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सोमवार, जून 7

धूलभरे दिनों में



धूलभरे दिनों में
न जाने हर कोई क्यों था रुठा ?
बदहवासी में सोए स्वप्न
शून्य की गोद में समर्पित आत्मा
नींद की प्रीत ने हर किसी को था लूटा
चेतन-अवचेतन के हिंडोले पर
मनायमान मुखर हो झूलता जीवन
मिट्टी की काया मिट्टी को अर्पित
पानी की बूँदों को तरसती हवा
समीप ही धूसर रंगों में सना बैठा था भानु
पलकों पर रेत के कणों की परत
हल्की हँसी मूछों को देता ताव
हुक़्क़े संग धुएँ को प्रगल्भयता से गढ़ता
अंबार मेघों का सजाए एकटक निहारता
साँसें बाँट रहा था उधार।

@अनीता सैनी 'दीप्ति'

32 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल .मंगलवार (8 -6-21) को " "सवाल आक्सीजन का है ?"(चर्चा अंक 4090) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    --
    कामिनी सिन्हा

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    उत्तर
    1. आभारी हूँ आदरणीय कामिनी दी जी।
      सादर आभार।

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  2. चेतन-अवचेतन के हिंडोले पर
    मनायमान मुखर हो झूलता जीवन
    मिट्टी की काया मिट्टी को अर्पित
    गहन व गंभीर भावाभिव्यक्ति अनीता जी । अति सुन्दर ।

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    उत्तर
    1. आभारी हूँ आदरणीय मीना दी जी।
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  3. प्रतीकात्मक शैली में लिखी अप्रतिम रचना।
    गहन संवेदनशील भाव !
    आँधी,लूं और वर्षा की कमी सभी कुछ, कुछ और भी कह रहा है।
    बहुत सुंदर सृजन।

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    उत्तर
    1. दिल से आभार आदरणीय कुसुम दी जी।
      आपकी प्रतिक्रिया प्राप्त हुई सृजन सार्थक हूआ।
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  4. उत्तर
    1. आभारी हूँ सखी।
      स्नेह बनाए रखे।
      सादर

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  5. जीवन दर्शन का सुंदर चित्रण।

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    उत्तर
    1. दिल से आभार आदरणीय दी।
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  6. पानी की बूँदों को तरसती हवा
    शुष्क जीवन को चित्रित करती पंक्तियाँ..

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  7. कविता का सकार रुप शब्दों के माध्यम से..वाह!बहुत सुंदर शब्द चित्र उकेरा है।
    बहुत ही सुंदर रचना अनीता 👌

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    1. दिल से आभार मनोबल बढ़ाने हेतु।
      सादर

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  8. अंबार मेघों का सजाए एकटक निहारता
    साँसें बाँट रहा था उधार।---गहरी अभिव्यक्ति...।

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  9. वर्तमान जीवन की विडम्बना को प्रभावशाली ढंग से व्यक्त किया है आपने

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    उत्तर
    1. आभारी हूँ आदरणीय दी आपके आने से सृजन सार्थक हूआ।
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  10. उत्तर
    1. आभारी हूँ आदरणीय सर।
      आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  11. चेतन-अवचेतन के हिंडोले पर
    मनायमान मुखर हो झूलता जीवन
    मिट्टी की काया मिट्टी को अर्पित
    पानी की बूँदों को तरसती हवा
    वाह!!!
    सामयिक हालातों का सटीक एवं हूबहू शब्दचित्रण..
    अद्भुत शब्दसंयोजन।
    उत्कृष्ट एवं लाजवाब सृजन।

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    उत्तर
    1. आभारी हूँ आदरणीय सुधा दी आपके आने से सृजन सार्थक हूआ।स्नेह बनाए रखे।
      सादर

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  12. नए से बिम्ब ,मर्मस्पर्शी वेदना !

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    1. दिल से आभार आदरणीय अनुपमा दी जी ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।स्नेह बनाए रखे।
      सादर

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  13. हमेशा की तरह प्रभावशाली लेखन, नित नए क्षितिजों को छूता हुआ - - शुभ कामनाओं सह आदरणीया अनीता जी ।

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    उत्तर
    1. दिल से आभार आदरणीय सर आपके आने से सृजन का नया आयाम मिली। हमेशा ही आपकी प्रतिक्रिया मेरा मनोबल बढ़ाती ही।आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  14. गहरा ... दिल को छूता सच लिखा है ...
    बहुत प्रभावी ...

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    उत्तर
    1. दिल से आभार आदरणीय सर प्रतिक्रिया में आपकी सकारात्मकता हमेशा प्रभावित करती है। आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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