राजस्थानी लोक भाषा में एक नवगीत।
गोधुली की वेला छंटगी
साँझ खड़ी है द्वार सखी
मन री बाताँ मन में टूटी
बीत्या सब उद्गार सखी।।
मन मेड़ां पर खड़ो बिजूको
झाला देर बुलावे है
धोती-कुरता उजला-उजला
हांडी शीश हिलावे है
तेज़ ताप-सी जलती काया
विरह कहे शृंगार सखी।।
पाती कुरजां कहे कुशलता
नैना चुवे फिर भी धार
घड़ी दिवस बन संगी साथी
चीर बदलता बारम्बार
घूम रह्यो जीवन धुरी पर
विधना रो उपहार सखी ।।
आती-जाती सारी ऋतुआँ
छेड़ स्मृति का जूना पाट
झड़ी लगी है चौमासा की
आंख्यां सूनी जोवे बाट
कोंपल जँइया आस खिलाऊँ
प्रीत नवलखो हार सखी।।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
अनुवाद
गोधुली की घड़ियाँ बीत गई
साँझ खड़ी है द्वार सखी
मन की बातें मन में टूटी
बीते सब उद्गार सखी।।
हृदय मेड़ पर खड़ा बिजूका
दे आवाज बुलाता है
धोती-पहने उजली-उजली
गगरी शीश हिलाता है
तेज़ ताप-से जलती काया
विरह करे शृंगार सखी।।
पाती कुरजां कहे कुशलता
नैन छूट रही जल धार
घड़ी दिवस बन संगी साथी
चीर बदलते बारम्बार
घूम रहा जीवन धुरी पर
विधना का उपहार सखी ।।
आती-जाती सारी ऋतुएं
खोलें क्यों स्मृति के पाट
झड़ी लगी है चौमासे की
सूने दृग निहारे बाट
कोंपल जैसे आस खिलाऊँ
प्रीत नौ लखा हार सखी।।
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया अनुज।
हटाएंसादर
गोधुली की बैला छंटगी
जवाब देंहटाएंसाँझ खड़ी है द्वार सखी
मन री बाँता मन में टूटी
बीत्या सब उद्गार सखी।।
अद्भुत...अप्रतिम । हृदयस्पर्शी भाव समेटे बेहद उम्दा राजस्थानी गीत।
दिल से आभार आदरणीय मीना दी।
हटाएंआपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा।
स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-02-2021) को "ज़िन्दगी भर का कष्ट दे गया वर्ष 2021" (चर्चा अंक-3966)
जवाब देंहटाएंपर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
प्रिय सखी ,आपने बहुत ही चौख्खो (शानदार)गीत लिखा है ,मन आनंदित हो गया ।आपकी कलम को प्रणाम 🙏🏼
जवाब देंहटाएंथारो घणो-घणो आभार प्यारी बाई-सा...नवगीत न चौख्खो बतायो...मन घणो ख़ुश होयो।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
बहुत प्यारा गीत प्रिय अनीता जी..मन आनंदित हो गया सखी..
जवाब देंहटाएंदिल से आभार प्रिय सखी।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
बहुत सुन्दर अनीता. राजस्थानी बोली समझने में थोड़ी कठिनाई अवश्य हुई है लेकिन गीत के भाव समझ में आ गए हैं. इस गीत के साथ इसका हिंदी भावार्थ भी दे दो.
जवाब देंहटाएंजी जरुर सर जल्द ही भावार्थ प्रकाशित करती हूँ।
हटाएंसहृदय आभार।
सादर प्रणाम।
म्हारी ओर सँ घणी घणी शुभ कामना
जवाब देंहटाएंआछी लिखरी हो
घणो घणो सनेह |
जले पर नमक मत छिड़को...।
हटाएंघणो-घणो आभार थाने चौख्खो लाग्या नवगीत।
दिल से आभार।
सादर
घणों सौनौं लाग्यो गीत घणों घणों स्नेह।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम लोक भाषा का अनुठा विरह श्रृंगार सृजन।
यह एक विरह नवगीत है चुंकि मारवाड़ी राजस्थान की लोक भाषा है तो कुछ शब्द काफी लोगों को शायद भावों को समझने में व्यवधान उत्पन्न कर रहे होंगे ।
एक सुंदर नवगीत है तो मैं इसका भावार्थ करने से अपने को नहीं रोक पाई
आप सब भी आनंद लिजिए।
नायिका जिसका पति परदेश में रख रहा है, वो उसका इंतजार कर रही है और आज फिर गौधुली का समय बीत कर साँझ ढ़लने को है पर प्रियतम नहीं आये उनके आने पर जो कहना था सभी उद्गार मन में ही टूट गये।
मन रूपी मेड़ पर बिजुके सा
प्रियतम इशारे से बुलाया है
जिसने बहुत उजले से कपड़े पहन रखें है।और गगरी जैसा सर हिलाकर पास आने का संकेत करता है।
काया का श्रृंगार भी अब विरह ही है।
*कुरजां एक प्रवासी पक्षी है और* *राजस्थान में उसका वर्णन* *संदेश वाहक के रूप में* *गीत और काव्य में सदियों से* *किया जाता है ।*
अब नायिका कह रही है कि कुरजां के साथ पत्र में सभी कुशलता के समाचार मिले पर
आँखों से आंसूओं की धार निरन्तर बह रही है।
दिन और घड़ियां ही उसकी संगी साथी हैं , मौसम के मौसम बदल रहें हैं, जीवन बस एक धुरी पर घूम रहा है, ये शायद भाग्य का विधान है।
ऋतुएं बदती हुई यादों के पुराने पर्दे खोल जाती है, चौमासे की बरसात की झड़ी लगी है पर नैन अब रिक्त हो कर प्रतीक्षा कर रहे हैं। फिर भी खिलती कली जैसी आशा है मन में मिलन की और मेरा प्यार( नौ लखा)अमुल्य है।
(अभी भी आशा है प्रिय जरूर आयेंगे)
निशब्द हूँ प्रिय दी।
हटाएंऔर दिल से आभारी भी हूँ आपकी ।
आपने अपना अनमोल समय निकाला और नवगीत का भवार्थ लिखा जिससे सृजन में चार चाँद लग गए।
सादर प्रणाम दी 🙏
स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
वाह... बेहद दिलचस्प
जवाब देंहटाएंराजस्थानी गीत.. वह भी अनुवाद सहित
साधुवाद
🙏🙏🙏🙏
बहुत बहुत शुक्रिया दी।
हटाएंअनुवाद और मूल रचना दोनों मनभावन हैं
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम
हार्दिक आभार सखी।
हटाएंप्रीत नौलखा हार सखी!--सुंदर अभिव्यक्ति!--ब्रजेंद्रनाथ
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर।
हटाएंबहुत बहुत प्रशंसनीय
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीय सर।
हटाएंआती-जाती सारी ऋतुएं
जवाब देंहटाएंखोलें क्यों स्मृति के पाट
झड़ी लगी है चौमासे की
सूने दृग निहारे बाट
कोंपल जैसे आस खिलाऊँ
प्रीत नौ लखा हार सखी।।
बहुत सुंदर नवगीत,अनिता दी।
सादर आभार ज्योति बहन।
हटाएंवाह बहुत खूबसूरत और भावप्रवण गीत
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सखी।
हटाएंआती-जाती सारी ऋतुआँ
जवाब देंहटाएंछेड़ स्मृति का जूना पाट
झड़ी लगी है चौमासा की
आँख सूनी जोवे बाट, राजस्थानी मिठास से उभरती हुई रचना मुग्ध करती है - - नमन सह।
आभारी हूँ आदरणीय सर आपकी प्रतिक्रिया मिली।
हटाएंसृजन सार्थक हुआ।
मनमुग्ध है आगे क्या कहूँ...
जवाब देंहटाएंआप की प्रतिक्रिया प्राप्त हुई दी मैं मेरा मन भी मुग्ध हुआ।
हटाएंहार्दिक आभार
सादर
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ५ जनवरी २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बहुत शुक्रिया मेरी रचना को मंच प्रदान करने हेतु।
हटाएंसादर
एक राजस्थानी होने के नाते मैं आपकी मूल रचना का भलीभांति रसास्वादन कर पाया तथा उसके मर्मस्पर्शी भाव को अपने हृदय में अनुभूत कर पाया । असीमित अभिनंदन आपका इस मनोहर राजस्थानी गीत के लिए ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर।
हटाएंसृजन सार्थक हुआ आपकी प्रतिक्रिया प्राप्त हुई।
सादर
क्या कहने
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गीत
वाह
बधाई
सादर आभार आदरणीय सर सृजन सार्थक हुआ आपके आने से।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
प्रीत नवलखो हार !
जवाब देंहटाएंघणी सोवणी बात कई अनिता जी। राजस्थानी मीठी बोली में मधुर गीत, मनोहारी रचना। और ये कुरजां तो विरही जनों के लिए मोर से भी प्यारी होती है ना
मेरी एक रचना से कुछ पंक्तियाँ -
मेरी एक रचना से :
पाती प्रिय के नाम की
कुरजां तू ले जाय ।
पथ जोवत अँखियाँ थकीं,
प्राण निकल ना जाय ।।
प्रिय मीना जीजी थारी टिप्णी मिली।मन ख़ुश हुयो।
हटाएंनवगीत न सराहना मिली... थारे शब्दा में और निख़र गयो। बहुत ही सुंदर लाइना है थारी।
आपणो साथ योंही बणो रह।
सादर
वाह बेहद शानदार
जवाब देंहटाएंदिल से आभार आदरणीय दी।
हटाएंअत्यंत हर्ष हुआ।
सादर
वाह!!!!
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद आना हुआ ब्लॉग पर....आपके राजस्थानी गीत एवं सभी टिप्पणियों ने मन मोह लिया कुसुम जी के अनुवाद ने सच में चार चाँद लगा दिये....बहुत ही लाजवाब भावपूर्ण भावाभिव्यक्ति
बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।
आभारी हूँ आदरणीय सुभा दी उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया दी।
हटाएंसादर
Nice Post Good Informatio ( Chek Out )
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