धूलभरे दिनों में
न जाने हर कोई क्यों था रुठा ?
बदहवासी में सोए स्वप्न
शून्य की गोद में समर्पित आत्मा
नींद की प्रीत ने हर किसी को था लूटा
चेतन-अवचेतन के हिंडोले पर
मनायमान मुखर हो झूलता जीवन
मिट्टी की काया मिट्टी को अर्पित
पानी की बूँदों को तरसती हवा
समीप ही धूसर रंगों में सना बैठा था भानु
पलकों पर रेत के कणों की परत
हल्की हँसी मूछों को देता ताव
हुक़्क़े संग धुएँ को प्रगल्भयता से गढ़ता
अंबार मेघों का सजाए एकटक निहारता
साँसें बाँट रहा था उधार।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल .मंगलवार (8 -6-21) को " "सवाल आक्सीजन का है ?"(चर्चा अंक 4090) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
आभारी हूँ आदरणीय कामिनी दी जी।
हटाएंसादर आभार।
चेतन-अवचेतन के हिंडोले पर
जवाब देंहटाएंमनायमान मुखर हो झूलता जीवन
मिट्टी की काया मिट्टी को अर्पित
गहन व गंभीर भावाभिव्यक्ति अनीता जी । अति सुन्दर ।
आभारी हूँ आदरणीय मीना दी जी।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
प्रतीकात्मक शैली में लिखी अप्रतिम रचना।
जवाब देंहटाएंगहन संवेदनशील भाव !
आँधी,लूं और वर्षा की कमी सभी कुछ, कुछ और भी कह रहा है।
बहुत सुंदर सृजन।
दिल से आभार आदरणीय कुसुम दी जी।
हटाएंआपकी प्रतिक्रिया प्राप्त हुई सृजन सार्थक हूआ।
स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
वाह सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ सखी।
हटाएंस्नेह बनाए रखे।
सादर
जीवन दर्शन का सुंदर चित्रण।
जवाब देंहटाएंदिल से आभार आदरणीय दी।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
पानी की बूँदों को तरसती हवा
जवाब देंहटाएंशुष्क जीवन को चित्रित करती पंक्तियाँ..
बहुत बहुत शुक्रिया आपका।
हटाएंसादर
कविता का सकार रुप शब्दों के माध्यम से..वाह!बहुत सुंदर शब्द चित्र उकेरा है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना अनीता 👌
दिल से आभार मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंसादर
अंबार मेघों का सजाए एकटक निहारता
जवाब देंहटाएंसाँसें बाँट रहा था उधार।---गहरी अभिव्यक्ति...।
आभारी हूँ आदरणीय सर।
हटाएंसादर
वर्तमान जीवन की विडम्बना को प्रभावशाली ढंग से व्यक्त किया है आपने
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय दी आपके आने से सृजन सार्थक हूआ।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
बहुत ही सुंदर व उम्दा रचना
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय सर।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
चेतन-अवचेतन के हिंडोले पर
जवाब देंहटाएंमनायमान मुखर हो झूलता जीवन
मिट्टी की काया मिट्टी को अर्पित
पानी की बूँदों को तरसती हवा
वाह!!!
सामयिक हालातों का सटीक एवं हूबहू शब्दचित्रण..
अद्भुत शब्दसंयोजन।
उत्कृष्ट एवं लाजवाब सृजन।
आभारी हूँ आदरणीय सुधा दी आपके आने से सृजन सार्थक हूआ।स्नेह बनाए रखे।
हटाएंसादर
वाह🌻
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ अनुज।
हटाएंसादर
नए से बिम्ब ,मर्मस्पर्शी वेदना !
जवाब देंहटाएंदिल से आभार आदरणीय अनुपमा दी जी ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।स्नेह बनाए रखे।
हटाएंसादर
हमेशा की तरह प्रभावशाली लेखन, नित नए क्षितिजों को छूता हुआ - - शुभ कामनाओं सह आदरणीया अनीता जी ।
जवाब देंहटाएंदिल से आभार आदरणीय सर आपके आने से सृजन का नया आयाम मिली। हमेशा ही आपकी प्रतिक्रिया मेरा मनोबल बढ़ाती ही।आशीर्वाद बनाए रखे।
हटाएंसादर
गहरा ... दिल को छूता सच लिखा है ...
जवाब देंहटाएंबहुत प्रभावी ...
दिल से आभार आदरणीय सर प्रतिक्रिया में आपकी सकारात्मकता हमेशा प्रभावित करती है। आशीर्वाद बनाए रखे।
हटाएंसादर
वाह
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर ।
हटाएंसादर