खोटी बाताँ बोल्यो सुंटो
सावण आय भड़काव जी
पात-पात पर नेह लुढ़काव
विरहण पीर उठावे जी।।
छेकड़ माही मेह झाँकतो
खुड़कावे हिय पाट झड़ी
थळियाँ माही मुढ्ढो घाल्याँ
कामण गाया खाट खड़ी
भीगो मनड़ो आपे धड़के
लाज घणी मन आवे जी ।।
खारे जल स्यूँ नहाया गाल
कुणा कौडी छिपाई है
यादा सोवे सीली रजनी
सौत आज पुरवाई है
झींगुर उड़े झाँझर झँकावे
दादुर टेर बुलावे जी ।।
गगरी पाणी लावे बदली
मुछा ताव दे मेघ धनुष
वसुंधरा रे उजले रुप पर
सतरंगी झालर इंद्रधनुष
रुठ्या-साज शृंगार ढोला
डाळी फूल लटकाव जी।।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
शब्द-अर्थ
सुंटो-बरसात की तेज बौछार
लुढ़काव-गिराना
छेकड़-सुराख़
थळियां -दहलीज़
कुणा-कोना
डाळी-टहनी
रुठ्या-रुठ गया
खुड़कावे-आवाज़ करना
पता-पत्ता
खोटी -झूठी,मिथ्या
बोल्यो -बोलना
लटकाव-लटका हुआ
छेकड़ माही मेह झाँकतो
जवाब देंहटाएंखुड़कावे हिय पाट झड़ी
थळियाँ माही मुढ्ढो घाल्याँ
कामण गाया खाट खड़ी
राजस्थान की महक से सराबोर मनमोहक नवगीत । वर्षा के साथ प्रकृति और हृदय में उठते भावों का अनूठा संगम ।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय मीना दी।
हटाएंसादर
मरूधरा में श्रावण मास न जाने कितने ही हृदय को झंकृत कर देने वाले लोकगीतों को जन्म दे देता है। आपकी यह मनमोहक कविता इसका उदाहरण है।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय जितेंद्र जी।
हटाएंसादर
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में बुधवार 11 अगस्त 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आभारी हूँ आदरणीय पम्मी जी।
हटाएंसादर
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा बुधवार (11-08-2021 ) को 'जलवायु परिवर्तन की चिंताजनक ख़बर' (चर्चा अंक 4143) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत बहुत शुक्रिया सर।
हटाएंसादर
राजस्थान की मिट्टी सुगंध लिए मनमोहक गीत अनीता....
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ कामिनी जी।
हटाएंसादर
राजस्थान की महक समेटे मनमोहक रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर।
हटाएंसादर
बिर्तन की पीड़ा और मौसम का उत्पात ... ये तो होता ही है ...
जवाब देंहटाएंसहज ही सुन्दर रचना का निर्माण हो गया ... बहुत बधाई ..
आभारी हूँ सर।
हटाएंसादर नमस्कार
हमेशा की तरह मरू मुग्धता बिखेरती हुई आपकी रचना बहुत ही प्रभावित करती अभिनन्दन आदरणीया।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर।
हटाएंसादर
वाह!गजब के होते है तुम्हारे राजस्थानी गीत।
जवाब देंहटाएंकहो किसी भी बहाने से मन में उतर जाते हैं।
जन्मदिवस की बहुत बहुत बधाइयां।
जी आभार अत्यंतहर्ष हुआ।
हटाएंसादर
अनीता, बहुत सुन्दर विरह-गीत !
जवाब देंहटाएंजायसी की नागमती का बारहमासा याद आ गया.
बहुत बहुत शुक्रिया सर।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
वाह जी वाह
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर।
हटाएंसादर
आँखों के आगे राजस्थानी नृत्य चलायमान हो जाता है पढ़ते-पढ़ते । बहुत ही सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय अमृता दी जी।
हटाएंसादर
खारे जल स्यूँ नहाया गाल
जवाब देंहटाएंकुणा कौडी छिपाई है
यादा सोवे सीली रजनी
सौत आज पुरवाई है
झींगुर उड़े झाँझर झँकावे
दादुर टेर बुलावे जी ।। बेहद खूबसूरत गीत सखी।
आभारी हूँ सखी।
हटाएंसादर
वाह!
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यंजनाएं ।
गहन भाव,पावस के साथ नायिका के विरह का प्रकृति के बिंबों के साथ शानदार समन्वय।
बहुत सुंदर गीत ।
थां बिन किसोक सावन,
कांइक भादों मास,
ओ छैल भंवर सा
बैगा घरा ओ पधारो सा।
आभारी हूँ आदरणीया कुसुम दी जी।
हटाएंदिल से अनेकानेक आभार।
हृदयस्पर्शी पंक्तियाँ।
सादर