समय दरिया में डूब न जाऊँ माझी
पनाह पतवार में जीवन पार लगाना है
भावनाओं के ज्वार-भाटे से टकरा
अंधकार के आँगन में दीप जलाना है।
शांत लहरों पर तैरते पाखी के पंख
परमार्थ के अलौकिक तेज से बिखरे
चेतना की चमक से चमकती काया
उस पाहुन को घरौंदे में पहुँचाना है।
चराचर की गिरह से मुक्त हुए हैं स्वप्न
शून्य के पहलू में बैठ लाड़ लड़ाना है
अंतस छिपी इच्छाओं का हाथ बँटाते
आवरण श्वेत जलजात से करना है।
नदी के गहरे में बहुत गहरे में उतर
अनगढ़ पत्थरों पर कविता को गढ़ते
सीपी-से सत्कर्म कर्मों को पहनाकर
झरे मृदुल वाणी ऐसा वृक्ष लगाना है।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
वाह , अद्भुत संकल्प ।
जवाब देंहटाएंमन की गहराई में उतर न जाने क्या क्या गढ़ना है ।
गहन सृजन
अनंत आभार आदरणीया संगीता दी जी ऊर्जावान प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर नमस्कार।
गहन भाव रचना।
जवाब देंहटाएंमृदुल वाणी झरते वृक्ष अनोखी व्यंजना,
अभिनव सृजन।
बहुत सुंदर।
दिल से आभार आदरणीया कुसुम दी जी आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
सीपी-से सत्कर्म कर्मों को पहनाकर
जवाब देंहटाएंझरे मृदुल वाणी ऐसा वृक्ष लगाना है।
वसुधैव कुटुम्बकम् जैसे संकल्प के साथ गहन चिंतन लिए अनूठी भावासिक्त रचना ।
दिल से आभार आदरणीया मीना दी जी सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता प्राप्त हुई।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
शांत लहरों पर तैरते पाखी के पंख
जवाब देंहटाएंपरमार्थ के अलौकिक तेज से बिखरे
चेतना की चमक से चमकती काया
उस पाहुन को घरौंदे में पहुँचाना है।
बहुत सुन्दर रचना
सादर आभार अनुज।
हटाएंसादर
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (20-7-21) को "प्राकृतिक सुषमा"(चर्चा अंक- 4131) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
आभारी हूँ कामिनी दी चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर।
हटाएंसादर
खूबसूरत अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर।
हटाएंसादर
अंधकार में दीप जला दो
जवाब देंहटाएंचैतन्यता का कर्मठता से मेल करा दो
पहुँचे जन-जन तक शुचि भाव मेरे
लेखनी को पावन वृक्ष बना दो।
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अत्यंत सुंदर लोककल्याण के भाव लिए सुंदर सृजन।
सस्नेह।
आपकी लिखी पंक्तियाँ सराहनीय है ऊर्जावान प्रतिक्रिया हेतु दिल से आभार।
हटाएंसादर
बेहतरीन रचना सखी।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सखी।
हटाएंसादर
सुंदर और अनुपम सृजन।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय संदीप जी आप आए सृजन सार्थक हुआ।
हटाएंसादर नमस्कार।
चराचर की गिरह से मुक्त हुए हैं स्वप्न
जवाब देंहटाएंशून्य के पहलू में बैठ लाड़ लड़ाना है
अंतस छिपी इच्छाओं का हाथ बँटाते
आवरण श्वेत जलजात से करना है।
Amazing and Really Very beautiful✨✨✨
आभारी हूँ मनीषा।
हटाएंसादर
सुंदर चिंतन तथा गूढ़ मनन । संतुष्टि तथा प्रेरणा का भाव प्रतिपादित करती सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंअनंत आभार आदरणीया जिज्ञासा दी जी आपकी प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ।
हटाएंसादर
वाह अनीता ! बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंअपने सर पर तुमने बहुत सारी ज़िम्मेदारियाँ ओढ़ ली हैं.
कभी इन ओढी हुई ज़िम्मेदारियों से पीछा छुड़ा कर ख़ुद को मौज-मस्ती के खुले आकाश में उड़ने दो !
आभारी हूँ सर आपका आशीर्वाद मिला।
हटाएंअत्यंत हर्ष हुआ आपकी प्रतिक्रिया मिली।
हमें पता ही नहीं चलता कब हम अपने चारों और अपने विचारों का आवरण गढ़ने लगते है उनसे बाहर निकलना असहज लगता है फिर धीरे-धीरे उन्हीं के साथ जीने की आदत हो जाती है और आदत एक दिन में नहीं छुटती।
सादर प्रणाम सर।
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर।
हटाएंसादर
सुंदर बिम्बों और प्रतीकों में गुँथे गए सुकोमल भाव उलझनों-भरे जीवन की विभिन्न परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य पर तत्त्वबोध को प्रधानता के साथ उभार रहे हैं। प्रकृति से जुड़े जीवन के तत्त्व चिंतन के केन्द्र में आकर शांत रस के शांति पथ में ढलते नज़र आते हैं।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना।
सादर आभार आदरणीय रवीन्द्र जी सर आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली।
हटाएंमनोबल बढ़ाने हेतु बहुत बहुत शुक्रिया।
आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंअभी बहुत चुनौतियाँ बाक़ी हैं.
अभी विश्राम कहाँ?
Miles to go before I sleep.
सही कहा सर।
हटाएंआपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा।
आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
सुन्दर रचना, अन्तिम चार पंक्तियाँ तो बहुत ही सुन्दर अनीता जी!
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ सर।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर प्रणाम
आपके ब्लॉग पर आज पहली बार आने का मौका मिला, बहुत खूब। राजस्थानी भाषा में पढ़ कर भी बहुत आनंद आया।
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत है सर।
हटाएंसृजन आपकी भावनाओं पर खरा उतरा इसके लिए।
बहुत बहुत शुक्रिया।
सादर
नदी के गहरे में बहुत गहरे में उतर
जवाब देंहटाएंअनगढ़ पत्थरों पर कविता को गढ़ते
सीपी-से सत्कर्म कर्मों को पहनाकर
झरे मृदुल वाणी ऐसा वृक्ष लगाना है।
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर सार्थक संकल्प
अद्भुत एवं लाजवाब....
आभारी हूँ आदरणीय सुधा दी जी सृजन सार्थक हुआ आपकी प्रतिक्रिया मिली।
हटाएंसस्नेह आभार