हवाओं में छटपटाहट
धूप में अकुलाहट है
व्यक्त-अव्यक्त से उलझता
आशंकाओं का ज्वार है।
तर्क-वितर्क के
उखड़े-उखड़े चेहरे हैं
कतारबद्ध उद्गार ढोती विनतियाँ
आस को ताकता अंबर है।
पलकों से लुढ़कते प्रश्न
मचाया विचारों ने कोहराम है
अभिमान आँखों से झरता
कैसा मानवता का तिरस्कार है?
ज़ुकाम के ज़िक्र पर जलसा
खाँसने पर उठता बवाल है
चुप्पी के कँपकपाते होंठ
सजता नसीहत का बाज़ार है!
पुकारती इंसानीयत
पाषाण लगाते गुहार हैं
मूर्छित मिट्टी रौंदते अहं के पाँव
स्वार्थ की रस्सी से बँधे विश्व के हाथ हैं!
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
बहुत सुन्दर भावप्रवण प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर।
हटाएंसादर
सम सामायिक ,बहुत सुंदर रचना |
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीया अनुपमा जी।
हटाएंसादर
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (22-8-21) को "भावनाओं से हैं बँधें, सम्बन्धों के तार"(चर्चा अंक- 4164) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी। आप सभी को रक्षाबंधन के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनायें
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कामिनी सिन्हा
आभारी हूँ कामिनी जी मंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
सब मूक - बधिर हो रहे । मन में आक्रोश है लेकिन कुछ बोल नहीं रहे ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना ।
आभारी हूँ दी।
हटाएंसच कहा आपने।
सादर
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, अनीता।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ ज्योति बहन।
हटाएंसादर
सही कहा सचमुच ये आज कितना बदला बदला सा है
जवाब देंहटाएंज़ुकाम के ज़िक्र पर जलसा
खाँसने पर उठता बवाल है
चुप्पी के कँपकपाते होंठ
सजता नसीहत का बाज़ार है
जुकाम जैसी आम समस्या पर आज इतना बबाल मच रहा है
बहुत ही सुन्दर...
लाजवाब सृजन।
आभारी हूँ सुधा जी।
हटाएंसादर
सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर।
हटाएंसादर
पुकारती इंसानियत
जवाब देंहटाएंपाषाण लगाते गुहार हैं
मूर्छित मिट्टी रौंदते अहं के पाँव
रस्सी से बँधे विश्व के हाथ हैं!
समसामयिक विषम परिस्थितियों पर गहनता लिए हृदयस्पर्शी रचना ।
आभारी हूँ मीना दी।
हटाएंसादर
तर्क वितर्क ही तो सल द्वन्द है मन का ...
जवाब देंहटाएंइसके भाहर नहीं आ पाता मन ... उत्तर तलाशता है कई अनसुलझे भावों का और जो जरूरी भी है ... सत्य जान्ने के लिए ...
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय नासवा जी सर।
हटाएंदो वर्षो से हो क्या रहा है सब समझ से परे है।
मासूम बच्चे स्त्रियाँ अफगानिस्तान की हालत....
कहने में अक्षम हूँ।
सादर
आज व्याप्त विसंगतियों का बहुत ही मार्मिक चित्रण करती गहन भाव,और समृद्ध शब्द रचना।
जवाब देंहटाएंहृदय स्पर्शी रचना।
अभिनव सृजन।
आभारी हूँ आदरणीया कुसुम दी जी।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर प्रणाम
खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया।
हटाएंवाह जी वाह बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ सर।
हटाएंसादर
यथार्थ पर तीक्ष्ण दृष्टि डालती गहन रचना, बहुत बहुत बधाई अनीता जी ।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय जिज्ञासा दी आपकी प्रतिक्रिया मिली सृजन सार्थक हुआ।
हटाएंसादर
बहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर।
हटाएंसादर प्रणाम।