टळ-टळ टळके पळसा पाणी
नीम निमोळ्या पान झड्या।।
नैणां नेह बाखळ रौ उमड्य
दुबड़ हिवड़ा जाल गढ्या।।
बादळ मुठ्या जल सागर रौ
जीवण सुपणा बौ रौ है।
रोहीड़ रा रूड़ा फूलड़ा
मनड़ा उठ्य हिलोरौ है।
कांगारोळ काळजड़ माथै
सुर-ताळ परवाण चड्या।।
प्रीत च्यानणा जळे पंतगा
दिवलौ पथ रौ काज करे।
रात चाले ओढ्या अंधेरों
ताख खूद पै नाज करे।
समय सोता सिणधु स्यूं गहरा
जग नीति रौ पाठ पढ्या।।
ओल्यूं घुळै दूर दिसावरा
जोग रूळै ताज जड्यो।
चाँद-चाँदणी मांड-मांडणा
धुरजी देख्य ठौड़ खड्यो।
गाँव गळी बदळा घर झूपां
पँख पसार पखेरू उड्या।।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
शब्दार्थ
पळसा/पोळ के भीतर का स्थान, मुख्य द्वार के अंदर का स्थान, निमोळ्या/नीम के फल,बाखळ/घर के सामने खुली जगह या धोरीमोडा के बाहर का स्थान, रूड़ा/रूखा,कांगारोळ/कौवे के ज्यों चिल्लाना, माथै/ऊपर,सिणधु/ सिंधु, च्यानणा/उजाला, घुळै/घुलना या मिश्रित होना, रूळै/मिटी में मिलना, धुरजी/धुर्व तारा, ठौड/एक ही स्थान पर खड़े रहना
राजस्थानी शब्द एवं उनके अर्थ मैं अपनी स्मृति के आधार पर लिखती हूँ।
बाखळ घर के सामने खुली जगह को कहते हैं। आज-कल न बाखळ रहे न वह बचपन, उमड़ आया हृदय में वह घर, आँगन उम्मीद है आप भाव और भाषा को अवश्य समझेंगे।
जब कोई लिखता है तब वह उस कविता का बहुत ही वृहद रूप जीता है। एक-एक भाव को शब्दों में गढ़ता है। उसे अनुवाद में कैसे समेटे? मुझे कुछ समय दे मैं प्रयास करुँगी।
सारांश... 'बाखळ जीवन और प्रेम का प्रतीक है' 'बाखळ' घर के बाहर का स्थान है जहाँ बच्चे खेला करते हैं घर के बुजुर्ग बैठे रहते हैं। घर आँगन की स्मृतियों में खोई नायिका के भाव ऐसे हैं जैसे बारिश के समय पळसे से पानी टपकता है यादें हृदय में दूब के ज्यों जाळ गढ़ रही है। सब कुछ छूटने के बाद नायिका अपने जीवण की कल्पना करती है कि उसके जीवन ऐसे है जैसे बादल अपनी अंजूरी में पानी लिए खड़ा है और वह स्वप्न बौ रही। रोहिड़े के रूखे फूलों के जैसे स्मृतियाँ हृदय में हिलोरे-सी उठ रही है ये घटनाएँ ऐसे है जैसे कागा, कागारोळ मचा रहा है सुर ताल सातवें आसमान को छू रहें हो।
इसके बाद नायिका कहती है दीपक तो अपने काम में व्यस्त है वह तो पथ पर उजाला कर रहा है प्रीत में पतंगा अपना जीवन स्वतः गवा रहा है
स्वयं पर व्यंग्य साधती नायिका कहती है रात अंधेरा ओढ़े चलती है परंतु वहीं एक ताख स्वयं पर कितन नाज़ करता है कि मेरे पास उजाला है। वैसे ही वह कहती है जग पग पग पर नीति का पाठ पढ़ाता है परंतु किसने देखा समय का सोता कितना गहरा है अगले ही पल उसकी कोख़ में क्या छिपा है।
यह सभी स्मृतियाँ दूर बैठी नायका के हृदय में घुल रही हैं वह स्वयं के भाग पर हँसती है। रात के इस पहर में वह देखती है चाँद चांदनी कल्पनाओं के सुंदर फूल गुंथ रहें है और धुर्व तारा यह दृश्य चुप चाप खड़ा देख रहा है। वह कहती है समय के साथ सब बदल जाता है गाँव गळी घर…बाखळ में खेलते पंछी को तो एक दिन उड़ना ही होता है वह बाखळ में कितने दिन रुकेगा।
बहुत सुंदर गीत रचा है आपने अनीता जी। 'ओल्यूं घुळै दूर दिसावरा'। ऐसे शब्द सीधे हृदय में उतरते हैं। आपके राजस्थानी गीत वास्तविक अर्थों में गीत ही होते हैं क्योंकि ये पूर्णतः छंदबद्ध और गेय होते हैं। आपसे अनुरोध है कि भाषा से अपरिचित पाठकों की सुविधा के लिए राजस्थानी शब्दों के हिंदी अर्थ अवश्य दें।
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार सर आप पधारे सच बड़ा अच्छा लगा। ब्लॉग जगत में आप और कुसुम दी ही हैं जो राजस्थानी में लिखे का मर्म स्पष्ट करते हो। अभी शब्दों के अर्थ लिखने ही आई थी तभी आपकी प्रतिक्रिया पढ़ी। सच बड़ा अच्छा लगा। अनेकानेक आभार सर।
हटाएंसादर नमस्कार।
प्रीत च्यानणा जळे पंतगा
जवाब देंहटाएंदिवलौ पथ रौ काज करे।
रात चाले ओढ्या अंधेरों
ताख खूद पै नाज करे।
अति सुन्दर सराहनीय सृजन अनीता जी ।
हृदय से आभार मीना दी।
हटाएंसादर
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 24 जून 2022 को 'ओ गौरैया अब लौट आओ बदल गया है इंसान' (चर्चा अंक 4470) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
हृदय से आभार सर मंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
बहुत सुंदर गीत
जवाब देंहटाएंबधाई
हृदय से आभार सर।
हटाएंसादर प्रणाम
आदरणीया अनीता जी, नमस्ते 🙏! आपकी इस रचना जो पढ़कर राजस्थान में प्रयुक्त आँचलिक शब्दों से परिचित होना बहुत अच्छा लगा. आप राजस्थानी में भी अवश्य लिखें. हार्दिक साधुवाद!
