शनिवार, जून 19

भँवरजाल


रीत-प्रीत रा उलझ्या धागा

लिपट्या मन के चारु मेर

लाज-शर्म पीढ़े पर बैठी 

झाँझर-झूमर बाँधे बेर ।।


जेठ दुपहरी ओढ़ आँधी 

बदरी भरके लाव नीर 

 माया नगरी राचे भूरो

छाजा नीचे लिखे पीर 

आतो-जातो शूल बिंधतो 

मरु तपे विधना रो फेर।।


टिब्बे ओट में सूरज छिपियो

साँझ करती पाटा राज

ढलती छाया धरा गोद में

अंबर लाली ढोंव काज

पोखर ऊपर नन्हा चुज्जा

पाखी झूम लगाव टेर।।


एक डोर बंध्यो है जिवड़ो

सांस सींचता दिवस ढलो

पूर्णिमा रा पहर पावणा

शरद चाँदनी साथ भलो

तारा रांची रात सोवणी

उगे सूर उजालो लेर।।


@अनिता सैनी 'दीप्ति' 

मंगलवार, जून 15

घुट्टी



उतावलेपन में डूबी इच्छाएँ
दौड़ती हैं
बेसब्री-सी भूख की तरह
 प्रसिद्धि के लिबास में
आत्मीयता की ख़ुशबू में सनी 
पिलाने मर्म-स्पर्शिनी
उफनते क्षणिक विचारों की
घोंटी हुई पारदर्शी घुट्टी
और तुम हो कि
निर्बोध बालक की तरह
भीगे कपासी फाहे को
होठों में दबाए
तत्पर ही रहते हो पीने को
अवचेतन में अनुरक्त हैं 
विवेक और बुद्धि 
चिलचिलाती धूप का अंगवस्त्र 
कंधों पर रहता है तुम्हारे
फिर भी 
नहीं खुलती आँखें तुम्हारी
भविष्य की पलकों के भार से
अनजान हो तुम
उस अँकुरित बीज की तरह
जिसका छिलका अभी भी
रक्षा हेतु उसके शीश पर है
वैसे ही हो तुम
कोमल बहुत ही कोमल
नवजात शिशु की तरह
तभी तुम्हें प्रतिदिन पिलाते हैं
भ्रमिक विचारों की घोंटी हुई घुट्टी।

@अनीता सैनी 'दीप्ति'

सोमवार, जून 7

धूलभरे दिनों में



धूलभरे दिनों में
न जाने हर कोई क्यों था रुठा ?
बदहवासी में सोए स्वप्न
शून्य की गोद में समर्पित आत्मा
नींद की प्रीत ने हर किसी को था लूटा
चेतन-अवचेतन के हिंडोले पर
मनायमान मुखर हो झूलता जीवन
मिट्टी की काया मिट्टी को अर्पित
पानी की बूँदों को तरसती हवा
समीप ही धूसर रंगों में सना बैठा था भानु
पलकों पर रेत के कणों की परत
हल्की हँसी मूछों को देता ताव
हुक़्क़े संग धुएँ को प्रगल्भयता से गढ़ता
अंबार मेघों का सजाए एकटक निहारता
साँसें बाँट रहा था उधार।

@अनीता सैनी 'दीप्ति'

बुधवार, जून 2

मौन प्रभाती



पाखी मन व्याकुल है साथी 
खोई-खोई मौन प्रभाती।
भोर धूप की चुनरी ओढ़े 
विकल रश्मियाँ लिखती पाती।।

मसि छिटकी ज्यूँ मेघ हाथ से
पूछ रहे हैं शब्द कुशलता
नूतन कलियाँ खिले आस-सी
मीत तरु संग साथ विचरता
सुषमा ओट छिपी अवगुंठन 
गगरी भर मधु रस बरसाती।।
 
 पटल याद के सजते बूटे
 छींट प्रीत छिटकाती उजले
रंग कसूमल बिखरी सुधियाँ
पीर तूलिका उर से फिसले
स्वप्न नयन में नित-नित भरती
रात  चाँद की जलती बाती।।

शीतल झोंका ले पुरवाई
उलझे-उलझे से भाव खड़े
कुसुम पात सजते मन मुक्ता 
भावों के गहने रतन जड़े 
भीगी पलकें पथ निहारे 
अँजुरी तारों से भर जाती।।

@अनीता सैनी 'दीप्ति'