साँझ-सकारे उठे बादळी
काळी घिरी घटा गहरी।।
काळजड़े पर चले कटारी
मीठी बोली बण ठहरी।।
पल्लू पाटा ओल्यू बाँधी
घुंघरियाँ-सी बिखर रही।
टुग-टुग चाले लारे-लारे
देख प्रीत भी निखर रही।
पीळे फूलां सरसों छाई
चाँदणियाँ बरसे दहरी।।
पुरवाई रा ठंडा झोंका
साथ समीरण रा छुट्या।
परदेशा री घूमे गळियाँ
हिवड़े रा फाला फुट्या
ओळी-सोळी डूबे भँवरा
भाट्ठा भारी भव लहरी।।
किणे सुणावा बिसरी बातां
किरणा रा बिछता गोटा।
मन री मूडण बाला देवे
होवे है बादळ ओटा।
नैणा झरते खारे मणके
प्रीत पपोटा री कहरी।।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
शब्द =अर्थ
साँझ-सकारे=सुबह-शाम
काळी =काली
काळजड़े=कलेजा
ओल्यू =याद
घुंघरियाँ=घुघरी
टुग-टुग =ठुमक-ठुमक
लारे-लारे=पीछे पीछे
पीळे फूलां=पीले फूल
चाँदणियाँ=चाँदनी
ओळी-सोळी=उल्टी-सुल्टी
भँवरा =भँवर
बातां=बातें
मन री मूडण=स्वेच्छाचारी
बादळ=बादल
मणके=मोती ,मनके
पपोटा=पलकें
कहरी =कहर ढाने वाली
पल्लू पाटा ओल्यू बाँधी
जवाब देंहटाएंघुंघरियाँ सी बिखर रही।
टुग-टुग चाले लारे-लारे
देख प्रीत भी निखर रही।
पीळे फूलां सरसों छाई
चाँदणियाँ बरसे दहरी।।
भावों के साथ शब्दों का अति उत्तम सम्मिश्रण । नवगीत को जीवन्तता प्रदान करता अप्रतिम नारी रेखांकन । आपका शब्द कौशल चमत्कृत करने के साथ सुखद अनुभूति देता है ।
हार्दिक आभार आदरणीय मीना दी जी सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन का मर्म स्पष्ट करने हेतु।
हटाएंसृजन सार्थक हुआ।
सादर
बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ अनुज।
हटाएंसादर
लाजवाब रचना।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (17-01-2022 ) को 'आने वाला देश में, अब फिर से ऋतुराज' (चर्चा अंक 4312) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत बहुत शुक्रिया सर मंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
आंचलिक खुश्बू लिए बहुत ही सुन्दर रचना। हार्दिक बधाई आदरणीया अनीता जी।।।।।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय पुरुषोत्तम जी सर।
हटाएंसादर
भावों से भरी सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया जिज्ञासा जी।
हटाएंसादर
वाह! बहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंवियोग श्रृंगार में विरह को प्राकृतिक बिंबों से बहुत ही सुंदरता से दिखाया है आपने प्रिय अनिता।
आपकी राजस्थानी भाषा के गीत बहुत सुंदर निखरकर आ रहे हैं।
सस्नेह।
दिल से अनेकानेक आभार आदरणीय कुसुम दी जी स्नेहाशीष से लवरेज प्रतिक्रिया से उत्साह द्विगुणित हुआ।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखें।
सादर
एक अलग ही आकर्षण में बँधना होता है आपको पढ़ते हुए । भाव-लहरियाँ जैसे एक हो रही हों । अति सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीया अमृता दी जी आपकी प्रतिक्रिया से स्वतः होंठो पर मुस्कान फैल जाती है।
हटाएंअनेकानेक आभार।
सादर
अनीता, तुम्हारे गीतों का भरपूर आनंद लेने के लिए मुझे अब बाक़ायदा राजस्थानी सीखनी पड़ेगी.
जवाब देंहटाएंकमाल का लिखती हो तुम ! तुम्हारे गीतों में संगीत तो बहता है.
आदरणीय सर गोपेश मोहन जैसवाल जी सर।
हटाएंसादर नमस्कार।
आप बस यों ही मेरे लिखें गीत पढ़ते रहे। एक दिन स्वतः ही आपके मुख से मारवाड़ी झरने लगेगी , मेरा विश्वास है।
अत्यंत हर्ष हुआ आपने मेरे सृजन को इतना सारा स्नेहाशीष दिया।
सादर प्रणाम।
बहुत ही सुन्दर रचना और बिटिया के बनाए चित्र ने इस गीत की खूबसूरती और बढ़ा दी है।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीय अभिलाषा दी जी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर स्नेह
बहुत सुंदर रचना और और उसको पूर्ण करता चित्र ,शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आपका उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर
लाजवाब रचना
जवाब देंहटाएंअत्यंत हर्ष हुआ सर आप ब्लॉग पर आए और सृजन को सराहना मिली।
हटाएंसादर नमस्कार
'हिवड़े रा फाला फुट्या' से चलकर 'किणे सुणावा बिसरी बातां' से गुज़रते हुए 'नैणा झरते खारे मणके' तक तो बात आनी ही थी। आपके राजस्थानी सृजन में छंदबद्धता भी सम्पूर्ण होती है तथा इसीलिए ये रचनाएं गाये जा सकने वाले राजस्थानी गीत ही होती हैं, सामान्य कविता नहीं। जब भी किसी रचना के लिए सम्भव हो, उसे गवाइए भी तथा उस संगीतबद्ध गीत को यूट्यूब आदि पर प्रस्तुत भी कीजिए। खारे मणके मेरी आँखों में भी आ गए हैं पढ़ते-पढ़ते। इससे अधिक इस गीत के लिए क्या कहूँ?
जवाब देंहटाएंसृजन का मर्म स्पष्ट करती आपकी साहित्यिक प्रतिक्रिया नवगीत को और निखार देती है। मर्म आप तक पहुंचा सृजन सार्थक हुआ। इससे अनमोल प्रतिक्रिया नहीं हो सकती। अनेकानेक आभार आदरणीय जितेंद्र जी सर।
जवाब देंहटाएंसाथ बनाए रखें।
सादर नमस्कार
पूरी तरह तो समझ नहीं आते पर पढने बोलने में बहुत मधुर हैं आपके ये गीत
जवाब देंहटाएंआपके पधारने से ही सृजन सार्थक हुआ। प्रिय सुधा दी जी।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद यों ही बना रहे।
सादर