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बुधवार, अप्रैल 6

हे कवि!



बगुला-भक्तों की मनमानी

कब विधाता की लेखनी ने जानी?

गौण होती भविष्य की रूपरेखा

हे कवि! तुमने कुछ नहीं देखा?


जन जीवन के, हृदय के फफोले 

भक्तों ने पैर रख-रखकर टटोले।

दबे कुचलों की मासूम चीखें

हे कवि! निष्पक्ष होकर लिखें।


बच्चों के हाथों से छीनते रोटी

जात-पात की फेंकते गोटी।

ग़रीबों का उजड़ता देख चूल्हा 

हे कवि! तुम्हारा पेट नहीं फूला?


कैसा मनचाहा खेल रचा?

ख़ुदा बनने का यही रास्ता बचा?

शक्तिमान बनने का कैसा जुनून?

हे कवि! क्यों नहीं टोकता क़ानून?


तुम भाव प्रकृति के पढ़ते हो

भावनाओं को शब्दों में गढ़ते हो?

वर्तमान देख भविष्य लिखते हो

हे कवि!  तुम कैसे दिखते हो?


दर्द लिखते हो? या दर्द  जैसा ही कुछ

अंतरमन में अपने झाँक कर पूछ।

सरहद-सी बोलती लकीर का खींचना

हे कवि! कर्कश होता है युद्ध का चीख़ना।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'


27 टिप्‍पणियां:

  1. दर्द लिखते हो? या दर्द जैसा ही कुछ

    अंतरमन में अपने झाँक कर पूछ।

    सरहद-सी बोलती लकीर न खींचना

    हे कवि! कर्कश होता है युद्ध का चीख़ना।
    युद्ध की विभीषिका का बहुत ही सुंदर वर्णन, अनिता दी। हर संवेदनशील हृदय यही सब तो सोच रहा है।

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 07 अप्रैल 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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    उत्तर
    1. आभारी हूँ सर मंच पर स्थान देने हेतु। समय पर नहीं पहुँच पाई माफ़ी चाहती हूँ।
      सादर

      हटाएं
  3. हमेशा की तरह सार्थक रचना, शुभकामनाओं सह।

    जवाब देंहटाएं
  4. सरहद-सी बोलती लकीर का खींचना
    हे कवि! कर्कश होता है युद्ध का चीख़ना।
    हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदय से आभार सृजन सार्थक हुआ आपकी प्रतिक्रिया मिली।
      सादर

      हटाएं
  5. हर कवि के अंतर को झकझोरती, उसके दायित्वों का बोध कराती, कहीं व्यथित, कहीं तंज में चली शानदार लेखनी।
    चिंतन परक रचना।
    बहुत सुंदर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. उत्साहवर्धन हेतु अनेकानेक आभार सृजन सार्थक हुआ आपकी प्रतिक्रिया मिली।
      सादर

      हटाएं
  6. तुम भाव प्रकृति के पढ़ते हो

    भावनाओं को शब्दों में गढ़ते हो।

    वर्तमान देख भविष्य लिखते हो

    हे कवि! तुम कैसे दिखते हो।
    कवि निष्पक्ष निस्वार्थ और निडर हो लिखे तोतो समाज की दिशा और दशा बदल दे।
    बहुत ही लाजवाब सृजन।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभारी हूँ आपकी सराहनासम्पन्न प्रतिक्रिया मिली।
      सृजन सार्थक हुआ।
      सादर

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  7. वाह अनीता ! तुम्हारी अन्योक्तियाँ कविवर बिहारी के दोहों की याद दिलाती हैं. 'कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना' लगाने वाला गुण कोई तुमसे सीखे. वैसे अहंकार तो कैसा भी स्तुत्य नहीं है.

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    उत्तर
    1. आदरणीय गोपेश मोहन जी सर सादर प्रणाम। अपनी सफाई में अब क्या कहूँ।
      आपसे सराहना मिली अत्यंत हर्ष हुआ।
      आशीर्वाद बनाए रखें।
      सादर

      हटाएं
  8. हे कवि तुम कैसे दिखते हो? अच्छी कविता

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  9. बहुत सुंदर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  10. तुम भाव प्रकृति के पढ़ते हो

    भावनाओं को शब्दों में गढ़ते हो?

    वर्तमान देख भविष्य लिखते हो

    हे कवि! तुम कैसे दिखते हो?
    बहुत सुंदर आदरणीय ।

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत संवेदनशील रचना ।
    हे कवि तुमने कुछ नहीं देखा ?
    यह पंक्ति हमेशा झकझोरती रहेगी ।

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  12. बहुत सुंदर विमर्शात्मक रचना

    जवाब देंहटाएं
  13. हे कवि! कर्कश होता है युद्ध का चीख़ना।
    हृदयस्पर्शी

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    उत्तर
    1. हृदय से आभार अनुज मनोबल बढ़ाने हेतु।
      सादर

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