जवाब देंहटाएंकृपया दृश्यों के संमिश्रण और पृष्ठभूमि में मेरी आवाज में कविता पाठ की साथ निर्मित इस वीडियो को यूट्यूब चैनल के इस लिंक पर देखें और कमेँट बॉक्स में अपने विचारों को देकर मेरा मार्गदर्शन करें. हर्दिक आभार! ब्रजेन्द्र नाथ
यू ट्यूब लिंक :
https://youtu.be/RZxr7IbHOIU
सादर नमस्कार सर।
हटाएंहृदय से आभार आपका मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
आपकी कविता समय मिलते ही अवश्य सुनुँगी।
सादर
नेह बाखल रौ.. भावों से सजा बहुत सुंदर गीत ।
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार आपका।
हटाएंसादर
चोखो गीत!
जवाब देंहटाएंजी हृदय से आभार सहीत...
हटाएंसादर
धुरजी देख्य ठौड़ खड्यो।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन।
राजस्थानी नवगीतों पर आपकी लेखनी बहुत सुंदर सृजन कर रही है।
वैसे तो अपने अँचल की मारवाड़ी पर मेरी पकड़ सहज है पर जैसा की हर भाषा के साथ होता है थोड़ी दूरी पर भाषा बदलती है ,तो कुछ शब्द नहीं समझ आते , हालांकि ऊपर नीचे की पंक्तियों से भाव पता चल जाता है फिर भी अर्थ लिखने से ज्यादा साफ होते हैं भाव।और जिन्हें राजस्थानी भाषा नहीं आती वे भी सृजन का लुत्फ उठा सकते हैं।
इसलिए अर्थ लिखना ज़रूरी है।
जी दी सही कहा आपने मैं ख़याल रखूँगी। हृदय से अनेकानेक आभार स्नेह में पगी प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंभविष्य में भी यों ही आपका मार्गदर्शन चाहूँगी।
स्नेह आशीर्वाद बनाए रखें।
सादर प्रणाम
सुन्दर गीत !
जवाब देंहटाएंअनीता, जहाँ तुम कठिन राजस्थानी शब्दों का हिंदी अर्थ देती हो वहां अगर तुम अपने इन गीतों का हिंदी भावार्थ भी दे दो तो राजस्थानी भाषा से अनभिज्ञ पाठकों तक भी तुम्हारी बात पूरी तरह पहुँच जाएगी. यह कार्य श्रम-साध्य तो होगा लेकिन इस से तुम्हारे प्रशंसकों की संख्या बहुत बढ़ जाएगी.
आदरणीय गोपेश जी सर।
हटाएंसादर प्रणाम 🙏
मैं भविष्य में नवगीत का सार लिखने का पूरा प्रयास करुँगी परंतु मैं न्याय नहीं कर पाऊँगी। कुछ झूठ लिखा जायेगा। अपने भावों गीत या नवगीत में लिखना आसान होता है। हम उपमाएँ देकर कहते हैं सीधा कहूँगी तब हृदय का भार ज्यादा बड़ जायेगा। मुझे कुछ समय दे मैं स्वतः...
बाखळ का सार कुछ समय में लिखती हूँ।
सादर
शाबाश अनीता ! हिंदी भावार्थ देने से तुम्हारे गीत के प्रशंसकों की संख्या अब और बढ़ जाएगी.
हटाएंहृदय से आभार सर आपका आशीर्वाद यों ही बना रहें।
हटाएंसादर
वाह!प्रिय अनीता ,खूबसूरत सृजन !
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार प्रिय शुभा जी आपकी प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ।
हटाएंसादर स्नेह
बहुत सुंदर गीत...
जवाब देंहटाएंभावार्थ देकर आपने हमारे लिए भी समझना आसान कर दिया गीत को...
बहुतही लाजवाब।
जी हृदय से आभार आपका सृजन सार्थक हुआ।
हटाएंसादर स्नेह
I am very thankful to you for providing such a great information. It is simple but very accurate information.
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