पगलां माही कांकर चुभया
जूती बांध्य बैर पीया।
छागळ पाणी छळके आपे
थकया सांध्य पैर पीया।।
कुआँ जोहड़ा ताळ-तळेया
बावड़ थारी जोव बाट
बाड़ करेला पीळा पड़ ग्यो
सून डागळ ढ़ाळी खाट
मिश्री बरगी बातां थारी
नींद होई गैर पीया।।
धरती सीने डाबड़ धँसती
खिल्य कुंचा कोरा फूळ
मृगतृष्णा मंथ मरु धरा री
खेळ घणेरो खेल्य धूळ
डूह ऊपर झूंड झूलस्या
थान्ह पुकार कैर पीया।।
रात सुहाणी शीतळ माटी
ठौर ढूंढ़ रया बरखाण
दूज चाँद सो सोवे मुखड़ो
आभ तारक सो अभिमाण
छाँव प्रीत री बणी खेजड़ी
चाल्य पथ पर लैर पीया।।
@अनीता सैनी 'दीप्ति '
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (16-07-2021) को "चारु चंद्र की चंचल किरणें" (चर्चा अंक- 4127) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद सहित।
"मीना भारद्वाज"
आभारी हूँ आदरणीय मीना दी चर्चामंच पर मुझे स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय ज्योति जी।
हटाएंसादर
सुन्दर !!!
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय सर।
हटाएंसादर
कुआँ जोहड़ा ताल-तलैया
जवाब देंहटाएंबावड़ थारी जोव बाट
बाड़ करेला पीला पड़ ग्यो
सून डागल डाली खाट
मिश्री बरगी बातां थारी
नींद होई गैर पीया।। बेहद ख़ूबसूरत रचना राजस्थानी मिठास लिए - - भावों को बड़ी सहजता से आंचलिक शब्दों में पिरोया है आपने, हमेशा की तरह मुग्ध करती रचना।
आभारी हूँ आदरणीय शांतनु जी सर आपने मारवाड़ी की मिठास को समझा कुछ हिंदी से मिलती जुलती है।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
शानदार |
जवाब देंहटाएंजी शुक्रिया थान पसंद आई।
हटाएंघणों घणों आभार।
सादर
थोड़ा थोड़ा समझ पाई। लेकिन आंचलिक भाषा की मिठास ने सराबोर कर दिया । 👌👌👌
जवाब देंहटाएंदिल से आभारी हूँ आदरणीय संगीता दी जी समझ सकती हूँ आपकी कसमकस।सच दिल से आभार आप पधारे बड़ी ख़ुशी हुई।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
राजस्थान के आँचल की महक लिए ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण सम्व्बेदंशील रचना है ... दिल को छूती है ...
आभारी हूँ आदरणीय नासवा जी सर आपकी प्रतिक्रिया हमेशा मेरा मनोबल बढ़ाती है।
हटाएंसादर
वाह!! अद्भुत !!
जवाब देंहटाएंपगला माही कांकर चुभ गया...
मरु माटी की सुगंध समेटे , अहसासों को शब्दों में बांधती
सुंदर मारवाड़ी लोक गीत।👌👌
चाँद तुम्हारे म्हारे आँगणे ...
ध्वन्यर्थ भीतर कहीं गहरे में उतर आया । निज लय-ताल में... अति सुन्दर ।
हटाएंआदरणीय कुसुम दी जी आदरणीय अमृता दी जी दोनों का दिल की गहराइयों से अनेको आभार।
हटाएंआप दोनों की प्रतिक्रिया संबल है मेरा।
स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
जितना समझ आया, एक अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय दीपक जी सर।
हटाएंसादर
वाह, बहुत ही सुन्दर रचना अनीता जी! यद्यपि रचना का कुछ प्रतिशत भाग मेरे लिए बोधगम्य नहीं था, तथापि यह तो जान ही सका हूँ कि काव्यात्मक सुंदरता श्लाघनीय है।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय सर आपका आशीर्वाद अनमोल है।
हटाएंसंबल बाँधती प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत शुक्रिया।
यों ही आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
बावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय ज्योति खरे सर जी।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
कुआँ जोहड़ा ताल-तलैया
जवाब देंहटाएंबावड़ थारी जोव बाट
बाड़ करेला पीला पड़ ग्यो
सून डागल ढ़ाळी खाट
मिश्री बरगी बातां थारी
नींद होई गैर पीया।।यह पंक्तियाँ बहुत सुंदर लगी। अद्भुत रचना सखी।
आभारी हूँ सखी।
हटाएंसादर
सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर।
हटाएंसादर
थोड़ा समझ आया और बहुत कुछ समझ नहीं आया। अगर हिंदी भावानुवाद भी साथ साथ दिया होता तो हम जैसे पाठकों के लिए भी शायद अच्छा रहता। बहरहाल जो समझ आया उससे यह एक विरह की कविता लग रही है। सुन्दर। उम्मीद है जल्दी ही इसका हिंदी अनुवाद पढने को भी मिलेगा, अनीता जी।
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार विकास जी।
हटाएंमाफ़ी चाहती हूँ। मैं आपसे ही सृजन का हिंदी भावार्थ करने में आज में स्वयं का अक्षम पाती हूँ। नहीं समझ आता कहाँ से शुरु करुँ।
आप ब्लॉग पर पधारे अत्यंत हर्ष हुआ। मारवाड़ी को आपने समझने का प्रयास किया। इससे हर्ष की बात और क्या होगी।ब्लॉग पर आते रहें।
सादर
सूर्यमल्ल मिश्रण तथा कन्हैयालाल सेठिया जी के बाद राजस्थानी भाषा में काव्य-रचनाएं बहुत कम हो रही हैं जिससे इस सुंदर एवं मीठी भाषा का आस्वादन इसके अपने भाषा-भाषी ही नहीं कर पा रहे हैं। आप राजस्थानी भाषा में इतना सराहनीय रचना-कर्म कर रही हैं, यह अपने आप में ही बहुत बड़ी बात है। शेखावाटी बोली में रचित आपकी यह काव्य-रचना हृदयस्पर्शी है, इसमें कोई संदेह नहीं।
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार आदरणीय जितेंद्र माथुर जी सर।
हटाएंमेरे लिखे नवगीत में शेखावाटी की माटी की ख़ुशबू को महसूस कर सारगर्भित रुप में बाँधा आप का बहुत बहुत आभार।
राजस्थान भाषा से आपका लगाव सराहनीय है।
आपकी ऊर्जावान प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली।
बहुत बहुत शुक्रिया आपका।
सादर
प्रभावी रचना !!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया से।
हटाएंसादर
सुंदर लोकभाषा का रसास्वादन कराया आपने अनीता जी, समझ काम आई,परंतु भ2 बहुत अच्छा लगा, आपको हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंदिल से आभार आदरणीया जिज्ञासा दी जी मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
अनीता, तुम्हारे मारवाड़ी गीत बहुत सुन्दर होते हैं.
जवाब देंहटाएंइन में पहाड़ी नदी सा संगीत का प्रवाह होता है.
मेरे अनुरोध पर तुम सरल हिंदी में ऐसे गीतों का भावार्थ दे दिया करो या कम से कम कठिन शब्दों के अर्थ तो अवश्य ही दे दिया करो.
सादर आभार सर।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखे।
माफ़ी चाहती हूँ आपको कविता पढ़ने में परेशानी हुई।
कुछ भावार्थ और कठिन शब्दों अवश्य लिखूँगी।
मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत शुक्रिया।
सादर
वाह!प्रिय अनीता ,मन आनंदित हो गया पढकर ।बहुत ही खूबसूरत सृजन ।लोकभाषा की मधुरता की बात ही कुछ और है ।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ दी सृजन सार्थक हुआ आपकी प्रतिक्रिया मिली।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
बहुत अच्छा
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