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सोमवार, जनवरी 31

बोधगम्य


बोधगम्य ही कहूँगी मैं इसे 

रात्रि का चाँद रुपी लालटेन से

चाँदनी बरसाना 

 उन्मुक्त भाव से 

अंबर पर तारे छिड़कना

और फिर यों ही

वियोगिनी की भांति

चुपचाप विचरते जाना

भोर की पगध्वनि

हल्के झोंको से 

पत्तों को कच्ची नींद से 

जगाते  जाना

जाने की आहट 

शून्य का स्पंदन

उसकी स्वर लहरी 

मौन में माधुर्य को 

स्पर्श करने जैसा है।

या कहूँ -

प्रेम में डूबे 

अंतर्घट के भावों का 

बड़भागी हो बहते जाना 

जैसा ही है।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'

22 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 01 फरवरी 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत भावपूर्ण ...
    किसी वियोगिनी के भाव को स्पर्श कतरी है रचना ...

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  3. वाह!प्रिय अनीता ,बहुत ही खूबसूरत भावों से सजी ,वियोगिनी की व्यथा ..👍,,लाजवाब!

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  4. चित्रकार की पेंटिंग सदृश रात्रि का प्राकृतिक सौंदर्य बहुत मनमोहक लगा । सुन्दर सृजन हेतु बहुत बहुत बधाई अनीता जी।

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  5. मौनता में माधुर्य को
    स्पर्श करने जैसा है।
    या कहूँ -
    प्रेम में डूबे
    अंतर्घट के भावों का
    बड़भागी हो बहना
    जैसा ही है... बहुत ही सुंदर लिखा शब्द शब्द प्रश्न कर रहे है।
    ऐसे ही लिखती रहो।
    हमेशा ख़ुश रहो।

    जवाब देंहटाएं
  6. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (1-2-22) को "फूल बने उपहार" (चर्चा अंक 4328)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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  7. बड़भागी रहना बहना
    –सुन्दर भावाभिव्यक्ति

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  8. वाह्ह्ह्ह्ह्हहहहह!
    बहुत ही सुंदर रचना!

    जवाब देंहटाएं
  9. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (02-02-2022) को चर्चा मंच       "बढ़ा धरा का ताप"   (चर्चा अंक-4329)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'    

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  10. प्रेम और अनुराग का सुंदर भावपूर्ण प्रवाह 👌👌

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  11. मौनता में माधुर्य को स्पर्श करने जैसा है। बहुत सुन्दर प्रस्तुति! आदरणीया अनीता जी 
    भारतीय साहित्य एवं संस्कृति

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  12. अति मधुर एवं बोधगम्य अभिव्यक्ति। रात्रि की भांति...

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  13. बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना

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  14. सच प्रकृति को यूँ समझ लेना बोधगम्यता ही है।
    रात के सौंदर्य को बोधगम्य करके अपने मन के उद्वेलित भावों के साथ ऐसे गूंथना बोधगम्यता ही है ।
    वाह!
    विरह श्रृंगार की अनूठी रचना।
    सस्नेह।

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  15. खूबसूरत बिम्ब सुंदर सृजन

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  16. रात्रि के मेउन में बोधगम्यता की धमक । बेहतरीन अभिव्यक्ति ।

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  17. इतनी सुंदर रचना कि बार बार पढ़ी मैंने। शब्दों के जादू की मोहिनी छाई रही शुरू से अंत तक !

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  18. बहुत सुंदर,भावपूर्ण ,बोधगम्य रचना की है आपने दीदी।

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