स्मृति पन्नों पर बिखेर गुलाल
हृदय से उन्हें लगाऊँ।
जोगन बन खो जाऊँ प्रीत में
रूठें तो फिर-फिर मनाऊँ।
साँझ लालिमा-सी संवरूँ
टूट तारिका-सी लिपटू गलबाँह में।
धवल चाँदनी झरे चाँद से
अबीर बन सुख लूटूँ प्रीत छाँह में।
एक-एक पन्ने पर वर्षों ठहरुँ
मुँदे द्वार खोल माँडू माँडने।
अल्हड़ मानस की टाँगू लड़ियाँ
टूटे भावों को बैठूँ साँठने।
प्रीत पैर बँधु बन पैजनियाँ
थिरक बजूँ पी आँगन में।
टोह अन्तहीन पारावार-सी
व्याकुल पाखी की अंबर में।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १८ मार्च २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
हृदय से आभार आपका आदरणीय श्वेता दी जी मंच पर स्थान देने हेतु। समय पर नहीं पहुँच पाई माफ़ी चाहती हूँ।
हटाएंसादर स्नेह
होली के अवसर पर सारे,
जवाब देंहटाएंरंगों को मैं ले आऊँ,
और तुम्हारे जीवन में मैं,
उन रंगों को बिखराऊँ...
रंगोत्सव की शुभकामनाएं
आपका आशीर्वाद मुझ तक पहुंचा अनेकानेक आभार आदरणीय यशोदा दी जी।
हटाएंआपको भी हार्दिक बधाई।
सादर
–वाह! बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंशुभकामनाओं के संग बधाई
हृदय से आभार आपका दी।
हटाएंसादर
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार सर।
हटाएंसादर
प्रीत पैर बंधु बन पैजनियाँ
जवाब देंहटाएंथिरक बजूँ पी आँगन में।
टोह अन्तहीन पारावार-सी
व्याकुल पाखी की अंबर में।
अत्यंत सुंदर !! रंगोत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
हृदय से आभार दी मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंसादर
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार आपका
हटाएंसादर
अनोखा बिम्ब, अनोखी भाव प्रवणता.... अनोखा प्रेम स्पर्श। अति सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंअनेकानेक आभार आपका सृजन सार्थक हुआ आपकी प्रतिक्रिया मिली।
हटाएंसादर
वाह बहुत सुन्दर भाव, प्रीत पैर बंधु बन पैजनियाँ
जवाब देंहटाएंथिरक बजूँ पी आँगन में।
टोह अन्तहीन पारावार-सी
व्याकुल पाखी की अंबर में
स्नेह सिक्त सुंदर रचना ,भाव प्रणव सुंदर समर्पित शृंगार भाव
जवाब देंहटाएंअभिनव व्यंजनाएं।
गहन एहसास उकेरी शब्दावली।
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (23-03-2022) को चर्चा मंच "कवि कुछ ऐसा करिये गान" (चर्चा-अंक 4378) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
भक्ति भाव में डूबी सरस रचना
जवाब देंहटाएंप्रेम-भक्ति-आराधना का बहुत सुंदर शब्दचित्रण कियाअनीता जी आपने...क्या ख्ाूब ही कहा है कि...साँझ लालिमा-सी संवरूँ
जवाब देंहटाएंटूट तारिका-सी लिपटू गलबाँह में।
धवल चाँदनी झरे चाँद से
अबीर बन सुख लूटूँ प्रीत छाँह में।..वाह
प्रीत पैर बंधु बन पैजनियाँ
जवाब देंहटाएंथिरक बजूँ पी आँगन में।
टोह अन्तहीन पारावार-सी
व्याकुल पाखी की अंबर में।
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर सृजन
लाजवाब।
वाह बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंप्रीत पैर बँधु बन पैजनियाँ
जवाब देंहटाएंथिरक बजूँ पी आँगन में।
टोह अन्तहीन पारावार-सी
व्याकुल पाखी की अंबर में।
बहुत सुन्दर
बहुत सुंदर अनीता !
जवाब देंहटाएंतुम्हारी कविताओं-गीतों में, प्रेम-मगन मीरा की तड़प और उसकी लगन दिखाई देती है.
एक-एक पन्ने पर वर्षों ठहरुँ
जवाब देंहटाएंमुँदे द्वार खोल माँडू माँडने।
अल्हड़ मानस की टाँगू लड़ियाँ
टूटे भावों को बैठूँ साँठने।
वाह ! सुंदर छंद !
टोह अन्तहीन पारावार-सी
जवाब देंहटाएंव्याकुल पाखी की अंबर में।
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर सृजन