकान बनने लगे हैं।
सुंदर सृजन के लिए हार्दिक बधाई
एवं
शुभकामनाएं 🙏
सस्नेह,
डॉ. वर्षा सिंह
दिल से आभार आदरणीय वर्षा दी।
हटाएंसादर
क्या बात है...
जवाब देंहटाएंदिल से आभार प्रिय दी...आपकी प्रतिक्रिया अनमोल है।
हटाएंसादर
मन दुछत्ती पर अक्सर छिपाती हूँ
जवाब देंहटाएंअनगिनत ऊँघती उमंगों की चहचाहट
एहसास में भीगे सीले से कुछ भाव
उड़े-से रंगो में लिपटी अनछुई-सी
बेबसियों का अनकहा-सा ज़िक्र
व्यर्थ की उपमा पहने दीमक लगे
भाव विभोर अकुलाए-से कुछ प्रश्न
ढाढ़स के किवाड़ यवनिका का आवरण
कदाचित शालीनता के लिबास में
ठिठके-से प्रपंचों से दूर शाँत दिखूँ
ऊँघते आत्मविश्वास का हाथ थामे
उत्साह की छोटी-छोटी सीढ़ियों के सहारे
अनायास ही झाँक लेती हूँ बेमन से
कभी-कभार मन दुछत्ती के उस छोर पर
उकसाए विचार चेतना के ज्वार की सनक में
स्वयं के अस्तित्त्व को टटोलने हेतु।
@अनीता सैनी '
बेहतरीन खूबसूरत शानदार, बधाई हो
दिल से आभार आदरणीय दी।
हटाएंसादर
वाह!प्रिय अनीता .....खूबसूरत सृजन ,मनोभावों को खूबसूरती से पिरोती हो ,शब्दों की माला में ।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय दी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर