मंगलवार, दिसंबर 28
मरवण जोवे बाट
शनिवार, दिसंबर 25
दिल की धरती पर
दिल की धरती पर
छिटके हैं
एहसास के अनगिनत बीज।
धैर्य ने बाँधी है दीवार
कर्म की क्यारियों का
सांसें बनती हैं आवरण।
धड़कनें सींचती हैं
बारी-बारी से अंकुरित पौध।
स्मृतियों के सहारे
पल्लवित आस की लताएँ
झूलती हैं झूला।
गुच्छों में झाँकता प्रेम
डालियों पर झूमता समर्पण
न जाने क्यों साधे है मौन।
बाग़ में स्वच्छंद डोलती सौरभ
अनायास ही पलकें भिगो
उतर जाती है
दिल की धरती पर
एक नए एहसास के साथ।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
मंगलवार, दिसंबर 14
विभावरी
चाँद-सितारा जड़ी ओढ़णी
पुरवाई दामण भागे।
बादळ माही हँसे चाँदणी
घूँघट में गोरी लागे।।
मेंदी राच्यो रंग सोवणो
गजरे रा शृंगार सजे
ओस बूँदया आँगण बरसे
हिवड़े मोत्या हार सजे
लोग लुगाया नजर उतारे
काँगण डोरा रे धागे।।
अंबर माही बिजळी गरजे
मेह खुड़क बरसावे है
छाँट पड़े हैं मोटी-मोटी
काळजड़ो सिलगावे है
दशों दिशा लागे धुँधराई
उळझ मन री छोर सागे।।
चंद्र फूल री क्यारी महकी
रजनी उजलो रंग भरे
चाँद कटोरो मोदो पड़गो
प्रीत रंग रा तार झरे।
पता ऊपर मांडे मांडणा
रात सखी म्हारी जागे।।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
शब्द -अर्थ
काळजड़ो =कलेजा
सिलगावे =जलता है, सुलगता है
हिवड़े= हृदय
मेंदी=मेहंदी
राच्यो =रचना
सोवणो =मोहक सुहावना
गजरा =हाथ में पहने का आभूषण
कागँन डोरा =एक तरह का नजर उतारने का धागा।
खुड़क= जोरदार आवाज
मोदो=उलटा
आधी रचना में रात का वर्णन है मानवीकरण और उपमाओं से सजी है पूरी रचना।
चाँद सितारो से जड़ी ओढ़णी है
पूरबी हवा का आँचल लहर रहा है,
बादल में हँसती चाँदनी घूंघट में कामिनी जैसे लग रही है।
चांदनी में हरियाली मेंहदी सी सुहानी दिख रही है।
फूलों से सजी डालियाँ जैसे गजरे पहने हैं।
(गजरा हाथ में पहने का आभूषण )
ओस बूँद आँगण में बिखरी है जैसे सुंदरी के गले में मोती का हार।
ऐसी सुंदर रात की नजर नर नारी उतार रहे हैं।
अब विरहन के भाव
अंबर में बिजळी गरज रही है
जोरदार आवाज से मेह बरस रहा है जिससे कालजे में आगसी सिलगती है,और दसों दिशा मन की भावनाओं में उलझ कर धुंधली सी दिखती है।
(या आंख में यादों का पानी सब कुछ धुंधला... )
चंद्र रूपी फूल रकी क्यारी महक रही है,चांदनी रात उजाला भर रही है और चाँद उल्टे कटोरे सा दिख रहा है जिसससे किरणें प्रीत सी झर रही है,और पत्ते पत्ते पर खोलनी कर रही है,और ये सब देख सखी (विरहन) सारी रात जग रही
शुक्रवार, दिसंबर 10
हूँ
प्रेम फ़िक्र बहुत करता है
लगता है जैसे-
ख़ुद को समझाता रहता है
कहता है-
"डिसीजन अकेले लेना सीखो
राय माँगना बंद करो
तुम मुझसे बेहतर करती हो।"
दो मिनट का फोन, पाँच बार पूछता है
"तुम ठीक हो?
कोई परेशानी तो नहीं
कुछ चाहिए तो बताना
मैं कुछ इंतज़ाम करता हूँ
और हाँ
व्यस्तता काफ़ी रहती है
क्यों करती हो फोन का इंतजार ?
कहा था न समय मिलते ही करुँगा
अच्छा कुछ दिन काफ़ी व्यस्त हूँ
फील्ड से लौटकर फोन करता हूँ।"
लौटते ही फिर पूछता है
"तुम ठीक हो ?"
आवाज़ आती है-”हूँ ”
और आप?
फिर आवाज़ आती है- ”हूँ ”
@अनीता सैनी ”दीप्ति”
मंगलवार, दिसंबर 7
निमित्त है तू
थक न तू
थकान से न रख वास्ता
आकार तू निराकार तू
पृथ्वी है तू प्राणवायु तू
याद रख
निमित्त है तू
निर्माता अपने भाग्य का तू।
क्या सोचता?
क्या देखता?
शक्ति तुझमें है अपार
जल तू ज्वाला तू
याद रख
निमित्त है तू
निर्माता अपने भाग्य का तू।
हाथ में तू हाथ दे
क़दमों के मेरे साथ चल
मंज़िल का दूँ पता तुझे
तू बढ़ता चल
कर्म कारवाँ के साथ
याद रख
निमित्त है तू
निर्माता अपने भाग्य का तू।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
रविवार, दिसंबर 5
मावठ रा रास
पाती पढ़ये पाहुन कुर्जा
गेहूँ खुड से झाँक रह्या।
कूँचा फूलड़ा दाँत निपोर
तारा दिनड़ो हाँक रह्या।।
सिळी-सिळी चाले पुरवाई
साँझ धुणी-सी सिलग रही।
हूक हिवड़ पर तीर चलावे
ढळती रातां बिलग रही।
झरे चाँदनी कामण गावे
ओल्यूँ बलुआ पाँक रह्या।।
बाट जोहती रात रही।
जीवण बाँध कलाई तागा
काच्चा सूत न कात रही।
काल चरखा धरतया घूमे
बिखर पहर री फाँक रह्या।।
फूला-पत्ता बिंध्य किरण्याँ
आँगण माही खेल्य भोर।
होळ्या-होळ्या डग धूप भरे
डाळ्या डागळा छज्जा छोर।
मावठ रास रचाती आवे।
दिन दुपहरी आँक रह्या।।