बीत्या दिनड़ा ढळा डागळा
भूली बिसरी याद रही।
दिन बिलखाया भूले मरवण
नवो साल सुध साद रही।।
बोल बोल्य चंचल आख्याँ
होंठ भीत री ओट खड़ा।
काजळ गाला ऊपर पसरो
मण का मोती साथ जड़ा।
काथी चुँदरी भारी दामण
माथ बोरलो लाद रही।।
पल्लू ओटा भाव छिपाया
हिय हूक उठावे साँध्या।
टूट्या तारा चुगे जीवड़ो
गीण-गीण सुपणा बाँध्या।
झालर जीया थळियाँ टाँग्या
ओल्यू री अळबाद रही।।
लाज-शर्म रो घूँघट काड्या
फिर-फिर निरख अपणों रूप।
लेय बलाएँ घूमर घाले
जाड़ घणा री उजळी धूप
मोर जड़ो है नथली लड़ियाँ
प्रीत हरी बुनियाद रही।।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
शब्द =अर्थ
बिलखाया= विलगाव
डागळा =छत
भीत =दीवार
बोरलो= ललाट पर पहने का आभूषण
हूक =पीड़ा, शूल, कसक
झालर =लटकनेवाला हाशिया
ओल्यू =याद
थळियाँ=चौखट
नथली =नाक में पहना जाने वाला एक छोटा आभूषण
अति उत्तम मनभावन गीत
जवाब देंहटाएंराजस्थान की महक ले कर
बहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय अनीता दी।
हटाएंसादर
वाह!वाह!प्रिय अनीता ,लाजवाब सृजन !👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया प्रिय शुभा दी जी।
हटाएंसादर
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (29-12-2021) को चर्चा मंच "भीड़ नेताओं की छटनी चाहिए" (चर्चा अंक-4293) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभारी हूँ आदरणीय सर चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
श्रृंगार भाव लिए सुंदर राजस्थानी नवगीत।
जवाब देंहटाएंपल्लू ओटा भाव छिपाया
हिय हूक उठावे साँध्या।
टूट्या तारा चुगे जीवड़ो
गीण-गीण सुपणा बाँध्या।
सुंदर भावात्मक विरह का हृदय स्पर्शी चित्र उकेरी सुंदर पंक्तियां।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय कुसुम दी जी।
हटाएंसादर
राजस्थानी भाषा का अपना ही मजा है.
जवाब देंहटाएंवाह बेहतरीन भाव.
मगर...
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय रोहिताश जी।
हटाएंसादर
राजस्थानी भाषा की सुंदर झलक। बहुत सुंदर। हृदय स्पर्शी रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय अशर्फी लाल जी।
हटाएंसादर
पल्लू ओटा भाव छिपाया
जवाब देंहटाएंहिय हूक उठावे साँध्या।
टूट्या तारा चुगे जीवड़ो
गीण-गीण सुपणा बाँध्या।
झालर जीया थळियाँ टाँग्या
ओल्यू री अळबाद रही।।
भावों से सुसज्जित बहुत ही खूबसूरत पंक्ति!
आभारी हूँ प्रिय मनीषा जी।
हटाएंसादर स्नेह
बहुत सुन्दर लयबद्ध राजस्थानी नवगीत।
जवाब देंहटाएंवाह!!!
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुधा जी।
हटाएंसादर
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 30 दिसंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय रविंद्र जी सर पांच लिंक पर स्थान देने हेतु
हटाएंसादर
मधुर गीत । शब्दार्थ ने कविता में चार चांद लगा दिए । सुंदर रचना के लिए आपको बहुत बधाई अनीता जी 👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय जिज्ञासा जी।
हटाएंसादर
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय आलोक जी सर।
हटाएंसादर
वाह! सुंदर लोक-रचना!!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय विश्वमोहन जी सर।
हटाएंसादर
Very Nice! Feels like a folk song!
जवाब देंहटाएंThanks sir.
हटाएंदीप्ति जी आपने जो शब्दार्थ दे दिए उसकी वजह से कविता की गूढता को समझ सकी। स्त्री जितना जी ले बस उसका वही नया साल है। सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय कल्पना मनोरमा दी जी मनोबल बढ़ाती सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर स्नेह
पल्लू ओटा भाव छिपाया
जवाब देंहटाएंहिय हूक उठावे साँध्या।
टूट्या तारा चुगे जीवड़ो
गीण-गीण सुपणा बाँध्या।
झालर जीया थळियाँ टाँग्या
ओल्यू री अळबाद रही।।
श्रृंगार रस के माधुर्य भाव का सरस शब्द चित्र । अत्यन्त सुन्दर सृजन ।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय मीना दी जी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर स्नेह
वाह! बहुत ही सुंदर अनीता।
जवाब देंहटाएंभाव मोती से बिखर रहे है।
बहुत बहुत शुक्रिया आपका।
हटाएंसादर
सुंदर झलक। बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया।
हटाएंसादर
मधुर स्वर में मीठा गीत !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर।
हटाएंआपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा।
आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर प्रणाम
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