मनवार करे मनड़ो ढोला
कद मनावा रुठ्या मीत।
गुड़-शक्कर रो घोळ घौलियो
मिठे जल स्यूँ सींची प्रीत।।
बेल बूंटा बढ्या घणेरा
अंगना मंजरी फूले
प्रीत बादली छींटा छलके
झड़ी झूमती झुल्या झूले
सूना ढोला आज मालियो
राचे काजल कुंप गीत।।
गोटा-पत्ती ओढ़ लहरियो
पछुआ झांझरी झंकाव
गाँव-गलियाँ घूम अडाइयाँ
पाखी पुन मुग्ध लहराव
धुन छेड़ मन भावन गडरियो
पल्लू पगला उलझ रीत।।
धरती गोदां सोवे सुपणो
अंग-अंग अनंग उमड़े
सांझ लालड़ी उजलो मुखड़ो
अंबर आँचल आस जड़े
फूला में पद छाप निहारूं
प्रेम हृदय पावन पुनीत।।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
शब्द-अर्थ
अडाइयाँ-मैदानी भूमि
मालियाँ= घर के ऊपरी भाग का मुख्य कक्ष
ढोला-प्रिय
मनवार - स्वागत करना
घणेरा-बहुत सारे
लहरियों-मिश्रित रंगों का प्रिंट जो दुपट्टे, साड़ी और ओढ़नी में होता है
गोदां -गोद में
सुपणो- स्वप्न
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(०१-०८-२०२१) को
'गोष्ठी '(चर्चा अंक-४१४३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सादर नमस्कार।
हटाएंमैं अवश्य उपस्थित रहूँगी।
मंच पर मेरे सृजन को स्थान देने हेतु दिल से आभार।
सादर
एक और अति सुंदर, अति मनभावन राजस्थानी गीत आया है आपकी अद्भुत काव्य-प्रतिभा से। आपके राजस्थानी भाषा के गीत छंदबद्ध एवं लय से युक्त होते हैं, अतः गाए जा सकते हैं। अभिनन्दन आपका।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय जितेंद्र माथुर जी सर।
हटाएंआपकी प्रतिक्रिया प्राप्त हुई अत्यंत हर्ष हुआ।समीक्षा से सृजन को सार्थकता प्राप्त हुई।
बहुत बहुत शुक्रिया।
सादर
एक और राजस्थानी नवगीत आपकी लेखनी से...अद्भुत और अप्रतिम । मुग्ध करती भावाभिव्यक्ति । बहुत बहुत बधाई अनीता जी और अनन्त शुभकामनाएं इस नवसृजन के लिए ।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय मीना दी आपका स्नेह प्राप्त हुआ अभिभूत हूँ।मनोबल बढ़ाने हेतु दिल से आभार।
हटाएंसादर
वाह , इस बार तो अर्थ भी दिए हैं ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गीत।
प्रयास रहेगा दी आपकी भावनाओं पर खरा उतरने का।
हटाएंआभारी हूँ 🙏
सादर प्रणाम
वाह!!!
जवाब देंहटाएंआजकल राजस्थानी भाषा में बहुत ही सुन्दर गीत रच रही हैं आप प्रिय अनीता जी! शब्दार्थ देने हेतु शुक्रिया।
सुन्दर गीत के लिए बधाई एवं शुभकामनाएं।
हाँ दी पता नहीं क्या इनसे बाहर नहीं निकल पा रही हूँ।
हटाएंअब अच्छा लगने लगा मारवाड़ी में लिखना।
प्रयास रहेगा हिंदी में भी लिखूँ।
दिल से आभार मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
सादर
बहुत सुंदर,मधुर मनभावन लोकगीत रचा है वाह।
जवाब देंहटाएंशब्दार्थ मुझ जैसे पाठकों के लिए बहुत सहायक है अनु।
लोकगीतों की परंपरा जीवित रखने में तुम्हारे प्रयास सराहनीय हैं।
शुभकामनाएं
सस्नेह।
आभारी हूँ दी।
हटाएंबस भावों का ताना बना गूँथ लेती हूँ।प्रयास रहता है बेहतर लिखने का।
दिल से आभार श्वेता दी।
अत्यंत हर्ष हुआ।
सादर
गीत का नैसर्गिक धुन मन आपरुपी पकड़ कर गुनगुना रहा है । बहुत ही अच्छा लगा एकमेक होकर ।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीया अमृता दी।
हटाएंसच एकमेक होना मन मोह गया।
स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर नमस्कार
बहुत सुंदर गीत अनिता और वो भी अपनी मातृभाषा में। बHउत खूब।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ ज्योति बहन मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ सर।
हटाएंसादर
"गुड़-शक्कर रो घोळ घौलियो
जवाब देंहटाएंमिठे जल स्यूँ सींची प्रीत।।"
सच गीत क्या है गुड़ शक्कर का मधुर घोल ही है जो मन में घुल रहा है मीठी सी हिलोर लेके ।
अब प्रिय का रूठा रहना असंभव है ।
बहुत सुंदर श्रृंगार गीत अप्रतिम, सोनों है बाईं थारो बिंजनो।
मरुस्थल की प्रिति लेके
उमड़ घुमड़ रई नेह बदरिया
जद आ बरसे बावली
जद आवे घर म्हारा सांवरिया।
सस्नेह ।
आपकी प्रतिक्रिया ने सृजन को जीवंतकर दिया। गहनता से परिपूर्ण आपकी प्रतिक्रिया अनमोल है।समीक्षक दृष्टि को मेरा सादर प्रणाम।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
सौंदर्य बिखेरता सुंदर गीत । बहुत ज्यादा नहीं समझ आया।पर भाव बहुत सुंदर हैं ।
जवाब देंहटाएंदिल से आभार सृजन के मर्म पर दृष्टि डालने हेतु।
हटाएंसादर
वाह बहुत बेहतरीन
जवाब देंहटाएंदिल से आभार आदरणीय सदा दी।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
बहुत ही सुन्दर गीत अनीता !
जवाब देंहटाएंतुमने कठिन शब्दों के अर्थ दे कर हमारे लिए इस गीत को समझना आसान कर दिया.
इस गीत का वीडियों भी बनाओ ! या तो तुम इसे ख़ुद गाओ या फिर किसी कुशल गायिका से इसे गवाओ !
आभारी हूँ आदरणीय सर।
हटाएंआपका आशीर्वाद मिला सृजन सार्थक हुआ।आदरणीय कुसुम दी से निवेदन करुँगी। आप कुछ और कहते तो सर माथे,मैं नहीं गा सकती,मेरी आवाज़...। मैं कुए का मेढ़क हूँ 😊
सादर प्रणाम
अर्थ देने पर समझ आया बहुत प्यारा गीत !!
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय अनुपमा दी जी।
हटाएंसादर
वाह जी वाह क्या कहने
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर।
हटाएंसादर