हाड़ तोड़ती पछुआ डोल्ये
लूट सूरज रो सिंगार।
घड़ी-घड़ी परिधान बदळती
दिन हफ्ता महीना चार।।
तिरछी चाले चाल बैरणी
साँझ-सवेरे मिलण आव।
सिळा पान धूणी सिलगावे
काळजड़ में दाह जळाव।
घणी सतावे सौतण म्हारी
आँखमिचोली खेल्य द्वार।।
बोरा भर ओल्यू रा लावे
बाँट्य पहर पखवाड़ा में।
भीगी पलका पला सुखावे
फिरे उळझती बाड़ा में।
डाळा डागळ डोळ्या फिरती
सुना सूखा हैं दरबार।।
शोर साचो चीखती साठा
पात फसल रा बिंध रही
सोव जागे घणी लहरावे
मनड़ा माचा डाल रही।
पेड़ा फूँगी धुँध बरसावे
धूप उतारे बारम्बार।।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
शब्द =अर्थ
सिळा=नम
धूणी =आलावा
काळजड़=कलेजा
जळाव=जलाना
घणी =बहुत अधिक
ओल्यू =याद
उळझती=उलझाना
डाळा=तहनियाँ
डागळ=छत
डोळ्या =दीवार
चीखती साठा =60 डिग्री दक्षिणी अक्षांश के पास पछुआ को 'चीखती साठा' नाम से पुकारा जाता है।
बहुत सुंदर अनीता दी।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ अनुज।
हटाएंसादर
हाड़ तोड़ पुरवाई चाल्ये
जवाब देंहटाएंलूट सूरज रो सिंगार।
घड़ी-घड़ी परिधान बदळती
दिन हफ्ता महीना चार।।
पछुआ पवनों की विशेषता और उसके श्रृंगारिक प्रभाव को विविध उपमाओं से एक प्रकृति प्रेमी सृजक ही विभूषित कर सकता है । नवगीतों की श्रृंखला में एक और नायाब नवगीत । बहुत बहुत बधाई अनीता जी🌹
आभारी हूँ आदरणीय मीना दी जी।
हटाएंसराहना सम्पन्न साहित्यिक प्रतिक्रिया संबल है मेरा।
आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
राजस्थान की कड़ाके की ठंड और उससे निसर्ग वह वासिंदों की दिनचर्या पर पड़ते प्रभाव का सांगोपांग चित्रण प्रिय अनिता।
जवाब देंहटाएंराजस्थानी भाषा में शायद नवगीत का शुभारंभ आपकी झोली में आयेगा ।
अनंत बधाईयाँ!
अपनी भाषा को एक नायाब तोहफा देने के लिए ।
जल्दी ही एक संकल्न जितनी सामग्री जितना लेखन पूरा होकर पुस्तक रूप साकार हो तो आपके राजस्थानी नवगीत/ गीतों को पढ़कर आनंद उठाएं हम सभी पाठक।
अनंत शुभकामनाएं।
लिखते रहिए, निर्विघ्न, निरंतर।
आपकी साहित्यिक प्रतिक्रिया की जितनी प्रशंसा जाए कम ही होगी। सुघड़ शब्द के साथ भवात्मक संबल सच सराहना से परे है आदरणीय कुसुम दी जी।
हटाएंअगर मैं राजस्थानी भाषा में लिखने वाली पहली नवगीतकारा हुई तो यह मेरा सौभाग्य होगा।
आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति 👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया।
हटाएंसादर
वाह अनीता, तुमने तो प्रेमचन्द की कहानी - 'पूस की रात' की याद दिला दी.
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय गोपेश जी सर।
हटाएंआपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा।
आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
वाह!प्रिय अनीता ,शानदार सृजन ।लगता है जैसे मैं अपने घर -आँगन में पहुंच गई ...।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ प्रिय शुभा दी जी।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
बोरा भर ओल्यू रा लावे
जवाब देंहटाएंबाँट्य पहर पखवाड़ा में।
भीगी पलका पला सुखावे
फिरे उळझती बाड़ा में।
डाळा डागळ डोळ्या फिरती
सुना सूखा हैं दरबार।।
वाह!!
हुत ही खूबसूरत सृजन😍💓
आभारी हूँ प्रिय मनीषा जी।
हटाएंबहुत बहुत सारा स्नेह।
सादर
बहुत ही सुन्दर सार्थक नवगीत सखी
जवाब देंहटाएंराजस्थान की ठंड का यथार्थ चित्रण किया है आपने
आभारी हूँ आदरणीय आदरणीय अभिलाषा दी जी।
हटाएंसादर
बहुत सुंदर सृजन, अनिता दी।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ ज्योति बहन।
हटाएंसादर
बढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आपका।
हटाएंसादर
बहुत सुंदर राजस्थान री माटी में ओतप्रोत ये कविता पढ़कर मन कहीं वहीं 'चुरू के धौरों' में घूमने चला गया...वाह अनीता जी क्या खूब लिखा है कि घणी सतावे सौतण म्हारी...मजा आ गया
जवाब देंहटाएंआँखमिचोली खेल्य द्वार।।
आभारी आदरणीय अलकंनंदा दी जी।
हटाएंआपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
अति मनोहर एवं मनभावन गीत । काळजड़ को उळझती हुई ।
जवाब देंहटाएंआपने हमें पुकारा । अच्छा लगा । पर जो नहीं सुना उसके लिए क्षमा ।
आभारी हूँ आदरणीय अमृता दी जी आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा।
हटाएंमेरे पुकारने पर आप आए अत्यंतहर्ष हुआ।
जो आपणे समझा वो प्रेम की अथाह गहराई थी।
आपको बहुत बहुत सारा स्नेह।
सादर
वाह,बहुत सुंदर मन मोहता गीत ।बहुत शुभकामनाएं आपको अनीता जी 💐💐
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ जिज्ञासा जी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर
Nice Post Good Informatio ( Chek Out )
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