तुम्हें पता है?
उधमी बादलों का यों
गाहे-बगाहे उधम मचाना
सूरज को हथेली से ढकना
ज़िद्दीपन ओढ़े गरजना
संस्कारहीनता है दर्शाता
चहुँ ओर फैले अंधकार के
स्वर कोंधते हैं कानो में
वृक्षों का मौन मातम
कोंपलें करता है कलुषित
आँखों से बहता हाहाकार
धड़कनों पर रहता है सवार
अवचेतन की गोद में क़लम
स्थूल पड़े शब्दों का ज्वर
आशंकाओ में उलझी बुद्धि
घोंसले में दुबके पखेरू
अँधेरा बुझाता पहेलियाँ
चेतना टटोलती उजाला
दीपक हवाओं की क़ैद में हैं!
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 01 जुलाई 2022 को 'भँवर में थे फँसे जब वो, हमीं ने तो निकाला था' (चर्चा अंक 4477) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
बहुत सुंदर❤️
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर लिखा है आपने।। इक कैद में ही यह गठबंधन पलता है!!!
जवाब देंहटाएंअवचेतन की गोद में क़लम
जवाब देंहटाएंस्थूल पड़े शब्दों का ज्वर
आशंकाओ में उलझी बुद्धि
घोंसले में दुबके पखेरू
अँधेरा बुझाता पहेलियाँ
चेतना टटोलती उजाला
दीपक हवाओं की क़ैद में हैं!
अद्भुत बिम्ब विधान एवं गूढ़ अर्थ समेटे बहुत ही सार्थक सृजन।
वाह!!!
चेतना टटोलती हवाएँ
जवाब देंहटाएंएक दिन उजालों के
वलय में घूमती रह जायेंगी
दीपक जलता रहेगा
फैलाता रहेगा प्रकाश।
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सारगर्भित सुंदर अभिव्यक्ति।
सस्नेह।
वाह अनीता !
जवाब देंहटाएंमेरा एक प्रश्न है - क्या तुमने यह कविता आज के भारत के राजनीतिक परिवेश पर लिखी है?
मन के कोलाहल को शब्द देती भवपूर्ण रचना ।
जवाब देंहटाएंगजब !!
जवाब देंहटाएंसफल अभिव्यक्ति !
उधमी बादलों का यों
जवाब देंहटाएंगाहे-बगाहे उधम मचाना
सूरज को हथेली से ढकना
ज़िद्दीपन ओढ़े गरजना
संस्कारहीनता है दर्शाता
.बहुत खूब!
A must read post! Good way of describing and pleasure piece of writing. Thanks!
जवाब देंहटाएंअँधेरा बुझाता पहेलियाँ
जवाब देंहटाएंचेतना टटोलती उजाला
दीपक हवाओं की क़ैद में हैं!
बहुत ही सार्थक सृजन।
सार्थक रचना
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