हाथ दीप धर ढूँढे पगडंडी
परछाई एक अकेली-सी।
बादल ओट छिपी चाँदनी
जुगनू बुझाए पहेली-सी।
धीरज पैर थके न हारे
सृजन नित नया रचाती।
होले-होले डग धरती भरे
पथ सुमन छाँव जँचाती।
अनथके भावों की पछुआ
घन गोद खिलखिलाती।
पानी बूँद बन धरा बरसे
सुषुप्त स्वप्न को जगाती।
वह परछाई आग है
है बहते जल की धारा।
नहीं बँधी अब बेड़ियों में
नहीं ढूँढ़ती सहारा।
मिट्टी बन मिट्टी को साधे
प्राण फूँकती मिट्टी में।
सृष्टि, सृष्टा के पथ चलती
मुक्त परछाई धरा मुट्ठी में।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
सभी ओर से जब स्त्री को बेबस और लाचार मान लिया जाता है तभी उसकी सुप्त शक्तियाँ जागकर कमाल दिखाती हैं। बहुत सुंदर, विचारपूर्ण अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार आदरणीय मीना दी जी।
हटाएंसादर
मिट्टी बन मिट्टी को साधे
जवाब देंहटाएंप्राण फूँकती मिट्टी में।
सृष्टि, सृष्टा के पथ चलती
मुक्त परछाई धरा मुट्ठी में।
अपने जुझारू स्वभाव से असंभव को संभव बनाना…इसकी प्रेरणा एक स्त्री ही दे सकती है जो स्वयं अकेली होने के बाद भी पूरे परिवार के साथ परछाई बन उनके सुख दुख का ध्यान रखती है ।बहुत सुन्दर कृति ।
हृदय से आभार आदरणीय मीना दी जी।
हटाएंसादर
बHउत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार ज्योति बहन।
हटाएंसादर
सुन्दर अहसास
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार आपका।
हटाएंसादर
बेहतरीन कृति ।
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार आपका जिज्ञासा जी।
हटाएंसादर
बहुत सुंदर और सशक्त रचना लिखी है आपने|
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत शुभकामनाएँ आपको!
हृदय से आभार आपका आदरणीय शास्त्री जी से।
हटाएंसादर
सुंदर सराहनीय भावों का सार्थक सृजन , कोई होड़ ंनहीं किसी से भी, धैर्य से सभी कुछ सहती और निर्लिप्त अपने कर्तव्यों को समर्पित भाव से निभाती नारी का सृष्टि रूप बहुत सुंदरता से उकेरा है आपने अनिता।
जवाब देंहटाएंअभिनव सृजन
सही कहा दी होड़ से परे अब धैर्य अपनी शक्तियों संग से डग भरने होंगे स्त्री को।
हटाएंसारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु हृदय से आभार आदरणीय कुसुम दी जी।
सादर
स्त्री की दुर्दशा पर आंसू बहाना या 'अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी' लिखना अब बेमानी हो गया है.
जवाब देंहटाएंआज स्त्री स्वयं अपना भाग्य संवार सकती है और अपने दमनकारियों का अपने ही दम पर संहार भी कर सकती है.
सही कहा।
हटाएंसमय ने सबला बना दिया है स्त्री को आँसुओं से अब अपनों के हृदय भी नहीं पसीजते और शायद आँखों में पानी भी नहीं बचा औरत के। परंतु आज भी बहुताए मासूम औरतें हैं जो सिर्फ़ स्त्रित्व को धारण किए हुए हैं। परिवर्तन बहुत धीमा चलता है विचारों की जकड़न तोड़ना आसा नहीं।
हटाएंआपके विचार सराहनीय हैं आदरणीय सर।
आशीर्वाद बनाए रखें।
सादर
नारी शक्ति को उसकी गरिमा में प्रतिष्ठित करती सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार आदरणीय अनीता दी जी।
हटाएंसादर
सशक्त उद्घोषणा।
जवाब देंहटाएंअमृता दी जी आपके दो शब्दों से बड़ा संबल मिला।
हटाएंसशक्त उद्घोषणा... डर के आगे जीत है 🥺।
स्नेह आशीर्वाद बनाए रखें।
आपका साथ संबल है मेरा।
सादर
स्वयं के सम्मान के लिए कोमल से कठोर होने तक की जुझारू यात्रा, जीवन का सत्य है।
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार श्वेता दी जी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर स्नेह
अद्भुत अद्भुत अद्भुत....वह परछाई आग है
जवाब देंहटाएंहै बहते जल की धारा।
नहीं बँधी अब बेड़ियों में
नहीं ढूँढ़ती सहारा। सबला बनने की ओर...वाह
हृदय से आभार आदरणीय अलाकंनंदा दी जी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर
अति सुंदर रचना ।शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार आपका।
हटाएंसादर
वह परछाई आग है
जवाब देंहटाएंहै बहते जल की धारा।
नहीं बँधी अब बेड़ियों में
नहीं ढूँढ़ती सहारा
सहारा देने वाले जब बचे ही न हो तो किससे आस लगानी...सम्भल रही है स्त्री भी ।
बहुत ही लाजवाब सृजन।
जी हृदय से आभार आपका आपकी प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ।
हटाएंसादर