धूसर रंग की ओढ़नी ओढ़े
आज उदास है क्यों कविता?
इतनी उदास
कि खिलखिलाहट
ओढ़ने की लालसा में लिपटी
जतन की भट्टी में
स्वयं को तपाती है कविता।।
मन के किवाड़ों पर
अवसाद की कुंडी के सहारे
जड़ा है साँकल से मौन!
शिथिल काया की विवशता
सूनेपन को समीप बैठा
लाड़ लड़ाती है कविता।।
बादलों के कोलाहल में
खालीपन है दिखावे का
परायेपन की नमी देख
दामिनी सी हँसी
खूँटी पर टँगाऐ
बैठी है कविता ।।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
मन की साँकले खोल दो, मौन तौड़ दो, कल्पक तो जिंदा ही कविता के सहारे रहता है, न उदास होने दो मन को तो कविता भी हंसेगी खिलखिलायेगी , हां मुझे विश्वास है एक दिन और जल्दी ही उदासियों की परछाइयों से निकल कविता मुस्कुराएगी।
जवाब देंहटाएंकुछ थकी सी लेखनी,पर सुंदर सृजन ।
सस्नेह! जतन की भट्टी नहीं जलानी जतन की फूलवारी लगानी है ।
दिल से आभार आदरणीय दी।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
उम्मीद है उदासी जल्द खत्म होगी।
जवाब देंहटाएंसही कहा।
हटाएंआभारी हूँ अनुज।
सादर
इस भयावह माहोल में जब मन ही उदासीन है तो कविता भी उदास ही होगी न...
जवाब देंहटाएंबहुत ही संवेदनशील भावपूर्ण सृजन।
सही कहा आपने दी।
हटाएंस्नेह बनाए रखे।
सादर
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (15-05-2021 ) को 'मंजिल सभी को है चलने से मिलती' (चर्चा अंक-4068) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत बहुत शुक्रिया सर।
हटाएंसादर
चारों ओर छाए घने अन्धकार, भयावह ख़बरों से आज यह निराश हताश जरूर है ! पर जल्द ही इसकी खुशहाली लौटेगी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
जीवन की बगिया महकेगी और कविता भी खिलखिलाएगी।बस कुछ दिन की उदासी है यह बदली भी छट जाएगी। बहुत सुंदर रचना सखी।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ सखी।
हटाएंस्नेह बनाए रखे।
सादर
धूसर रंग की ओढ़नी ओढ़े
जवाब देंहटाएंआज उदास है क्यों कविता?
संवेदनशील सृजनात्मकता ।
आभारी हूँ आदरणीय मीना दी।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
छलकते दर्द की कटु अनुभूति का सुंदर प्रकटीकरण। हार्दिक शुभकामनाएं अनीता सैनी जी। ।।।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ सर।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
जो सवाल आपने पूछा है अनीता जी, उसका जवाब आपको भी मालूम है और हम सबको भी। कविता तो माहौल से ही जन्म लेती है। माहौल उदास है तो कविता कैसे मुसकराए?
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने आदरणीय सर।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
बहुत सुन्दर सृजन. बधाई.
जवाब देंहटाएंदिल से आभार आदरणीय दी।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर