भरे भादवों बळ मन माही
बैरी घाम झुलसाव है
बदल बादली भेष घणेरा
अंबरा चीर लुटाव है।।
उखड़ो-उखड़ो खड़ो बाजरो
ओ जी उलझा मूँग-ग्वार
हरा काचरा सुकण पड़ग्या
ओल्या-छाना करे क्वार
सीटा सिर पर पगड़ी बांध्या
दाँत निपोर हर्षाव है।।
हाथ-हथेली बजाव हलधर
छेड़े रागनी नित नई
गीत सोवणा गाव गौरया
हिवड़े उठे फुहार कई
आली-सीली डोल्य किरण्या
समीरण लाड लडाव है।।
सुख बेला बरसाती आई
कुठलो काजल डाल रयो
मेडा पार लजायो मनड़ो
होळ्या-होळ्या चाल रयो
ठंडी साँस भरे पुरवाई
झूला पात झूलाव है।।
@अनीता सैनी 'दिप्ति'
शब्द =अर्थ
घाणेरा=बहुत अधिक
लुटाव=लुटाना
उखड़ो-उखड़ो=रुठा-रुठा
सुकण=सुखना
ओल्या-छाना =छिपाना
सीटा=बाजरे की कलगी
सोवणा =सुंदर
आली-सीली =भीगी हुई
डोल्य = घूमना
कुठलो =अनाज डालने का मिट्टी का एक पात्र
होळ्या-होळ्या=धीरे -धीरे
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 30 अगस्त 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय दी सांध्य दैनिक पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
बारिश के अभाव में खेतों की फसल का चित्रण और उससे पूर्व की वर्षा से उपजा फसल का सौन्दर्य देखते ही बनता है आपके सृजन में..अत्यंत सुन्दर और मनोरम सृजन ।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय मीना दी आपकी प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (31-8-21) को "कान्हा आदर्शों की जिद हैं"'(चर्चा अंक- 4173) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
आभारी हूँ आदरणीय कामिनी दी मंच पर स्थान देने हेतु सादर आभार।
हटाएंभाषा तो ठीक ठीक समझ नहीं आई पर शब्दार्थ से मिलाकर कुछ कुछ समझा भादों मास के मौसम परिवर्तन और फसलों को लेकर लयबद्ध सृजन...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर।
आभारी हूँ आदरणीय सुधा दी जी।
हटाएंआपकी प्रतिक्रिया ही संबल है मेरा।
सादर
लोक भाषा में प्रकृति का सुंदर वर्णन
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय अनिता दी जी।
हटाएंसादर
बारिश, खेत, बाजरा और भी बहुत कुछ जो नहीं समझ पाए और आपने लिख कर समझाए ... सभी आंचलिक शब्दों से मिल के लाजवाब रचना ने जन्म लिया है ... बहुत लाजवाब ...
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ सर उत्साहवर्धन हेतु।
हटाएंसादर
वाह वाह अनीता जी! बहुत सुंदर, सचमुच बहुत ही सुंदर गीत रचा आपने।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ सर आपकी प्रशंसा से सृजन सार्थक हुआ।
हटाएंसादर
आली-सीली सी...घाणेरा सोवणा ।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ दी।
हटाएंअत्यंतहर्ष हुआ।
आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
भाषा बहुत अच्छी तरह से तो नही समझ सकी परन्तु भाव समझ में आगया बहुत ही सुन्दर रचना है।
जवाब देंहटाएंदिल से आभार आदरणीय उर्मिला दी जी।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
मारवाड़ी में प्रकृति को चित्रण गणों सोवणों करो।
जवाब देंहटाएंदूर बैठा यूँ लागरो है जइया घर और खेत की सारी बात कह दी हो।
सृजन की तारीफ़ हेतु घणो-घणो आभार।
हटाएंथाने चोखो लाग्यो मन खुश होग्यो।
सादर
अहा ! सुंदर शब्दों का ताना
जवाब देंहटाएंगीत सोवणा गाव गौरया
हिवड़े उठे फुहार कई
बेजोड़ सृजन
आभारी हूँ आदरणीय सदा दी जी।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
बहुत सुंदर। जन्माष्टमी की खूब बधाईयां
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ सर आपको भी हार्दिक बधाई।
हटाएंसादर
गीत सोवणा लिखे अनीता !
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम सर।
हटाएंमारवाड़ी थारे मुख से घणी चोखी लागी।
सादर
बहुत बहुत सुंदर तपते तन मन पर पावस की फूहार ,खेत खलियानों में नव जीवन के संकेत और साथ ही नवोढ़ा या गोरी का कुछ कल्पना भर से जलाना ।
जवाब देंहटाएंएक गीत में बहुत कोमल भाव और लावण्य मय अहसास।
सुंदर गीत।
बधाई।
जलाना को लजाना पढ़ें कृपया🙏
हटाएंसच दी आपकी प्रतिक्रिया सृजन में प्राण फूँक देती है। अनेकानेक आभार दिल से।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
"अभी तक म्हारे जिवणा में नाचे मोर और सुरीली रुत आई म्हारा देश में" वाले गीत सुन सुनाकर बड़े हुए हैं हम परंतु आज आपने अतनी खूबसूरती से प्रकृति और खेत खलिहान कोचित्रित किया कि कई कई बार पढ़ गई, अद्भुत लिखा अनीताजी
जवाब देंहटाएंअत्यंतहर्ष हुआ आदरणीय दी आपकी सराहनासम्पन्न प्रतिक्रिया मिली। दिल से आभार।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
बहुत बहुत मधुर , लोक गीत जैसा
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ सर।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर