बुधवार, मार्च 17

माँ कहती है


 औरतें बालकनी में टंगे 

 मिट्टी के झूमर की तरह होतीं हैं 

तभी वे हवा के हल्के स्पर्श से

 मोहनी सुर लहर-सी बिखर जातीं हैं।

 

  कभी मौळी तो कभी कँगन डोरी में

  जड़ी दीं जातीं हैं कोड़ियों के रुप में

  कभी-कभार बंदनबार में जड़ दी जातीं हैं 

  दहलीज़ की शोभा बढ़ाने के लिए।


वात्सल्य ममता की दात्री को

कभी रख दिया जाता है छत की मुँडेर पर

पानी से भरे मिट्टी के पात्र की तरह जो

अनेक पक्षियों को पुन: जीवनदान देता है।

  

  कुछ लोग उन्हें उपवस्त्र समझ 

 किवाड़ों  के पीछे हेंगर में टाँग देतें  हैं 

  विचारों में आई खिन्नता ही कहेंगे

  कि धूल-मिट्टी की तरह उन्हें झाड़ा जाता है।


 परंतु माँ कहती है

 औरतें गमले में भरी मिट्टी की तरह होतीं हैं

 खाद की पुड़िया उनकी आत्मा की तरह होती है 

 जो पौधे को पोषित कर हरा-भरा करती है।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'

38 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सारे रूपकों के साथ एक स्त्री के प्रति मानसिकता को दर्शाया है . गहन और भावपूर्ण अभिव्यक्ति ... माँ का कहना बिलकुल सही है बस माँ तो आने वाली नस्ल को पोषित करती है .

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    1. आभारी हूँ आदरणीया संगीता दी जी मनोबल बढ़ाती सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु। विचारों की समरुपता पर अत्यंत हर्ष हूआ।
      सादर नमस्कार।

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  2. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 19-03-2021) को
    "माँ कहती है" (चर्चा अंक- 4010)
    पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद.


    "मीना भारद्वाज"

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    1. सादर आभार आदरणीय मीना दी मंच पर रचना को स्थान दिया।शीर्षक पंक्तिया देखकर अत्यंत हर्ष हूआ।
      सादर

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  3. सुन्दर रचना।
    नारी के विविध रूपों का सुन्दर वर्णन।

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    1. सादर नमस्कार सर ।
      बहुत बहुत शुक्रिया आपका।
      सादर

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  4. जी हाँ अनीता जी । सच ही है यह ।

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    1. आभारी हूँ आदरणीय हरीश जी ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
      सादर नमस्कार

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  6. परंतु माँ कहती है

    औरतें गमले में भरी मिट्टी की तरह होतीं हैं

    खाद की पुड़िया उनकी आत्मा की तरह होती है

    जो पौधे को पोषित कर हरा-भरा करती है।..बिल्कुल सत्य । मां का कथन ही सही है, इसी पे कायम रहना चाहिए, सुंदर दृश्यों का शब्दचित्र ।

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    1. आभारी हूँ आदरणीय जिज्ञासा दी जी नमोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।समय बदल रहा है साथ ही माँ के बेटी को दिये संस्कार भी।आपका का कथन सार्थक है कायम रहना चाहिए। अत्यंत हर्ष हूआ आपका सानिध्य प्राप्त हूआ।
      सादर

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    1. आभारी हूँ आदरणीय सर मनोबल बढ़ाने हेतु।
      सादर नमस्कार।

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  8. अब समय आ गया है स्त्रियाँ अपनी परिभाषा स्वयं गढ़ रही हैं

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    1. सही कहा आपने आदरणीय अनीता दी जी आज औरतें अपनी परिभाषा गढ़ रही है। प्रत्यक्ष परिवर्तन देकने को मिलते है।शायद समय और परिवेश का अंतराल ही है।
      सादर नमस्कार ।

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  9. परंतु माँ कहती है

    औरतें गमले में भरी मिट्टी की तरह होतीं हैं

    खाद की पुड़िया उनकी आत्मा की तरह होती है

    जो पौधे को पोषित कर हरा-भरा करती है।

    "माँ कहती है" तो ठीक ही कहती होगी दुःख तो बस ये होता है कि ना माँ ने अपनी कीमत पहचानी और ना हमने
    स्त्री के रूप का सुंदर चित्रण प्रिय अनीता

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    1. आभारी हूँ कामिनी दी आपकी प्रतिक्रिया प्राप्त हुई।
      दुःख जैसी कोई बात नहीं है। परिवेश का अंतराल ही है कोई क्रन्तिकारी विचारों का होता है। कोई विचारों में विनम्रता को महत्त्व देता है सुकून दोनों जगह ही है।परिभाषा अलग है। मानवीय प्रवृति के अनुसार भिन्नता लाज़मी है।
      स्नेह बनाए रखे।
      सादर नमस्कार।

