बेटियों के हृदय पर
किसने खड़ी की होंगीं ?
गगनचुंबी
कठोर विचारों की ये दीवारें
जरुर जिम्मेदारियों ने
लिबास बदल
मुखौटा लगाया है
लोक-लाज में डूबा
भ्रम कहता है
स्वतः ही जीवन भँवर में
बेटियाँ बेड़ियों में उलझी हैं!
नहीं! नहीं!
कदाचित कोई निर्दयी
ठगी, हठी चित्त ही रहा होगा
बाँधे हैं जिसने अदृश्य
बेड़ियों से बेटियों के पाँव
बेड़ियों के जंजाल से
मुक्त करते हैं स्वयं को
थोड़ा-सा प्रेम,समर्पण
स्वच्छचंद धरा पर बहाते हैं
कठोर विचारों की नींव का
पुनर्निर्माण करते हुए
प्रेम के प्रतिदान से
जिम्मेदारियों के नवीन एहसास से
आसमान के कलेज़े को
चीरते हुए निकली ये अदृश्य
मीनारें गिराते हैं
माँ को बेटी बना
कलेजे से लगाते हैं।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
माँ की खातिर स्नेहिल उद्गार एक चिंतन शील बेटी के । लड़की तो प्रकृति से ही ममतामयी होती है । जब वह माँ का कर्तव्य वहन करती माँ के जीवन के बारे में सोचती है तो ऐसा सृजन सृजित होता है । अति सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय मीना दी आपकी प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखें।
सादर
गहन चिंतन परक अभिव्यक्ति ,सही कहा आपने उम्र के एक मुकाम पर आते आते माँ इतनी निढाल हो जाती है तन से मन से,कि कुछ स्नेहिल पल जैसे वो लुटाती आई है परिवार पर बच्चों पर वैसा ही पाने की एक झीनी सी चाहत उनके मन में उठती है ,और एक बेटी इसे सहज समझ सकती है कि माँ को भी स्नेह का स्पर्श चाहिए।
जवाब देंहटाएंमाना बेटियाँ हर समय भाग भाग कर मायके नहीं जा सकती कुछ जिम्मेदारियां कुछ सामाजिक परिस्थितियां पर उन बंधनों को सहज ही तोड़ कर बेटियों को भी समय समय पर माता पिता के प्रति अपनी जिम्मेदारियां निभाते रहना चाहिए ।
सार्थक हृदय स्पर्शी सृजन।
दिल से अनेकानेक आभार आदरणीय कुसुम दी जी।
हटाएंसारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन का मर्मस्पष्ट करने हेतु।
आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा स्नेह आशीर्वाद बनाए रखें।
सादर
माँ को भी माँ चाहिए ....
जवाब देंहटाएंएकदम सही कहा अनीता जी आपने....कौन नहीं चाहता माँ का दुलार... जब बेटियाँ माँ बनती हैं तब माँ को और भी अच्छे से समझने लगती है इसीलिए सर्वप्रथम बेटियाँ को माँ को स्नेह एवं परवाह दें हमारे प्रेम परवाह एवं सेवा की सर्वप्रथम हकदार हमारी माँ ही है जिन्होंने बड़े धैर्य एवं सहनशीलता के साथ हममें ये गुण विकसित किये..अब हम अपनी गृहस्थी एवं जिम्मेवारियों में उलझे हैं पर हमें माँ की सेवा के लिए वक्त निकालना चाहिए।
उत्तम भाव..उत्कृष्ट सृजन
वाह!!!
दिल से आभार आदरणीय सुधा दी जी... सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन का मर्मस्पष्ट करने हेतु। आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखें।
सादर
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (27-10-2021) को चर्चा मंच "कलम ! न तू, उनकी जय बोल" (चर्चा अंक4229) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि
आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर
चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और
अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभारी हूँ सर मंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
आपकी अभिव्यक्ति विचारोत्तेजक है, मनन करने योग्य है; इसमें संदेह नहीं।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर
एक माँ से ही संसार की कल्पना साकार होती है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
आभारी हूँ दी।
हटाएंसही कहा आपने।
सादर
बहुत ही सारगर्भित और मन को छूती हुई रचना । पीढ़ी दर पीढ़ी हर दौर में बेटी से मां और मां से बेटी का रिश्ता हमेशा सृष्टि के सृजन का आधार रहा,और मां बेटी को जमीन से आसमान जितनी ऊंची शिक्षा देती रही । बहुत ही सार्थक सृजन
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय जिज्ञासा दी जी।
हटाएंसच कहा आपने माँ तो माँ होती है शब्दों से परे।
स्नेह आशीर्वाद बनाए रखें।
सादर स्नेह
बहुत सुन्दर अनीता !
जवाब देंहटाएंबचपन हो, जवानी हो या फिर बुढ़ापा हो !
पंछी को मुक्त गगन में उड़ने के लिए पंख तो चाहिए ही !
बेटी हो, पत्नी हो या फिर माँ हो !
अपने ढंग से जीने के कुछ पल तो उसे भी चाहिए ही !
सादर नमस्कार सर।
हटाएंमानव की मनोवृतियाँ दिन व दिन ठगी होती जा रही हैं। समय के हाथों उलझें विचार... कहना कठिन है।
मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत शुक्रिया सर।
सादर प्रणाम
सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर
बहुत सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंसादर आभार अनुज।
हटाएंभावपूर्ण सार्थक लेखन
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय दी।
हटाएंबहुत सुंदर रचना,
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय।
हटाएंमाँ के प्रति अथाह स्नेह दर्शाती बहुत ही सुंदर रचना प्रिय दी।
जवाब देंहटाएंएक आँगन जिसमे बेटियाँ खिलखिलाती है बड़ी होती हैं पता ही नहीं चलता कब वह आँगन पराया हो जाता है।
बहुत कुछ टुटा है मन ही मन में...।
आसमान के कलेज़े को
चीरते हुए निकली ये अदृश्य
मिनारें गिरातें हैं
माँ को बेटी बना
कलेज़े से लगाते हैं... प्यार बाँटने वाले को भी तो प्यार चाहिए होता है। हृदय स्पर्शी पंक्तियाँ।
तुम्हारी स्नेहिल प्रतिक्रिया मिली अत्यंत हर्ष हुआ बहना। तुम्हारे बहुत सारा स्नेह💕💞
हटाएंकुछ नहीं टुटा है...।
खुश रहो।
खुद से संवाद करती है रचना...
जवाब देंहटाएंमाँ फिर बेटी फिर माँ ... ये क्रम सिर्फ नारी ही जी सकती है और नारी मन को समझ सकती है ...
बहुत बहुत शुक्रिया सर।
हटाएंआपकी प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ। मनोबल बढ़ाने हेतु दिल से आभार।
अति सुंदर एवं सराहनीय रचना।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ सर।
हटाएंसादर प्रणाम