जब कभी न चाहते हुए भी
सौभाग्य वर्दी में मुझसे मिलता है
तब उसका दृष्टिकोण
प्रेम नहीं त्याग ढूँढता है
अंतरयुद्ध को ठहराव
समुंदर से विस्तृत विचार
पाषाण-सा कठोर हृदय
कोरी किताब लाता है
तब एक पिता पति नहीं
बल्कि वह एक बेटा होता है
उसकी आँखों में माँ की सेवा
वह कृत्तिव्यनिष्ट होता है
कल्पना की सौम्यता से दूर
जमीनी सचाई का रंग भरता
यथार्थ के फूलों का उपहार
शब्द में आकुलता बिखेरता
वह एक झोंका-सा होता है
मैं स्वयं को जब
उसकी आँखों में ढूँढ़ती हूँ
वह मुझे अपनी सांसों के
उठते बवंडर से ढक लेता है
आँखों की पुतलियों को फेर
पानी की हल्की परत में
डूबो देता है
तब वह एक पत्नी प्रेमिका नहीं
बल्कि एक सिपाही ढूंढ़ता है।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'