माँ शारदा शरण में थारी
भाव-भक्ति माळा लाई।
फूल-पता बिछाया आँगणा
मूर्त मन आळा बिठाई।।
कूँची माय स्याह भावों की
कोरो कागज काळजड़ो
आशीर्वचन दे माँ मालिनी
धीरज जोड्याँ हाथ खड़ो
वीणावादनी हँसवाहिनी
ज्ञान घृत दीवट जलाई।।
संगीत-कला री दात्री माँ
श्रद्धा सुमन अर्पित करूँ
घोर साधना डगे न हिवड़ो
जीवण थान समर्पित करूँ
महाभद्रा महामाया माँ
मोळी सूत सज कलाई।।
चित्त च्यानणो भरूँ चाँदनी
नवो गीत नवगीत लिखूँ
थांरो सुंदर मुखड़ों माता
दिवा निशा हरदम निरखूँ
महाविद्या मात मातेश्वरी
पद पंकज हिये समाई।।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
शब्द =अर्थ
थारी =तुम्हारी
माळा =माला, हार
आँगणा =आँगन
आळा =आला, ताक
काळजड़ो=हृदय
दीवट= लकड़ी का वह पुराने ढंग का स्तंभ जिस पर दीया रखा जाता है
घृत = धी
मोळी =मोली
नवो =नया
दिवा-निशा =दिन-रात