रीत-प्रीत रा उलझ्या धागा
लिपट्या मन के चारु मेर
लाज-शर्म पीढ़े पर बैठी
झाँझर-झूमर बाँधे बेर ।।
जेठ दुपहरी ओढ़ आँधी
बदरी भरके लाव नीर
माया नगरी राचे भूरो
छाजा नीचे लिखे पीर
आतो-जातो शूल बिंधतो
मरु तपे विधना रो फेर।।
टिब्बे ओट में सूरज छिपियो
साँझ करती पाटा राज
ढलती छाया धरा गोद में
अंबर लाली ढोंव काज
पोखर ऊपर नन्हा चुज्जा
पाखी झूम लगाव टेर।।
एक डोर बंध्यो है जिवड़ो
सांस सींचता दिवस ढलो
पूर्णिमा रा पहर पावणा
शरद चाँदनी साथ भलो
तारा रांची रात सोवणी
उगे सूर उजालो लेर।।
@अनिता सैनी 'दीप्ति'