[ वाकपटु ]
बार-बार वर्दी क्यों छिपाती है, माँ ?
मेरे पहनने पर प्रतिबंध
इतना क्यों घबराती है, माँ ?
मोह में बँधी है इसलिए या
किनारा अकेलेपन से करती है, माँ ?
ऊहापोह में उलझी, है उदास
कुछ कहती नहीं क्यों है ख़ामोश
विचारों की साँकल से जड़ी ज़बान
कल्पना के पँख पर सवार इच्छाएँ
क्यों उड़न भरने से रोकतीं हैं, माँ ?
खुला आसमां पर्वत की छाँव
प्रकृति संग,
साथ पंछियों का भाता बहुत
चाँद-सितारों से मिलकर बतियाना
बड़े होते अंगजात देख
क्यों अधीर हो जाती है, माँ ?
प्रीत के लबादे में लिपटी
वर्दी खूँटी पर टंगी बुलाती है
सितारे कतारबद्ध जड़े हों कंधे पर
ऐसे विचार पर विचारकर
वाकपटु कह
क्यों उद्विग्न हो जाती है, माँ ?
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,अनिता दी।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय ज्योति बहन।
हटाएंसादर
बहुत कुछ ऐसा है जो सिर्फ़ माँ हाई समझ सकती है …
जवाब देंहटाएंसमाज की सच्चाई से रूबरू जो होती है हर पल, हर लम्हा ..
बहुत कुछ ऐसा है जो सिर्फ़ माँ हाई समझ सकती है …
जवाब देंहटाएंसमाज की सच्चाई से रूबरू जो होती है हर पल, हर लम्हा ..
सहृदय आभार आदरणीय सर।
हटाएंसादर
खूबसूरत रचना।
जवाब देंहटाएंमाँ समाज के दोनों पक्षों को जानती है इसी लिए घबराती है। उम्दा।
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बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय रोहिताश जी।
हटाएंसादर
जवाब देंहटाएंप्रीत के लबादे में लिपटी
वर्दी खूँटी पर टंगी बुलाती है
सितारे कतारबद्ध जड़े हों कंधे पर
ऐसे विचार पर विचारकर
वाकपटु कह
क्यों उद्विग्न हो जाती है, माँ ?....बहुत सुंदर, आख़िर माँ ही तो है, जो भूत से सबक़ लेकर अपने बच्चों के भविष्य को सहेजने में लगी रहती है,बहुत शुभकामनाएँ आपको।
आभारी हूँ आदरणीया जिज्ञासा दी जी सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ।
हटाएंसादर
माँ के मन की ऊहापोह सुंदरता से उकेरी है !!सुंदर रचना !!
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीया अनुपमा मैम।
हटाएंस्नेह बनाए रखे।
सादर
माँ का ममत्व सागर से गहरा और माँ का मन चिड़िया के हृदय जैसा...उसके मन को समझने के लिए उसके जैसा ही बनना पड़ता है । गागर में सागर जैसी भावाभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंदिल से आभार आदरणीया मीना दी जी आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
बहुत सुंदर बहुत गहन रचना।
जवाब देंहटाएंमाँ बच्चों को लेकर सदा असुरक्षा के भावों से ग्रस्त रहती है पूर्व की परिस्थितियों में से कुछ ऐसा होता है जो वो नहीं चाहती कि बच्चों के जीवन में भी हो।
और बच्चों को उन सभी चीजों से दूर रखना चाहती है जो उन्हें उस मार्ग पर आकर्षित कर सकते हैं या करते हैं।
मन की संवेदनाओं को आपकी लेखनी बखूबी प्रकाशित करती हैं
सार्थक लेखनी।
दिल से आभार प्रिय कुसुम दी जी आपके स्नेह से अभिभूत हूँ रचना के मर्म को स्पष्ट करती सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन को प्रवाह मिला। दिल की गहराइयों से आभार।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
माँ अपने जीवन के अनुभव से बच्चों को सुरक्षित रखना चाहती है । गहन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंदिल से आभार आदरणीया संगीता मैम आपकी प्रतिक्रिया मिली अत्यंत हर्ष हुआ।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 08-07-2021को चर्चा – 4,119 में दिया गया है।
जवाब देंहटाएंआपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क
आभारी हूँ आदरणीय सर मंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सखी।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ सखी।
हटाएंसादर
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति 👌
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीया उषा किरण जी मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंसादर