गुरुवार, सितंबर 23
बोलना चाहिए इसे अब
गुरुवार, सितंबर 16
ममतामयी हृदय
ममतामयी हृदय पर
अंकुरित शब्दरुपी कोंपलें
काग़ज़ पर बिखर
जब गढ़ती हैं कविताएँ
सजता है भावों का पंडाल
प्रेम की ख़ुशबू से
मुग्ध मानव मन का
मुखरित होता है पोर-पोर
अंजूरी से ढुलती संवेदनाएँ
स्याही में घुल
शाख़ पर सरकती हैं
हरितमय आभा लिए
सकारात्मकता ओस बन
चमकती है
पत्तों पर मोती-सी
बलुआ किणकियाँ
घोलती हैं करुणा
कलेज़े में
बंधुत्त्व की बल्लरियों के
नहीं उलझते सिरे
वो फैलते ही जाते हैं
स्वच्छन्द गगन में
वात्सल्य की महक लिए
रश्मियों के छोर को थामें।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
गुरुवार, सितंबर 9
प्रभा प्रभाती
प्रभा प्रभाती झूमे गाये
मुट्ठी मोद स्वप्न लाई।
बैठ चौखट बाँटे उजाला
बिखरे हैं भाव लजाई।।
चाँद समेटे धवल चाँदनी
अंबर तारे लूट रहा।
प्रीत समीरण दाने छाने
पाखी साथ अटूट रहा।
भोर तारिका करवट बदले
पलक पोर पे हर्षाई।।
चहके पंख पसार पखेरू
धरणी आँगन गूँज रहा।
छाँव कुमुद गढ़ आँचल ओढ़ा
तपस टोहता कूँज रहा।
नीहार मुकुट पहने धरणी
सजल दूब है इठलाई।।
कोंपल मन फूटे इच्छाएँ
बूँटा रंगे रंगरेज।
डाली सौरभ बन लहराए
गढ़े पुरवाई जरखेज।
होले-होले डोले रश्मियाँ
स्वर्णिम आभा है छाई।।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
बुधवार, सितंबर 1
उस रोज़
घने कोहरे में
भोर की बेला में
सूरज से पहले
तुम से मिलने
आई थी मैं
लैंप पोस्ट के नीचे
तुम्हारे इंतज़ार में
घंटो बैठी रही
एहसास का गुलदस्ता
दिल में छिपाए
पहनी थी उमंग की जैकेट
विश्वास का मफलर
गले की गर्माहट बना
कुछ बेचैनी बाँटना
चाहती थी तुमसे
तुम नहीं आए
रश्मियों ने कहा तुम
निकल चुके हो
अनजान सफ़र पर।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'