कोरा कागज पढ़ मन विरहण
टेर मोरनी गावे है।
राह निहार लणीहारा री
कागा हाल सुनावे है।।
सुपण रो जंजाळ है बिखरो
आली-सीळी भोर बिछी।
सूरज सर पर पगड़ी बांध्या
किरण्या देखे है तिरछी।
फूल-फूल पर रंग बरसाव
बगवा बाग सजावे है।
भाव बादली काळी-पीळी
बूँदा सरिख्या पल बीत्या।
आँधी जैयां ओल्यूँ उमड़े
हाथ साथ का है रीत्या।
सूरत थळियाँ माही निरखे
लाली पैर रचावे है।
काग फिरे मुंडेर मापतो
मनड़े ऊपर खोंच करे।
आख्या पाणी झर-झर जावे
टेढ़ी-मेडी चोंच करे।
पातल पर खुर्चन धर लाई
काला काग जिमावे है।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
शब्द =अर्थ
टेर =पुकार, ऊँचा स्वर
कागा =कौवा
हाल =संदेश
सुपणे =स्वप्न
जंजाळ =झंझट, उलझन
आली-सिली =भीगी-भीगी-सी
किरण्या = किरण, रश्मियाँ
काळी-पीळी =काली-पीली
सरिख्या =जैसा
बीत्या =बीता हुआ समय
ओल्यूँ =याद
थळियाँ=चौखट
रीत्या =खाली
मापतो =मापना
खोंच =झोली
खुर्चन=किसी चीज का बचा-खुचा अंश
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" गुरुवार 11 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आभारी हूँ आदरणीय यशोदा दी जी पांच लिंको पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय विभा दी जी।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखें।
सादर प्रणाम
वाह!प्रिय सखी अनीता ,बहुत खूबसूरत सृजन ।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ दी जी आपकी प्रतिक्रिया मेरा संबल है।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखें।
सादर
उम्दा अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय प्रीती दी जी।
हटाएंसादर
वाह
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय जोशी जी सर मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंसादर
आपके राजस्थानी नवगीतों में मरूभूमि की आत्मा बसती है ।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय मीना दी जी आपका स्नेह आशीष संबल है मेरा।
हटाएंसादर
सुंदर मनभावन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई
आभारी हूँ आदरणीय अनीता जी।
हटाएंसादर
बहुत सुंदर और सार्थक रचना|
जवाब देंहटाएंशब्द चयन बहुत उत्तम है|
आभारी हूँ आदरणीय सर।
हटाएंसादर प्रणाम।
वाह अद्भुत
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ प्रिय मनीषा जी।
हटाएंसादर
वाह! वाह! राजस्थानी मिट्टी की सुगंध से भरे हुए भाव, कितने सरल होकर भी मनमोहक, हृदयस्पर्शी! राजस्थानी भाषा-भाषियों के लिए तो यह गीत एक अनमोल उपहार है। इसे तो संगीतबद्ध करके गाया जाना चाहिए।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय जीतेन्द्र जी सर आपकी प्रतिक्रिया मेरे गीत को और निखार देती है।
हटाएंमेरे पास आवाज़ नहीं है काश कोई स्वर दे मुझे भी अत्यंत हर्ष होगा।
सादर नमस्कार
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13.11.21 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
आभारी हूँ आदरणीय दिलबागसिंह जी सर चर्चमंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय ज्योति बहन।
हटाएंसादर
कोरा कागज पढ़ मन विरहण
जवाब देंहटाएंटेर मोरनी गावे है।
राह निहार लणीहारा री
कागा हाल सुनावे है।।
बहुत ही सुन्दर... लयबद्ध....
लाजवाब गीत।
आभारी हूँ आदरणीय सुधा दी जी।
हटाएंसादर
बहुत सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय भारती जी।
हटाएंसादर
अभिनव!अभिराम राजस्थानी भाषा में मोहक नवगीत।
जवाब देंहटाएंविरह श्रृंगार का सुंदरतम सृजन ।
शब्द और भाव दोनों ही बहुत सुंदर ।
सस्नेह बधाई,इतने सुंदर नवगीत के लिए।
आभारी हूँ आदरणीय कुसुम दी जी अत्यंत हर्ष हुआ आपकी प्रतिक्रिया मिली। स्नेह आशीर्वाद बनाए रखें।
हटाएंसादर
वाह !
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय सर आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखें।
सादर
बहुत बहुत बढ़िया, भावपूर्ण चित्रण करती सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया दी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर
राजिस्थानी खुशबू समेटे कमाल कर रही हैं आप ...
जवाब देंहटाएंअपनी भाषा में साहित्य रचना आसान नहीं है आज कल प[अर आप पर माँ सरस्वती की कृपा है आज कल ...
अत्यंत हर्ष हुआ सर। आपकी प्रतिक्रिया से उत्साह द्विगुणित हुआ। आशीर्वाद बनाए रखें।
हटाएंसादर आभार