अबोलापन
बाँधता है
संवाद से पहले
होनेवाली
भावनाओं की
उथल-पुथल को
साँसों की डोरी से ।
मौन भी काढ़ता कसीदा
आदतन विराजित
एक कोने में
संवादहीनता ओढ़े
दर्शाता हृदय की गूढ़ता को ।
भाव-भंगिमा का
बिखराव
एहसास के सेतु पर अकुलाहट
समयाभाव
अपेक्षा का ज्वार
गहरे
बहुत गहरे में
है डूबोता।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 03 अगस्त 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय यशोदा दी पाँच लिंकों पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (3-8-21) को "अहा ये जिंदगी" '(चर्चा अंक- 4145) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
--
कामिनी सिन्हा
आभारी हूँ कामिनी दी चर्चा मंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
गूढ़ सृजन।
जवाब देंहटाएंमौन सदा सामने वाले को अपने रहस्य से भयभीत करता है।
और प्रतिवादी के अंदर दोषी होने के भाव उत्पन्न करता है ।
अभिनव, अप्रतिम , प्रबुद्ध मंथन ।
आपकी प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ आदरणीय कुसुम दी जी।
हटाएंब्लॉग की दुनिया में मैं आपकी सबसे बड़ी प्रशंसक हूँ आपकी लेखनी को नमन।
स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
बेहद खूबसूरत अल्फाज़ों में मन के चिंतन को प्रकट करती भावासिक्त अभिव्यक्ति । अत्यन्त सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय मीना दी सृजन सार्थक हुआ आपकी प्रतिक्रिया मिली।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
बहुत ही खूबसूरत कविता है...। गहनतम शब्दों और भावों से सजी कविता...।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय संदीप जी सर।
हटाएंसादर
अति सूक्ष्म विश्लेषण से उत्पन्न
जवाब देंहटाएंगूढ़ रचना।
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पलटकर बोलने से
आहत होते अंहकार की
प्रतिध्वनि के आर्तनाद को
रिसने से रोकने के लिए
सीलबंद किया गया
अबोलापन।
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सस्नेह।
आभारी हूँ आदरणीय श्वेता दी सृजन सार्थक हुआ आपकी प्रतिक्रिया से।
हटाएंस्नेह बनाए रखे।
सादर
वाह, खूबसूरत रचना, खूबसूरत शब्द व खूबसूरत शब्द-विन्यास!
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आपकी प्रतिक्रिया से संबल मिला।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
मौन को परिभाषित करती बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति। आपको हार्दिक शुभकामनाएं अनीता जी।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय जिज्ञासा दी आपकी प्रतिक्रिया अनमोल है।स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
हटाएंसादर
अबोलापन
जवाब देंहटाएंरहता मन उद्विग्न
चलता मौन संवाद
अपने आप से
और मिलता
मौका दूसरे को
खुद को साध लेने का
कि
जब भी सामना होगा
अनगिनत प्रश्नों का
कैसे किया जाएगा
बचाव खुद का ।
इस लिए मेरी सलाह कि मौका ही न दो संभालने का और न रहो अबोले ।😄😄😄
आभारी हूँ आदरणीय संगीता दी जी।
हटाएंइस अपार स्नेह हेतु दिल से आभार।
आपका हुकुम सर आँखों पर 😊
आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
मौन भी काढ़ता कसीदा
जवाब देंहटाएंआदतन विराजित
एक कोने में
संवादहीनता ओढ़े
दर्शाता हृदय की गूढ़ता को । कम शब्दों में बहुत कुछ कह जाती है आपकी रचना - - हमेशा की तरह असाधारण लेखनी मंत्रमुग्ध कर जाती है - - नमन सह अनीता दी।
आभारी हूँ आदरणीय शांतनु जी सर अनमोल प्रतिक्रिया हेतु।आशीर्वाद बनाए रखे।
हटाएंसादर नमस्कार
बेहद खूबसूरत सृजन
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ अनुज।
हटाएंसादर
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ सर।
हटाएंसादर
अबोलेपन तथा मौन की भी भाषा होती है अनीता जी; बस उसे जो सुन सके, समझ सके, ऐसा हृदय होना चाहिए। बहुत अच्छी कविता है आपकी।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ सर आपकी प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ।
हटाएंसादर नमस्कार।
बहुत ही गहरी डुबकी है ये .... सारी बातें कही भी नहीं जा सकती ।
जवाब देंहटाएंदिल से आभार आदरणीय अमृता दी जी संबल मिला आपकी प्रतिक्रिया से।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
बेहद गहनतम भाव ....
जवाब देंहटाएंदिल से आभार प्रिय सदा दी जी।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर नमस्कार
मौन भी काढ़ता कसीदा
जवाब देंहटाएंआदतन विराजित
एक कोने में
संवादहीनता ओढ़े
दर्शाता हृदय की गूढ़ता को ।
बहुत गहन भाव उकेरे हैं !! बहुत बढ़िया रचना !!
आभारी हूँ आदरणीय अनुपमा दी जी सृजन सार्थक हुआ।
हटाएंसादर
अबोलापन
जवाब देंहटाएंबाँधता है
संवाद से पहले
होनेवाली
भावनाओं की
उथल-पुथल को
साँसों की डोरी से ।
जो तोलता है अपने भावों को बाहर फेंकने से पहले हिय के तराजू में...
वाह!!!!
गहन अभिव्यक्ति
आभारी हूँ आदरणीय सुधा दी जी।
हटाएंसादर आभार
अत्यंत सुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर।
हटाएंसादर
सुंदर साहित्यिक भाषा है। बढिया रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर।
हटाएंसादर
बेहतरीन और बेहद खूबसूरत
जवाब देंहटाएंसादर आभार।
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