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  10. भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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  11. परंतु माँ कहती है
    औरतें गमले में भरी मिट्टी की तरह होतीं हैं
    खाद की पुड़िया उनकी आत्मा की तरह होती है
    जो पौधे को पोषित कर हरा-भरा करती है।

    मन को गहरे तक छू लिया आपकी इस रचना ने...श्रेष्ठतम !!!
    हार्दिक बधाई 🌹🙏🌹

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    1. दिल से आभार आदरणीया शरद दी जी संबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु। स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  12. सुंदर अतिसुंदर,गहन भाव कह दिए माँ ने बाकि सब समयानुरूप बदल गया है अब पर माँ ने जो सागर से भी गहन भाव रखें हैं वो समझने योग्य है इतनी गहरी बात बस माँ ही कह सकती है।
    सारगर्भित।

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    1. आभारी हूँ आदरणीय कुसुम दी जी सही कहा आपने समय के अनुसार मानवीय मूल्य बदल रहे हैं दलाव जरुरी भी है।परंतु माँ तो माँ होती है कौन समझाए उसे। बदलाव की इस मुँडेर पर माँ बेटी के रिश्ते को समझना बड़ा कठीन है। अत्यंत हर्ष हुआ माँ के एहसास छूने हेतु।
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  13. कुछ लोग उन्हें उपवस्त्र समझ

    किवाड़ों के पीछे हेंगर में टाँग देतें हैं

    विचारों में आई खिन्नता ही कहेंगे

    कि धूल-मिट्टी की तरह उन्हें झाड़ा जाता है।



    परंतु माँ कहती है

    औरतें गमले में भरी मिट्टी की तरह होतीं हैं

    खाद की पुड़िया उनकी आत्मा की तरह होती है

    जो पौधे को पोषित कर हरा-भरा करती है।

    बहुत खूब अनिता मन को छू गई, लाजवाब

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    1. दिल से आभार प्रिय ज्योति जी आपका स्नेह ही है जो ऊर्जावान बनाए रखता है। मनोबल बढ़ाने हेतु अनेकों आभार
      स्नेह बनाए रखे।
      सादर

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  14. दिल को छूती बहुत सुंदर रचना, अनिता।

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  15. माँ बिल्कुल सही कहती है। औरतें कितना कुछ होती हैं। मन को छू लेने वाली आपकी इस रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई। सादर।

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    1. आभारी हूँ आदरणीय वीरेन्द्र सिंह जी सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

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  16. मातृ रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।

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    1. आभारी हूँ आदरणीया अमृता दीदी जी आपकी उपस्थित से अत्यंत हर्ष हूआ।
      सादर

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  17. नारी मन को बाखूबी लिखा है आपने ... विस्तृत भाव, समग्रता का भाव, सृजन की क्ल्पना हो तो नारी ही आती है नज़रों के सामने ...

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    1. आभारी हूँ सर सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

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  18. अतुलनीय भावों से सिंचित रचना निःशब्द कर जाती है बहुत ही सुंदर रचना, आदरणीया, दिल की गहराइयों से उभर कर शब्दों में जैसे ढले हों नाज़ुक एहसास, साधुवाद सह ।

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    1. आभारी हूँ आदरणीय शांतनु जी सर आपका आशीर्वाद प्राप्त हूआ।आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा।आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  19. कुछ लोग उन्हें उपवस्त्र समझ

    किवाड़ों के पीछे हेंगर में टाँग देतें हैं

    विचारों में आई खिन्नता ही कहेंगे

    कि धूल-मिट्टी की तरह उन्हें झाड़ा जाता है।

    कोई कुछ भी समझे स्त्रियों को अपना मूल्यांकन स्वयं करना होगा....।
    बहुत ही सुन्दर..
    लाजवाब।

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    1. आभारी हूँ दी आपकी प्रतिक्रिया प्राप्त हुई। पृथ्वी पर प्रत्येक प्राणी स्वयं का मूल्यांकन स्वयं ही करवाता है फिर चाहे वह मूक ही क्यों न हो। मेरे ख़्याल से स्त्रीयों को मूल्यांकन की आवशयकता नहीं है वह प्रकृति की सर्वश्रेष्ट कृति है। अतुल्य है नारी ।मेरी दृष्टि में।
      अच्छा लगा आपके विचार प्राप्त हुए।
      सादर

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