ये जो सन्नाटा पसरा पड़ा है
इसकी परतें तुम मत खोलना।
विरह की रड़क थामे है मौन
टूटना-रुठना तुम मत घोलना।
मत बोलना! तुम मत बोलना!!
अव्यक्त नयन सोते में डूबा
जिह्वा का हठयोग रहा।
व्यक्त आजीवन एकदम उत्सर्ग
विधना का सुयोग रहा।
बैठ छाँव में निरख ढोलना
मत बोलना! तुम मत बोलना!!
व्यूह में उलझे अभिमन्यु के
अनकहे भाव सुलगते हैं।
न कहने की पीड़ा को पीते
कितने ही प्रश्न झुलसते हैं।
जीवन तराजू में न तौलना
मत बोलना! तुम मत बोलना!!
कोरे पन्नों पर बिखेर बेल-बूँटे
शीतल माटी गाँव गढ़े।
क़लम उकेरे तत्समता भावों की
उजड़े चित्त की ठाँव पढ़े।
उस पथ पर पथिक तुन दोलना
मत बोलना! तुम मत बोलना!!
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
व्यूह में उलझे अभिमन्यु के
जवाब देंहटाएंअनकहे भाव सुलगते हैं।
न कहने की पीड़ा को पीते
कितने ही प्रश्न झुलसते हैं।
जीवन तराजू में न तौलना
मत बोलना! तुम मत बोलना!!
विरह और ऐसी परिस्थिति दोनों ही मौन करने के लिए मजबूर होती प्रतीत हो रही हैं । भावपूर्ण रचना ।।
जी हृदय से आभार आदरणीय संगीता दी जी 🙏
हटाएंसादर प्रणाम
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26-05-22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4442 में दिया जाएगा| चर्चा मंच पर आपकी उपस्थित चर्चाकारों का हौसला बढ़ाएगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
हृदय से आभार आदरणीय सर मंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
अव्यक्त नयन सोते में डूबा
जवाब देंहटाएंजिह्वा का हठयोग रहा।
व्यक्त आजीवन एकदम उत्सर्ग
विधना का सुयोग रहा।
बैठ छाँव में निरख ढोलना
मत बोलना! तुम मत बोलना!!
वाह ! बहुत सुन्दर !!
उपालम्भ भाव से सजी कृति हृदयस्पर्शी लगी ।
आदरणीय मीना दी जी दिल से अनेकानेक आभार आपकी प्रतिक्रिया संबल है।
हटाएंसादर
बहुत सुंदर!!!!
जवाब देंहटाएंजी सर हृदय से आभार 🙏
हटाएंव्यूह में उलझे अभिमन्यु के
जवाब देंहटाएंअनकहे भाव सुलगते हैं।
न कहने की पीड़ा को पीते
कितने ही प्रश्न झुलसते हैं।
जीवन तराजू में न तौलना
मत बोलना! तुम मत बोलना!!
बहुत सुंदर...
हृदय से आभार अनुज।
हटाएंसादर
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २७ मई २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
श्वेता दी मंच पर स्थान देने हेतु हृदय से आभार।
हटाएंसस्नेह
तुम मत बोलना तो कलम कह रही है पर अंतस तो चाहता है कि उद्वेलित भंवर में मे फंसे मन की गांठें बस तुम ही खोलना।
जवाब देंहटाएंकुछ तो बोलना ढोलना , कुछ तो बोलना।
चुप नहीं ओढ़ना ढोलना मन के भेद खोलना।
कुछ तो मेरे मन की बोलना।
शानदार प्रस्तुति अप्रतिम सुंदर।
आदरणीय कुसुम दी जी आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा स्नेह आशीर्वाद बनाए रखें।
हटाएंसस्नेह आभार
अव्यक्त नयन सोते में डूबा
जवाब देंहटाएंजिह्वा का हठयोग रहा।
व्यक्त आजीवन एकदम उत्सर्ग
विधना का सुयोग रहा।
बैठ छाँव में निरख ढोलना
मत बोलना! तुम मत बोलना!!
मत बोलना बस यही तो दबाव रहा है युगों से और अब जीह्वा का हठधर्म न तोड़ना
बहुत सुन्दर सृजन।
हृदय से आभार आदरणीय सुधा दी आपकी प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ।
हटाएंसादर स्नेह
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय पम्मी जी 🙏
हटाएंसादर स्नेह
ना बोलते बोलते बहुत कुछ बोल गई ये कलम, बेहतरीन सृजन अनीता
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार कामिनी जी।
हटाएंसादर
पर आप यूँ ही सुन्दरता से बोलते (सृजन) रहिए। टिप्पणी जरा देख लेंगी। नहीं दिख रहा है।
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह अनमोल है मैं बोलती (सृजन )रहूंगी आप सुनते रहना। सफ़र कट जायेगा।
हटाएंबहुत सारा स्नेह
मौन गहरे पैठ गया है तभी सुन्दर भावभिव्यक्ति की रचना हुई, बहुत सुंदर!!
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार अनुपमा जी।
हटाएंसादर
बेहद खूबसूरती से लिखा गया है
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार अनुज।
हटाएंसादर
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार आपका।
हटाएंसादर