जब कभी न चाहते हुए भी
सौभाग्य वर्दी में मुझसे मिलता है
तब उसका दृष्टिकोण
प्रेम नहीं त्याग ढूँढता है
अंतरयुद्ध को ठहराव
समुंदर से विस्तृत विचार
पाषाण-सा कठोर हृदय
कोरी किताब लाता है
तब एक पिता पति नहीं
बल्कि वह एक बेटा होता है
उसकी आँखों में माँ की सेवा
वह कृत्तिव्यनिष्ट होता है
कल्पना की सौम्यता से दूर
जमीनी सचाई का रंग भरता
यथार्थ के फूलों का उपहार
शब्द में आकुलता बिखेरता
वह एक झोंका-सा होता है
मैं स्वयं को जब
उसकी आँखों में ढूँढ़ती हूँ
वह मुझे अपनी सांसों के
उठते बवंडर से ढक लेता है
आँखों की पुतलियों को फेर
पानी की हल्की परत में
डूबो देता है
तब वह एक पत्नी प्रेमिका नहीं
बल्कि एक सिपाही ढूंढ़ता है।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
एक सैनिक के मन की बात इतनी गहराई से वही समझ सकता है जो इस जीवन को जीता हो । एक सैनिक के मन में कर्तव्यनिष्ठ रहना ही प्रथम कर्तव्य होता है ।
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार आदरणीय संगीता दी जी।
हटाएंसादर
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा मंगलवार (01 मार्च 2022 ) को 'सूनी गोदें, उजड़ी मांगे, क्या फिर से भर पाएंगी?' (चर्चा अंक 4356 ) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
हृदय से आभार आदरणीय सर मंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार सर।
हटाएंसादर
जब कभी न चाहते हुए भी
जवाब देंहटाएंसौभाग्य वर्दी में मुझसे मिलता है
तब उसका दृष्टिकोण
प्रेम नहीं त्याग ढूँढता है
एक सैनिक के साथ उसका पूरा परिवार कर्तव्य निष्ठा का पालन करता है । हृदयस्पर्शी सत्य को समर्पित बेहतरीन रचना।
हृदय से आभार आदरणीय मीना दी जी। आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा।
हटाएंसादर
गहरी और भावपूर्ण रचना ...
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार सर।
हटाएंसादर
एक सेनिक का परिवार भी सेनिक होता है.
जवाब देंहटाएंभावना से परिपूर्ण रचना.
Welcome to my New post- धरती की नागरिक: श्वेता सिन्हा
हृदय से आभार.... समय रहते आपके पोस्ट पर नहीं पहुँच पाई माफ़ी चाहती हूँ।
हटाएंसादर
मन को छूती भाव पूर्ण रचना ।
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार आपका।
हटाएंसादर
वाह! तंज वो भी प्रेम से।
जवाब देंहटाएंतभी आज झांसी की रानी की तरह हो 😂
हमेशा ख़ुश रहो खूब लिखो।
तंज नहीं प्रेम ही है आज स्वाभिमान से खड़ी हूँ आप ही की बदौलत। वो पड़ाव पार कर लिया समर्तियों में उमड़ आता है।
हटाएंख्याल रखें।
सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर।
हटाएंसादर
जीवन युद्ध में डट के खड़ी एक सिपाही ही तो हो आप प्रिय अनिता तो ज्यादा ढूढ़ना नहीं पड़ता होगा ।
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण सृजन ।
आप का भाव संप्रेषण कभी कभी आश्चर्य चकित कर देता है।
अप्रतिम।
भावों के उठते सैलाब में छिप जाती है कविता की नायिका या मेरी कल्पना उसे छिपा देती है।
हटाएंहृदय से अनेकानेक आभार प्रिय कुसुम दी जी।
आशीर्वाद बनाए रखें।
सादर
बहुत खूबसूरत भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार आपका।
हटाएंसादर
परिवारिक व्यस्ताओं के कारण बहुत दिनों बाद ब्लॉग पर आना हुआ हृदयस्पर्शी सत्य को समर्पित बेहतरीन रचना आना सफल हुआ
जवाब देंहटाएंसमझ सकती हूँ अनुज जिम्मेदारियां जकड़ लेती इंसान को फिर भी आपने समय निकाला हृदय से आभार आपका।
हटाएंसादर
वाह!!!
जवाब देंहटाएंमन के अनकहे भावों को शब्द देकर कविता में ढ़ाला है आपने..हर सैनिक की पत्नी के विचार हैं ये...वो ही जानती है कि उससे और परिवार से ऊपर जब फर्ज आता है तो कैसा लगता है और उसी फर्ज कोजब मजबूरन वह अपनाती है तो वाकई सैनिक बनकर ही सोचती है..बहुत ही हृदयस्पर्शी लाजवाब सृजन।
जी हृदय से आभार आपका आपकी प्रतिक्रिया मिली सृजन सार्थक हुआ।
हटाएंसादर स्नेह