माई! पंछी प्रेम पुगायो
उण ही पीर सुणा बैठी।।
भाव बोल्या न बदळी गरजी
आभे देख गुणा बैठी।।
जैठ-आषाढ़ बळे तावड़ा
आंधी ख़्याळ रचावे है।
किण बोया कांटा कैरा रा
आँचळ आप छुड़ावे है।
नैण नीर दिण-रात बहाया
बिकी ही बाड़ बणा बैठी।।
माथ चूम तकदीरा रा।
आखर आँगणा जदे उग्या
पात झरा तकबीरा रा।
ठाठ-बाठ रो पसर च्यानणों
काळजड़ो भूणा बैठी।।
रूप ढुलै ढळते सूरज रौ
सिंझ्या थबकी दे दहरी।
रात च्यानणी पूनम बरगी
हिवड़ा टीस उठे गहरी।
लाडा भूखी हिया बसायो
जीवण बिरह बुणा बैठी।।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
शब्दार्थ
पुगाना/देना,उण / उसको,सुणा / सुना,बोल्या/बोलना,
बदळी /बदली,सिंझ्या/सांध्या,आभे/अंबर,जळाव/जलाव, जावतो/जाना, ख़्याळ/ख़्याल, चैतना ,किण/ किन, आँचळ/आँचल, आँगणा/आँगन, जद / जब,उग्या/उगना,तकबीर/प्रर्थना,पसर/फैलना,चानणो/उजाला,काळजड़ो/कलेजा ,भूणा/ भूनना, जलना,ढुलै/ ढुलना ,ढळते/ ढलना
सरावणजोग
जवाब देंहटाएंजी हृदय से आभार आपका।
हटाएंसादर
हृदयस्पर्शी गीत है यह। माई-रे-माई मुंडेर पे तेरी बोल रहा है कागा; जोगन हो गई तेरी दुलारी, मन जोगी संग लागा। आपकी राजस्थानी रचनाएं इस मनभावनी भाषा की धरोहर हैं जो इस संस्कृति को आने वाली पीढ़ियों तक ले जाएंगी। कृपया (सदा की भांति) राजस्थानी शब्दों के हिन्दी पर्याय गीत के नीचे दें जिससे भाषा से अपरिचित सुधी जन भी भावार्थ को पूर्णरूपेण आत्मसात कर सकें।
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार सर मेरे प्रयास को डग भरने हेतु समय समय पर आपने उत्साह के पँख लगाए 🙏
हटाएंआपकी प्रतिक्रियों ने धूप में छाँव सा सुकून दिया। अनेकानेक आभार 🙏
सादर नमस्कार
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (29-5-22) को क्या ईश्वर है?(चर्चा अंक-4445) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
जी हृदय से आभार मंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
बहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार सर।
हटाएंसादर
आपके गीतों में राजस्थान की संस्कृति,लोक जीवन और प्रकृति के साथ गीतों की आत्मारूपी भावों सजीव अंकन होता है । अत्यंत सुंदर अभिव्यक्ति के लिए बधाई स्वीकारें अनीता जी!
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार आदरणीय मीना दी जी।
हटाएंहृदय से अनेकानेक आभार
आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा।
सादर स्नेह
वाह, वाह!क्या बात है प्रिय अनीता ,बेहद खूबसूरत सृजन ।
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार प्रिय स्नेह में पगी आपकी प्रतिक्रिया ज्यों कह रही है ओ!साथी चल...।
हटाएंसादर स्नेह दी
कोई भी भाषा तो माध्यम भर ही होता है उन अमूर्त भावों को मूर्त करने के लिए। हृदय तक विरह भाव सघन पीड़ा से उतर रहा है। बहुत ही सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंशब्दों में उमड़ते पवित्र भाव शीतल झोंका से होते हैं थका व्यक्ति दो डग ओ भर लेता उसी एहसास में.... अकेले होकर भी अकेलापन नहीं खलता। आप वही झोंका हो प्रिय...
हटाएंबहुत सारा स्नेह
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार अनुज।
हटाएंसादर
ले उड़ियो पंछी पीर
जवाब देंहटाएंउण पंछी री तू एक हीर।
राजस्थानी में बोल बड़े सोवणे पत्थर भी बोल उठे... वाह!
ख़्याल रखना।
जी, घणी चोखी कही
हटाएंहीर बणन ताई जीवण तपा दियो।
दिल से आभार।
बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार सखी।
हटाएंसादर
वाह-वाह...
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन।
हृदय से अनेकानेक आभार सर।
हटाएंसादर
वाह अनीता जी, बहुत ही सुन्दर! मात्र तीन-चार शब्दों के लिए आपके द्वारा दिये शब्दार्थों को देखना पड़ा।
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार सर।
हटाएंआप आए सृजन सार्थक हुआ।
सादर
बहुत बेहतरीन।
जवाब देंहटाएंblog par swagat h
https://kuchmuskurahte.blogspot.com/
हृदय से आभार।
हटाएंसादर
बहुत सुन्दर ! आनंद है
जवाब देंहटाएंहिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
हृदय से आभार।
हटाएंसादर
आंचलिक भाषा में बहुत सुन्दर भावों से भरा गीत !
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार आदरणीय सर आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा आशीर्वाद बनाए रखें।
हटाएंसादर प्रणाम
मन को छू गाहे रचना के भाव ...
जवाब देंहटाएंहृदय से अनेकानेक आभार सर।
हटाएंसादर
...बेहद खूबसूरत सृजन
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार अनुज।
हटाएंसादर