उन्हें सब पता है
कि कैसे पानी से झाग बनाने हैं ?
उस झाग को कैसे मन पर पोतना है ?
कैसे शब्दों से एहसास चुराने हैं?
कैसे डर को पेट में छिपाना है?
सुविधानुरुप कैसे अनेक कहानियाँ गढ़नी हैं?
दिन महीने वर्ष प्रत्येक पल को कैसे उलझाना है?
सच्चे भोले माणसों को अदृश्य बिसात में
रणनीति के तहत कैसे उलझनों में उलझाना है?
वे सब जानते हैं कैसे? कब? कहाँ?
पैरों की बिबाइयों से पेट में झाँकना है
पेट में अन्न की जगह कैसे डर को छिपाना है?
कैसे हवा के वेग से डर को दौड़ाना है?
कैसे दिमाग़ की शिराओं में डर को चिपकाना है?
कैसे पोषण का अभाव दिखाकर दफ़नाना है?
डर की मृत देह से कैसे बदबू फैलानी है?
शरीर के अंगों को कैसे विकृत करना है?
उन अबोध माणसों की बुद्धि पर
नासमझी को कैसे हावी करना है?
उन्हें पता है कि कैसे भेदभाव की
गहरी खाई खोदी जाती है?
इस और उस पार के दायरे को कैसे
सिखाया और समझाया जाता है ?
खाई पर मंशा का तख़ता कैसे रखा जाता है?
कैसे मनचाहे इरादों के साथ
मन चाहे लोगों को
इस और उस पार लाया ले जाया जाना है?
कब कहाँ डर की डोर का रंग बदला जाना है?
कैसे डर को एक नाम दिया जाना है?
धर्म कह कैसे नवीनीकरण किया जाना है?
समझ के देवता यह सब बखूबी जानते हैं।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 04 अप्रैल 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय यशोदा दी सांध्य दैनिक पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
जी हां अनीता जी । ठीक कहा आपने । और ये समझ के देवता कौन हैं, बताने की ज़रूरत नहीं । इनके चेहरे अब काफ़ी जाने+पहचाने है ।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ सर उत्साहवर्धन प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर
शानदार, बहुत उम्दा अभिव्यक्ति मैम
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रीति जी।
हटाएंसादर
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय सर।
हटाएंसादर
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार ( 05-04 -2021 ) को 'गिरना ज़रूरी नहीं,सोचें सभी' (चर्चा अंक-4027) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
सादर आभार आदरणीय सर चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
अनेक गंभीर विषयों की विवेचना चंद शब्दों में समेटना और अभिव्यक्ति को काव्य-सौंदर्य में ढालकर लोगों के मन-मस्तिष्क को कुरेदना कविता की सफलता है।
जवाब देंहटाएंभोले माणस को समय की चुनौतियों को समझना होगा और अपने दिल-ओ-दिमाग़ से फैसले लेने होंगे नहीं तो उसके श्रम, विचार और उत्पाद की क़ीमत कोई और ही तय करता रहेगा। कविता का संदेश स्पष्ट है।
बधाई एवं शुभकामनाएँ।
लिखते रहिए।
सादर आभार आदरणीय सर सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंप्रतिक्रिया से संबल मिला।
सादर
नए, सुंदर अर्थ लिए अद्भुत अभिव्यक्ति!--ब्रजेंद्रनाथ
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंसादर
बहुत सुन्दर् और सशक्त रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर।
हटाएंसादर
लाजवाब भावाभिव्यक्ति । भाषा सौष्ठव बहुत सुन्दर है ।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ मीना दी ।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
अनीता, मेरे मन की बात कह दी तुमने किन्तु आदरणीय की अब तक दर्जनों किश्तों में प्रसारित - 'मन की बात' से तुमने कोई सबक़ नहीं लिया.
जवाब देंहटाएंअटल जी के शब्दों - 'ये अच्छी बात नहीं है.'
