गुरुवार, अप्रैल 15

मैं और मेरा अक्स



 अँजुरी से छिटके जज़्बात 

मासूम थे बहुत ही मासूम 

पलकों ने उठाया 

वे रात भर भीगते रहे 

ख़ामोशी में सिमटी

लाचारी ओढ़े निर्बल थी मैं। 


तलघर की कोठरी के कोने में

अनेक प्रश्नों को मुठ्ठी में दबाए 

बेचैनियों में सिमटा

 बहुत बेचैन था मेरा अक्स।

 

 आँखों में झिलमिलाती घुटन

 धुएँ-सा  स्वरुप 

 बारम्बार पीने को प्रयासरत 

दरीचे से झाँकती

विफलता की रैन बनी थी मैं। 


निर्बोध प्रश्नों को

बौद्धिकता के तर्क से सुलझाती

असहाय झूलती 

 बरगद की  बरोह का

धरती में धसा स्तम्भ बनी थी मैं। 


@अनीता सैनी 'दीप्ति'

38 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 16-04-2021) को
    "वन में छटा बिखेरते, जैसे फूल शिरीष" (चर्चा अंक- 4038)
    पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद.


    "मीना भारद्वाज"

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    1. सादर आभार आदरणीय मीना दी चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
      सादर

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर।
      सादर

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  3. बहुत बेचैन था आपका अक्स! बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति है यह अनीता जी आपकी। कविता के निहितार्थ को कुछ और निकट से समझने के लिए इसे पुनः पढूंगा।

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    1. आभारी हूँ सर मनोबल बढ़ाने हेतु।
      सादर

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  4. बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति, निरीह मन की कातरता को दिखातीं भावभीनी मार्मिक पंक्तियाँ !

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    1. आभारी हूँ आदरणीय अनीता दी जी।
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  5. मन को कशमकश को व्यक्त करती बहुत ही सुंदर रचना।

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    1. आभारी हूँ आदरणीय ज्योति बहन।
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  6. बौद्धिकता के तर्क से सुलझाती

    असहाय झूलती

    बरगद की बरोह का

    धरती में धसा स्तम्भ बनी थी मैं।

    कभी कभी बहुत बेचैनी होते हुए भी स्वयं ही हिम्मत से काम लेना होता है ... सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति .

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    1. आभारी हूँ आदरणीय संगीता दी जी।
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  7. नारी की व्यथा कथा का
    बहुत सुन्दर और सार्थक चित्रण।
    --

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर।
      आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  8. निर्बोध प्रश्नों को
    बौद्धिकता के तर्क से सुलझाती
    असहाय झूलती
    बरगद की बरोह का
    धरती में धसा स्तम्भ बनी थी मैं।

    मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति अनीता सैनी दीप्ति जी
    बहुत सुंदर 🌹🙏🌹

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    1. आभारी हूँ आदरणीय शरद दी जी।
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  9. वे रात भर भीगते रहे

    ख़ामोशी में सिमटी

    लाचारी ओढ़े निर्बल थी मैं। ---सुंदर रचना।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर।
      सादर

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  10. बहुत सुंदर भावों भरी अभिव्यक्ति ।

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    1. आभारी हूँ आदरणीय जिज्ञासा दी जी।
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  11. अंतर्मन के कश्मकश का बेहतरीन चित्रण प्रिय अनीता

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    1. आभारी हूँ आदरणीय कामिनी दी।
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  12. मन पर लगी कोई चोट यूं गहराई तक कुदेर गई कि समसी से मसी बह गई।
    हृदय स्पर्शी सृजन
    मन में घुमड़ते भावों को शब्दों में चमत्कारिक रूप से बांधना रहस्यात्मक शैली ।
    अद्भुत लेखन

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    1. आभारी हूँ आदरणीया कुसुम दी जी आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया संबल है मेरा।स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  13. अपने अक्स को ढूँढना, पहचानना और बात करना ...
    गहरे ख्याल की रचना ...

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    1. आभारी हूँ सर आपकी प्रतिक्रिया प्राप्त हुई।
      सृजन सार्थक हूआ।
      सादर

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  14. बहुत ही बढ़िया कहा है । सुन्दर रचना ।

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  15. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (27-2-22) को एहसास के गुँचे' "(चर्चा अंक 4354)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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  16. मैं के कितने रूप...

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  17. आज फिर कहूंगी अद्भुत!!

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  18. बहुत ही भावपूर्ण रचना

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