रविवार, जून 26

जीवण जेवड़ी


जीवण जेवड़ी रहट घूमे 

चौमासे री रात गळे।।

नाच नचावै म्रग तिसणा।

ताती माटी पैर तळे।।


राग अलापे पंछी भोळा 

मूक-बधिर पाहुण ठहरा।

झंझावात जंजाळ बुणावै

धी  बूंटा काडे गहरा।

प्रेम आभै रै पगती बुई

आभ निरखे आपे ढळे।।


लौ लपट्या झूलस्य धरती 

लुट्य तरवर रौ सिणगार।

पून सुरमो सारया थिरके 

काग सिळगावै अंगार।

छाँव रूँख री रूँख रै मथै

दो सूरज अक साथ जळे।।


ओढ़ ओढ़णी चाले टेडी

 रंग बुरकावै नुआँ-नुआँ।

दिण दोपहरी सूरज ढळता 

धूणी सिळगे धुआँ-धुआँ।

काळी-पीळी सज सतरंगी

फिरती-घिरती हिया छळे।।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'

शब्दार्थ

जेवड़ी /रस्सी, रहट/ कुएँ से पानी निकालने का एक ऐसा यंत्र, जिस से रस्सी से पानी निकाल जाता है, ताती/गर्म,तळे/नीचे,लौ लपट्या/ आग की लपटे,सुरमो/ काजल,रूँख/वृक्ष,मथै/ऊपर,अक/एक,बुरकावै/बरसाना,नुआँ-नुआँ/नया-नया, बुई / छोटा मरुस्थली पौधा होता है जो बदल जैसा सफ़ेद दिखता है।

26 टिप्‍पणियां:

  1. बेनामी27/6/22, 5:25 am

    सरावणजोग

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  2. 'नाच नचावै है मृगतृष्णा, ताती माटी पैर तळे' और 'राग अलापे पंछी भोळा, मूक-बधिर पाहुण ठहरा'। कितने सरल शब्दों में कितने गहन सत्य बतला दिए हैं आपने अनीता जी! आपका यह गीत बहुत सुंदर है तथा राजस्थानी भाषा से अनभिज्ञ पाठकगण भी इसे सहज ही समझ सकते हैं। अभिनन्दन।

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    1. हृदय से अनेकानेक आभार आपका सर। सही कहा 'जीवण जेवड़ी' सरल शब्दों में बहता नवगीत है। जीवण के प्रति सामान्य सी अभिव्यक्ति।
      मेरे भाव एवं शब्दों की समीक्षा हेतु आपने समय निकाल हृदय से आभार।
      सादर

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  3. वाह! बहुत ही सुंदर दो सूर्य का एक साथ जलना गहन व्यंजना ।
    सरलता में गहनता लिए सुंदर सृजन।
    राजस्थानी नवगीत पर श्रमसाध्य कार्य साहित्य जगत में प्रेरणादायक।
    सस्नेह।

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    1. सृजन सार्थक हुआ आदरणीया दी आप पधारे। हृदय से आभार।
      आशीर्वाद बनाए रखें।
      सादर स्नेह

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  4. वाह अनीता ! सुन्दर भाव वाला मधुर गीत !

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    1. हृदय से आभार आदरणीय सर आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा।
      सादर

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  5. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 28 जून 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. हृदय से आभार आपका मंच पर स्थान देने हेतु।
      सादर

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  6. पून सुरमो सारया थिरके
    काग सिळगावै अंगार।
    छाँव रूँख री रूँख रै मथै
    दो सूरज अक साथ जळे।।
    बहुत सुन्दर भावों के साथ गहनता लिए अत्यंत सुन्दर नवगीत 👌👌

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    1. हृदय से आभार मीना दी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर स्नेह

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  7. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (28-6-22) को "आओ पर्यावरण बचाएं"(चर्चा अंक-4474) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

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    1. हृदय से आभार मंच पर स्थान देने हेतु।
      सादर

      हटाएं
  8. वाह!प्रिय अनीता ,क्या बात है ! जीवन जेवणी रहट घूमे ....नाच नचावे है मृगतृष्णा ...बहुत ही गहन अर्थ लिए खूबसूरत सृजन 👌👌

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    1. हृदय से आभार प्रिय शुभा दी जी आपकी प्रतिक्रिया मिली सृजन सार्थक हुआ।
      सादर

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  9. सुंदर रचना पढ़ने में अर्थ सहित अच्छा लगा

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  10. हंलांकि राजस्थान में पच्चीस वर्ष रहना हुआ , लेकिन भाषा के मामले में जीरो ही रहे ....... अठे - कठे के अलावा कुछ न सीखा ..... यहाँ अर्थ पढ़ पढ़ कर भाव समझ रही हूँ ........ बेहतरीन रचना ...

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    1. सादर नमस्कार दी।
      आप ने सही कहा, कुछ शब्द तो शायद आज के नौजवानों को भी क्लिष्ट लगे। आज ज्यादातर हिंदी जैसी मारवाड़ी ही बोली जाती है। ये शब्द मेरी स्मृति में मेरे दादा जी की आवाज़ के रूप में गुजतें हैं उनका स्नेह बहुत मिला मुझे, मेरा समय स्कुल या दादा जी के साथ ही बिता उन्ही के आगे पीछे डोलती रहती थी। उनकी स्मृतियों खोज कर लाती हूँ। मेरे जीवन पर बुजुर्गों का प्रभाव ज्यादा है फिर ससुराल में दादी सास मिल गए।
      बहुत अच्छा लगा आप आये।
      सृजन सार्थक हुआ।
      आशीर्वाद बनाए रखें।
      सादर

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  11. सुंदर गीतमय प्रस्तुति !! पढ़ते पढ़ते अब ये भाषा कुछ समझ आने लगी है !!

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  12. बहुत सुंदर सराहनीय रचना ।

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  13. Hi, their colleagues, nice paragraph and nice arguments commented here, I am really enjoying by these.

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  14. You have lots of great content that is helpful to gain more knowledge. Best wishes.

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