शुक्रवार, मार्च 25

भावों की लहर कविता


रोम-रोम मेरे रमती  

श्वांसें कहती हैं कविता

साज सरगम हृदय सजती 

जैसे बहती है सरिता।।


मरु में नीर टोह भटकी 

मौन धार अविरल बहती।

धूप तपे आकुल मन में 

सुधियाँ मट्टी-सी ढहतीं ।

शब्द बंधे सुर-ताल में 

उर बहे बनके गर्विता।।


मेघमाला-सी बिखरती 

खेलती घर-घर गगन में।

बाट जोहती जोगनियाँ  

सांसें सींचती लगन में।

ओढ़ चाँदनी उतरी निशि 

ज्यों भाव लहरी नंदिता।।


रंग तितलियों को देती  

फूलों में मकरंद भरती।

बाँह लिपटी हैं रश्मियाँ 

तरूवर-सी छाँव झरती।

भाल वसुधा के सजाती 

कवित अरुणोंदय अर्पिता।।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'

16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (26-3-22) को "घर में फूल की क्यारी रखना.."(चर्चा-अंक 4382)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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    1. मंच पर स्थान देने हेतु हार्दिक आभार आपका।
      सादर

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  3. रोम-रोम मेरे रमती
    श्वांसें कहती हैं कविता
    साज सरगम हृदय सजती
    जैसे बहती है सरिता।।
    कविता के साथ स्वयं की प्रगाढ़ता को परिभाषित करती बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ।

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    उत्तर
    1. हृदय से अनेकानेक आभार मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

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  4. मन में कविता के भाव बने रहें ,ये भी बड़ा उपकार है उपरवाले का।

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    1. सही कहा आपने।
      हृदय से आभार आपका।
      सादर

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  5. बहुत बहुत सुन्दर रचना

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  6. जब श्वासें कविता कहने लगती है कवि स्वयं कवितामय हो जाते हैं, विश्व के हर दृश्य में उन्हें कविता दिख जाती है,
    और हर धड़कन से कविता धड़कने लगती है।
    सुंदर शब्द चित्र, मोहक भाव प्रकृति से प्रेरित ।
    सुंदर रचना।

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    1. हृदय से अनेकानेक आभार आदरणीय कुसुम दी जी आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा।
      आशीर्वाद बनाए रखें।
      सादर

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  7. वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर कवितामय कविता
    लाजवाब।

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