उम्र के तीसरे पड़ाव पर
शिथिल पड़ चुकी देह से सुलगतीं सांसें
उसका बार-बार स्वयं से उलझना
बेचैनियों में लिपटी तलाशती है जीवन
ज्यों राहगीर सफ़र में तलाशता छाँव है।
समय की चोट के गहरे निशान
चेहरे की झुर्रियों से झाँकते रहते हैं
झुर्रियाँ मिटाने को तत्पर है आज
ज्यों वर्तमान के अतीत के लगे पाँव हैं ।
प्रेम से किए अनेकों प्रेम के प्रतिकार
घुटनों की जकड़न से जकड़े हुए हैं
जकड़न को तोड़ने की अभिलाषा
भोर टिमटिमाते प्रश्नों के प्रतिउत्तर
उससे सौंपती है पात पर।
शब्दों में समझ की दूरदर्शिता और
अँकुरित मंशा को बारीकी से पढ़ना
इच्छा-अनिच्छा की रस्सी से जीवन को
पालना झुलाती ज़िंदगी का कोलाहल
लिप्त है मौन में ।
पेड़ के सहारे फूलों को निहारती
रोज़ सुबह इंतज़ार में आँखें गड़ाती
हल्की मुस्कुराहट के साथ क़दम
स्वतः साथ-साथ चल पड़ते
बिछड़कर बहनापा खलता है आज।
कील में अटके कुर्ते को निकालना
खुसे धागे को ठीक करते हुए कहना-
सुगर और बीपी ने किया बेजान है
मॉर्निग वाक की सलाह डॉ.की है।
अनुदेश की अनुपालना अवमानना में ढली
उसके पदचाप आज-कल दिखते नहीं है।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 02-04-2021) को
"जूही की कली, मिश्री की डली" (चर्चा अंक- 4024) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
बहुत बहुत शुक्रिया मीना दी जी।
हटाएंसादर
उम्र के साथ आने वाली परेशानियों का अच्छा लेखा जोखा प्रस्तुत किया है ....लेकिन बहनापा क्यों खलता है ? समझ से परे है ...
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय दी जी।
हटाएंसादर
बड़ी अच्छी कविता है अनीता जी यह आपकी । कुछ समझी है, कुछ और समझनी शेष है ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर।
हटाएंसादर
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 01 अप्रैल 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ दिव्या जी संध्या दैनिक पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
बेहतरीन रचना सखी 👌👌
जवाब देंहटाएंदिल से आभार सखी।
हटाएंसादर
बहुत अच्छी गवेषणा।
जवाब देंहटाएंभावों की नाजुक प्रस्तुति।
बहुत बहुत शुक्रिया सर।
हटाएंसादर
समय की चोट के गहरे निशान
जवाब देंहटाएंचेहरे की झुर्रियों से झाँकते रहते हैं
-------------------
गहरे भाव समेटे हुए सुंदर और सार्थक सजृन। आपको बहुत-बहुत बधाई।
बहुत बहुत शुक्रिया सर।
हटाएंसादर
बहुत गहरी रचना है...। गहन भाव लिए हुए...
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर।
हटाएंसादर
समय की चोट के गहरे निशान
जवाब देंहटाएंचेहरे की झुर्रियों से झाँकते रहते हैं
झुर्रियाँ मिटाने को तत्पर है आज
ज्यों वर्तमान के अतीत के लगे पाँव हैं.. बिलकुल सही कहा आपने,जीवन संदर्भ को रेखांकित करती सुन्दर रचना ।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय दी जी मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंसादर
पेड़ के सहारे फूलों को निहारना
रोज़ सुबह इंतज़ार में आँखें गड़ाती
हल्की मुस्कुराहट के साथ क़दम
स्वतः साथ-साथ चल पड़ते
बिछड़कर बहनापा खलता है आज।
कील में अटके कुर्ते को निकालना
खुसे धागे को ठीक करते हुए कहना-
सुगर और बीपी ने किया बेजान है
मॉर्निग वाक की सलाह डॉ.की है।
बहुत ही मार्मिक रचना ,दर्द के साथ जीना उम्मीद का बिखर जाना तकलीफदेह , बहुत ही अच्छी रचना है , पढ़ कर सोच कर आँखे नम हो गई, शुभ प्रभात अनीता, नमन
दिल से आभार प्रिय ज्योति बहन।
हटाएंस्नेह यों ही बनाए रखे।
सादर
बिछड़कर बहनापा खलता है आज।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अनीता जी मेरी समस्या का समाधान करने का ... अब स्पष्ट हो गया ... आभार
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय दी जी।
हटाएंसादर
बहुत सुन्दर और मार्मिक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर।
हटाएंसादर
कील में अटके कुर्ते को निकालना
जवाब देंहटाएंखुसे धागे को ठीक करते हुए कहना-
सुगर और बीपी ने किया बेजान है
मॉर्निग वाक की सलाह डॉ.की है।
जीवन के उस फ़ेज़ का सत्य जिसमें शारीरिक, मानसिक अनेक कठिनाइयां घेरने लगती हैं... इसकी.सहज स्वीकार्यता ज़रूरी है... यह भाव मुझे इस रचना के मर्म में मौज़ूद है... हृदयस्पर्शी रचना...आपको नमन अनीता जी 🌹🙏🌹 - डॉ शरद सिंह
दिल से आभार प्रिय दी जी मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंसादर
मोर्निंग वॉक पर बने इस बहन के रिश्ते ने जब चन्द समय में ही साथ छोड़ दिया ..साथ क्या दुनिया ही छोड़ दी..तो खलेगा ही ये बहनापा।
जवाब देंहटाएंऔर बहुत समय तक खलेगा....
बहुत ही हृदयस्पर्शी सृजन अनीता जी!
आभारी हूँ आदरणीय सुधा दी कुछ लोग कभी साथ नहीं छोड़ते स्मृतियों में हमेशा रहते है प्रेम से बिताए चंद पल भी जीवन में प्रेरणा बन उभरते है।जीवन कब किसका छूट जाए कहा नहीं जा सकता।
हटाएंसादर
बहुत अच्छी...
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी रचना...
साधुवाद प्रिय अनीता जी 🙏
आभारी हूँ आदरणीय दी।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
रंगपंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏
जवाब देंहटाएंदिल से आभार दी।
हटाएंसादर
कुछ खालीपन ऐसा ही होता है जो बस अनकहे अहसासों से भरता रहता है । बस एक मौन .....
जवाब देंहटाएंदिल से आभार प्रिय दी मन मोह जाती है आपकी प्रतिक्रिया।
हटाएंसही कहा एहसास और मौन की भाषा सबसे परे है।
जितनी चाहे प्रीत समेट लो।
सादर
हृदयस्पर्शी...अपनत्व की बंधी डोर टूटने पर रिक्त कमी को यादें भी भर नहीं पाती ।
जवाब देंहटाएंदिल से आभार आदरणीय मीना दी सही कहा कुछ लोगो की कमी हमेशा खलती है।
हटाएंसादर
बहुत बहुत सुन्दर मार्मिक रचना
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर।
हटाएं