नाद भरा उड़ता जीवन देख
ठहरी है निर्बोध भोर की चंचलता
दुपहरी में उघती उसकती इच्छाएँ
उम्मीद का दीप जलाए बैठी साँझ
शून्य में विलीन एहसास के ठहरे हैं पदचाप।
यकायक जीवन चक्र भी शिथिल होता गया
एक अदृश्य शक्ति पैर फैलाने को आतुर है
समय की परिधि से फिसलती परछाइयाँ
पाँवों को जकड़े तटस्थ लाचारी
याचनाओं को परे धकेलती-सी दिखी।
काया पर धधकते फफोले कंपित स्वर
किसकी छाया ? कौन है ?
सभी प्रश्न तो अब गौण हैं
मेघों का मानसरोवर से पानी लेने जाना
कपासी बादलों में ढलकर आना भी गौण है।
चिंघाड़ते हाथियों के स्वर में मदद की गुहार
व्याघ्रता से विचलित बस एक दौड़ है
गौरया की घबराहट में आत्मरक्षा की पुकार
हरी टहनियों का तड़प-तड़पकर जल जाना
कपकपाती सांसों का अधीर हो स्वतः ठहर जाना।
एक लोटा पानी इंद्र देव का लुढ़काना
झूठ का शीतल फोहा फफोलों पर लगाना
दूधिया चाँदनी में तारों का जमी पर उतरना
निर्ममता के चक्रव्यूह में मानव को उलझा देखा
जलती देह का जमी पर छोड़ चले जाना
कविता की कोपलें बन बिखरा एक यथार्थ है।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 23-04-2021) को
"टोकरी भरकर गुलाबी फूल लाऊँगा" (चर्चा अंक- 4045) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
सादर आभार आदरणीय मीना दी चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार २३ अप्रैल २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
आभारी हूँ पाँच लिंकों पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
वाह. दार्शनिक कविता
जवाब देंहटाएंआभारी ही सर।
हटाएंसादर
बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर।
हटाएंयथार्थ के विविध रूप एवं बिम्ब प्रस्तुत किए हैं अनीता जी आपने इस कविता में। इन्हें समेकित रूप में देखने पर स्थिति की गम्भीरता एवं भयावहता का पता लगता है।
जवाब देंहटाएंसारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु सादर आभार आदरणीय सर।
हटाएंसादर
बहुत सुंदर रचना सखी
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ सखी।
हटाएंसादर
बेहतरीन रचना सखी
जवाब देंहटाएंसादर आभार सखी।
हटाएंसादर
हृदयस्पर्शी सृजन अनीता ,परमात्मा ये विपदा हर ले बस यही प्रार्थना है,
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय कामिनी दी।
हटाएंसादर
आदरणीया मैम, आज के दुखद यथार्थ को दर्शाती एक बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण रचना। आशा है कि भगवान जी जल्दी ही हम सब की पुकार सुन कर इस महामारी का नाश कर दें और जीवन पुनः हँसता-खेलता हो जाए । हृदय से अत्यंत आभार इस सुंदर रचना के लिए व आपको प्रणाम।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ प्रिय अनंता जी सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर
ओह , बहुत मार्मिक चित्रण ... पढ़ते हुए जैसे रोंगटे खड़े हो गए ...
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय संगीता दी जी।
हटाएंसादर
हृदय स्पर्शी चित्रण,
जवाब देंहटाएंयथार्थ पर फिसलती संवेदनशील लेखनी।
सस्नेह।
आभारी हूँ आदरणीय कुसुम दी जी।
हटाएंसादर
चिंघाड़ते हाथियों के स्वर में मदद की गुहार
जवाब देंहटाएंव्याघ्रता से विचलित बस एक दौड़ है
गौरया की घबराहट में आत्मरक्षा की पुकार
हरी टहनियों का तड़प-तड़पकर जल जाना
कपकपाती सांसों का अधीर हो स्वतः ठहर जाना।
बहुत ही सटीक मार्मिक एवं सामयिक रचना
भयावहता ऐसी फैली है कि हर जगह त्राहि माम् त्राहि माम् ही गूँज रहा है।
आभारी हूँ आदरणीय सुधा दी जी।
हटाएंसादर
इस रचना में एक यथार्थ नहीं कई यथार्थ हैं।
जवाब देंहटाएंजी बहतु ही बढ़िया लिखा है आपने।
बहुत बहुत शुक्रिया सर।
हटाएंसादर
बहुत मार्मिक चित्रण, प्रभावशाली लेखन
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय अनीता दी।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
हाहाकारी सृजन जो अवाक करता है ... अति संवेदनशील ।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय दी।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
एक लोटा पानी इंद्र देव का लुढ़काना
जवाब देंहटाएंझूठ का शीतल फोहा फफोलों पर लगाना
दूधिया चाँदनी में तारों का जमी पर उतरना
निर्ममता के चक्रव्यूह में मानव को उलझा देखा
जलती देह का जमी पर छोड़ चले जाना
कविता की कोपलें बन बिखरा एक यथार्थ है।.. वाह अनीता जी,आपकी रचना अंतर्मन को झकझोर गई,बहुत बड़ी चोट यथार्थ के ऊपर ।
आभारी हूँ आदरणीय जिज्ञासा दी जी।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
वाह, बहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर।
हटाएंसादर
यथार्थ आज बहुत कडवा हो चुका है ... फिर भी इन सब को सरचना भी यथार्थ है ... हूबहू रच देना बस ...
जवाब देंहटाएंदिल से आभार आदरणीय सर।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
वाह
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
दिल को छूती बहुत सुंदर रचना, अनिता। ईश्वर करे आप जल्द ठीक हो...
जवाब देंहटाएंदिल से आभार प्रिय ज्योति बहन।
हटाएंआपका स्नेह आशीर्वाद यों ही मिलता रहे।
सादर