वैसे सत्तासीन देवता कभी गलत नहीं होते. राजा की सोच के अनुरूप ही धार्मिक-पौराणिक और ऐतिहासिक ग्रन्थ लिखे जाते हैं.
ज़िंदगी में तरक्की की सीढ़ी पर लगातार चढ़ना है तो गांधी जी के तीनों बंदरों के गुण अपनाओ.
"वैसे सत्तासीन देवता कभी गलत नहीं होते. राजा की सोच के अनुरूप ही धार्मिक-पौराणिक और ऐतिहासिक ग्रन्थ लिखे जाते हैं"
हटाएंओह
अगर ये स्वीकृती एक साहित्यकार दे रहे हैं तो स्थिति चिंता जनक है सर ।
काश कुछ ऐसा लिखा जाय जिसमें सक्रिय भागीदारी भी हो ,तो असरकारक होगा।
सादर आभार आदरणीय सर।
हटाएंआपकी प्रतिक्रिया से संबल मिला।आशीर्वाद बनाए रखे ।
सच सभी को पता होता है। स्वार्थसिद्धि हेतु आँखों पर पट्टी बांधनी होती है या नादानी का दिखावा। निष्पक्ष प्रतिक्रिया हेतु दिल से आभार।
सादर
बेहतरीन रचना, कमाल की अभिव्यक्ति , गहरी सोच लिए हुए है, रवींद्र जी ने बहुत अच्छी तरह से समझा दिया है,
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई हो अनीता
दिल से आभार आदरणीय ज्योति बहन।अत्यंत हर्ष हूआ आपकी प्रतिक्रिया प्राप्त हुई।स्नेह बनाए रखे।
हटाएंसादर
सही कहा.. अनीता जी.. धर्म कह कैसे नवीनीकरण किया जाना है?
जवाब देंहटाएंसमझ के देवता यह सब बखूबी जानते हैं।
दिल से आभार आदरणीय अलकनंदा दी जी।
हटाएंसभी अवगत है फिर भी नजाने क्यों चुप्पी धारण की है।
उम्मीद यही है जल्द ही यह चोला गल जाए।
सादर
एक-एक शब्द कुछ ज्यादा ही कह रहा है । मर्मभेदी अभिव्यक्ति । बहुत ही बढ़िया सृजन ।
जवाब देंहटाएंदिल से आभार आदरणीया अमृता दी जी। माफ़ी चाहती हूँ
हटाएंभावातिरेक कुछ ज़्यादा ही कह गई। स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
वाह!प्रिय अनीता ,कैसे आपनेइतने सारे गंभीर विषयों को शब्दों में पिरोया है ..हृदयस्पर्शी सृजन ।
जवाब देंहटाएंदिल से आभार आदरणीय शुभा दी जी मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंसादर
वाह कितनी अच्छी व सच्ची बात, और गम्भीर चिंतन भी
जवाब देंहटाएंदिल से आभार आदरणीय सर सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर
सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर।
हटाएंसादर
सामायिक परिदृश्य पर बहुत गहन और मर्मस्पर्शी सृजन।
जवाब देंहटाएंविसंगती भी यही है कि "उन्हें सब पता है" ये हमें पता है और हम लोकतंत्र कहलाने वाले देश में बेजुबान बैठे हैं,लोकतंत्र क्या तानाशाही मे अन्तर्धान हो गया।,हमारे पास एक स्थापित तगड़ा विपक्ष भी नहीं है,और हम प्रजाजन बस अपने हित से ऊपर ही कहां उठ पा रहे हैं।
सभी सामायिक दुर्दशा पर ध्यान दिलाने वाले साहित्यकारों को नमन वे अपना दायित्व बखूबी निभा रहे हैं,जन मानस तक ये श्याम वर्ण पक्ष पहुंचा रहे हैं।
साधुवाद।
अप्रतिम चिंतन।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय कुसुम दी जी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु। स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
हटाएंसादर
बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर।
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