धूसर रंग की ओढ़नी ओढ़े
आज उदास है क्यों कविता?
इतनी उदास
कि खिलखिलाहट
ओढ़ने की लालसा में लिपटी
जतन की भट्टी में
स्वयं को तपाती है कविता।।
मन के किवाड़ों पर
अवसाद की कुंडी के सहारे
जड़ा है साँकल से मौन!
शिथिल काया की विवशता
सूनेपन को समीप बैठा
लाड़ लड़ाती है कविता।।
बादलों के कोलाहल में
खालीपन है दिखावे का
परायेपन की नमी देख
दामिनी सी हँसी
खूँटी पर टँगाऐ
बैठी है कविता ।।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'