घनिष्ठ तारतम्यता ही कहेंगे
अशोक के पेड़ का सहचर होना
कोयल गौरेया का ढेरों शब्द चोंच में दबाकर लाना
मीठे स्वर में प्रतिदिन सुबह आस-पास फैलाना
मन की प्रवृत्ति ही है कि वह
रखता है शब्दों का लेखा-जोखा
शब्दों का संचय प्रेम को प्राप्त करने जैसा ही है
मौन, मौन ही मौन,मौन में मुखर हुए शब्द
तब तक ही शब्द रहते हैं जब तक कि
एहसास शून्य से संश्लिष्ट हो नहीं गढ़ता एक चेहरा
चेहरा बनते ही चिपक जाता है हृदय की भित्ति से
साँसें छलनी बन छनतीं हैं
स्वयं के गढ़े सुविधा में पगे विचारों को
विचारों का तेज शब्दों से छवि गढ़ता है
छवि के प्रति पनपती है प्रीत ज्यों मीरा की।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
अभिव्यक्ति अच्छी है अनीता जी। एक बार पढ़कर जहाँ-जहाँ त्रुटियां हैं, सुधार लीजिए।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ सर कुछ आप मार्गदर्शन करें।
हटाएंसादर
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ सखी।
हटाएंसादर
सचमुच शब्दों की महिमा अपरम्पार है जो जीव जगत में व्याप्त है । बेहद खूबसूरती से भावों की गहनता को शब्दों गूंथा है आपने ..,अप्रतिम सृजन ।
जवाब देंहटाएंदिल से आभार आदरणीय मीना दी सही कहा आपने व्यक्ति स्वमं के भाव और शब्दों से व्यक्तित्व गढ़ता है।व्यक्ति नहीं व्यक्तित्व अमर होता है। सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु दिल से आभार।
हटाएंसादर
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (12-07-2021 ) को 'मानसून जो अब तक दिल्ली नहीं पहुँचा है' (चर्चा अंक 4123) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंगहन रचना
जवाब देंहटाएंस्वयं के गढ़े सुविधा में पगे विचारों को
जवाब देंहटाएंविचारों का तेज शब्दों से छवि गढ़ता है
छवि के प्रति पनपती है प्रीत ज्यों मीरा की !
कमाल की अभिव्यक्ति !
विचारों का तेज शब्दों से छवि गढ़ता है
जवाब देंहटाएंछवि के प्रति पनपती है प्रीत ज्यों मीरा की।
शब्दों और विचारों का सुंदर ताना बाना !! गहन अभिव्यक्ति !!
वाह, शब्दों के गूढ़ भाव समझाती सुन्दर रचना,अंतिम चार पंक्तियां मन को छू गईं।
जवाब देंहटाएंमौन में मुखर हुए शब्द...
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब रचना.
नई पोस्ट पौधे लगायें धरा बचाएं
मौन के शब्द बहुत मुखर होकर बोलते हैं ...
जवाब देंहटाएंबहुत गहरे भाव लिए ...
आकार साकार होकर ऐसे ही निराकार हो जाता है । बहुत ही सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंस्वयं के गढ़े सुविधा में पगे विचारों को
जवाब देंहटाएंविचारों का तेज शब्दों से छवि गढ़ता है
सही कहा जैसे हमारे भाव या विचार वैसा ही हमाया व्यक्तित्व...
बहुत सुन्दर एवं सार्थक सृजन।