वासंती परिधान पहनकर
क्षिति दुल्हन-सी शरमाई है
शीश मुकुट मंजुल सुमनों का
मृदुल हास ले मुसकाई है ।।
पोर-पोर शृंगार सुशोभित
ज्यों सुरबाला कोई आई है
मुग्ध घटाएँ बहकीं-बहकीं
घट भर सुषमा छलकाई है।।
शाख़-शाख़ बजती शहनाई
सौरभ गंध उतर आई है
मंद मलय मगन लहराए
पात झाँझरी झनकाई है ।।
कली कुसुम की बाँध कलंगी
रंग कसूमल भर लाई है
वन-उपवन सजीं बल्लरियाँ
ऋतु वसंत ज्यों बौराई है। ।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
मन प्रसन्न हो जाता है ऐसी मनमोहक रचना पढ़कर..सादर नमन
जवाब देंहटाएंदिल से आभार सखी।
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बेहद खूबसूरत सृजन सखी
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय अनुराधा जी।
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बहुत रोचक कविता...
जवाब देंहटाएंसाधुवाद 🙏
आभारी हूँ आदरणीय वर्षा जी।
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बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया अनुज।
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आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2050...क्योंकि वह अपनी प्रजा को खा जाता है... ) पर गुरुवार 25 फ़रवरी 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय रविंद्र जी सर पाँच लिंकों पर स्थान देने हेतु।
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सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 26-02-2021) को
"कली कुसुम की बांध कलंगी रंग कसुमल भर लाई है" (चर्चा अंक- 3989) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
आभारी हूँ आदरणीय मीना जी चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
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बहुत सुंदर अभिव्यक्ति । वासंती प्रकृति के सौन्दर्य से सुशोभित ।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय जितेंद्र जी।
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सुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय ओंकार जी सर।
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खूबसूरत रचना।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय यशवंत जी सर।
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बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंसार्थक शब्दों से बसन्त का बढ़िया चित्रण किया है आपने।
सादर आभार आदरणीय शास्त्री जी सर।
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वाह! प्रकृति का सुंदर मानवीयकरण , सुंदर अलंकारों को धारण किए बंसत की सुगंध लिए सरस अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसस्नेह।
दिल से आभार आदरणीय कुसुम दी जी।
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शाख़-शाख़ बजती शहनाई
जवाब देंहटाएंसौरभ गंध उतर आई है
मंद मलय मगन लहराए
पात झाँझरी झनकाई है ।।
वाह !! बसंत को बेहद खूबसूरती से दर्शाया है तुमने,स्नेह
आभारी हूँ कामिनी जी।
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वाह!प्रिय अनीता ,खूबसूरत सृजन ।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ प्रिय शुभा दी जी।
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बसन्त आगमन का सुंदर शब्द चित्रण ।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय संगीता दी जी।
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बहुत सुंदर। कुछ पंक्तियाँ तो बस मंत्रमुग्ध कर गईं जैसे -
जवाब देंहटाएंपात झाँझरी झनकाई है ।।
और
कली कुसुम की बाँध कलंगी
रंग कसूमल भर लाई है
दिल से आभार आदरणीय मीना दी जी।
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वासंती महक से भरी सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंदिल से आभार आदरणीय अनीता जी।
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बहुत सुंदर मोहक कृति
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय।
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बहुत ख़ूबसूरत चित्रण
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय दिलबाग़ जी सर।
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वाह क्या कहने, खूबसूरत के साथ साथ प्यारी भी, बहुत सुंदर कविता अनिता जी बधाई हो आपको
जवाब देंहटाएंदिल से आभार आदरणीय ज्योति जी।
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बसन्त का बढ़िया चित्रण
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय संजय जी।
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पोर-पोर शृंगार सुशोभित
जवाब देंहटाएंज्यों सुरबाला कोई आई है
मुग्ध घटाएँ बहकीं-बहकीं
घट भर सुषमा छलकाई है।।
बसंत ऋतु की छटा बिखेरता लाजवाब गीत
वाह!!!!
सादर आभार आदरणीय सुधा दी मनोबल बढ़ाने हेतु।
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