रीत-प्रीत रा उलझ्या धागा
लिपट्या मन के चारु मेर
लाज-शर्म पीढ़े पर बैठी
झाँझर-झूमर बाँधे बेर ।।
जेठ दुपहरी ओढ़ आँधी
बदरी भरके लाव नीर
माया नगरी राचे भूरो
छाजा नीचे लिखे पीर
आतो-जातो शूल बिंधतो
मरु तपे विधना रो फेर।।
टिब्बे ओट में सूरज छिपियो
साँझ करती पाटा राज
ढलती छाया धरा गोद में
अंबर लाली ढोंव काज
पोखर ऊपर नन्हा चुज्जा
पाखी झूम लगाव टेर।।
एक डोर बंध्यो है जिवड़ो
सांस सींचता दिवस ढलो
पूर्णिमा रा पहर पावणा
शरद चाँदनी साथ भलो
तारा रांची रात सोवणी
उगे सूर उजालो लेर।।
@अनिता सैनी 'दीप्ति'
राजस्थान की आंचलिकता के रंग और महक में पगी
जवाब देंहटाएंअत्यंत सुन्दर भावाभिव्यक्ति । आपकी श्रम साधना अद्भुत है । हिन्दी के समान राजस्थानी लिपि में भी कमाल का लिखती हैं ।
आभारी हूँ दी आदरणीय दी ।
हटाएंग्रामीण परिवेश से जुड़ी होने से कभी कभी हृदय में भाव मुखर हो जाते है।सराहनासम्पन्न प्रतिक्रिया मिली दिल से आभार।
सादर
बहुत सुंदर कविता।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ अनुज।
हटाएंसादर
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (20-06-2021) को 'भाव पाखी'(चर्चा अंक- 4101) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
अनिता सुधीर
आभारी हूँ आदरणीय अनिता जी मंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति और वो भी राजस्थानी अंदाज में। बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय ज्योति बहन भाव समझने का प्रयास किया आपने।
हटाएंसादर
वाह,बहुत सुंदर लिखा है आपने।🌻🙏
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ अनुज।
हटाएंसादर
वाह! मारवाड़ की सौंधी खुशबू बिखेरता सुंदर नवगीत।
जवाब देंहटाएंअपने अँचल की भाषा का अहसास सदा ही सुरंगा होता है उस पर इतनी भावपूर्ण रचना ।
साधुवाद ।
मने तो बोत चोखी लागी मदुरी मदुरी।
मिश्री की डली
सही कहा दी अपने आँचल की भाषा में पगे भाव घणा चोखा लगये। आपकी प्रतिक्रिया से मन प्रफुलित हो गए।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
वाह बहुत सुन्दर भाव हैं नव गीत के !
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय अनुपमा जी।
हटाएंसादर
बहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर।
हटाएंबहुत सुंदर रचना....
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय शरद जी।
हटाएंसादर
राजस्थान की आंचलिक भाषा में मनमोहक सृजन प्रिय अनीता जी,
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय कामिनी दी जी मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंसादर
वाह बेहद खूबसूरत रचना सखी 👌👌
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय अनुराधा जी।
हटाएंसादर
एक डोर बंध्यो है जिवड़ो
जवाब देंहटाएंसांस सींचता दिवस ढलो
पूर्णिमा रा पहर पावणा
शरद चाँदनी साथ भलो....
बहुत ही सुंदर रचना। मन को भा गई। ।।।।
आभारी हूँ सर आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया प्राप्त हुई।
हटाएंसादर
जेठ दुपहरी ओढ़ आँधी
जवाब देंहटाएंबदरी भरके लाव नीर
माया नगरी राचे भूरो
छाजा नीचे लिखे पीर
आतो-जातो शूल बिंधतो
मरु तपे विधना रो फेर।।...काश कुछ बदल पाता। बहुत सुंदर ख़ुश रहो।
मन भारी न करें कभी कभी हृदय से भाव मुखर हो जाते है धूप छाव आदत में शुमार हो चुकी है और फिर धीरे-धीरे जीवन का हिस्सा बन जाते है।
हटाएंदिल से आभार।
सादर
बहुत सुंदर रचना, अनिता।
जवाब देंहटाएंदिल से आभार आदरणीय ज्योति बहन।
हटाएंबहुत सुन्दर रचना. एक दो शब्द समझ नहीं आया. पर भाव समझ गई. बधाई.
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय जेन्नी दी जी नवगीत मारवाड़ी बोली में पर भी आपने भाव समझने का प्रयास किया।प्रतिक्रिया मिली अत्यंत हर्ष हुआ।
हटाएंसादर
इस कविता की महक को एक राजस्थानी मिट्टी से जुड़ा व्यक्ति कितने निकट से अनुभव कर सकता है, यह मैं जानता हूँ। अभिनंदन अनीता जी।
जवाब देंहटाएंहमेशा ही आपकी प्रतिक्रिया मुझे संबल प्रदान करती है।यों ही मार्गदर्शन करते रहे।
हटाएंआभारी हूँ आदरणीय सर।
सादर
बहुत सुन्दर भावपूर्ण राजस्थानी गीत अनीता !
जवाब देंहटाएंमेरी सलाह है कि ऐसे गीतों के नीचे उनका हिंदी भावार्थ भी दे दिया करो. डॉक्टर जेन्नी शबनम की तरह मुझे भी कुछ शब्द समझ में नहीं आए.
भविष्य में ध्यान रखूँगी सर।
हटाएंआपकी प्रतिक्रिया मिली अत्यंत हर्ष हुआ।
आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
वाह
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
बहुत सुंदर भाव अनिता जी।सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय जिज्ञासा दी जी।
हटाएंसादर
बहुत सुंदर रचना,
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय मधुलिका जी।
हटाएंसादर
वाह अप्रतिम सृजन
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय सदा दी जी।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
राजस्थानि भाषा मुझे नहीं आती परन्तु कविता का मर्म अच्छी तरह समझ गया. सुंदर प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय राकेश 'राही'भाई जी आपकी प्रतिक्रिया प्राप्त हुई अत्यंत हर्ष हुआ।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
आंचलिक भाषा की गंध भी बाखूबी छुपी है इस भावनाप्रधान रचना में ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...
दिल से आभार आदरणीय नासवा जी सर आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया मिली।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर