राम-रमौवळ खग री वाणी
माणस मोती जूणा है।।
पीड़ा सहे सीप-सी स्रिस्टा
टेम घड़ी री हूणा है।।
रास रचावै सोनल किरणां
डिगै नहीं दोपहरा ईं।
कोनी जाणै लाण रूसणों
तड़के उठे सबेरा ईं।
बादळियै री छेड़े छांटां
सूरज आभै थूणा है।।
चानणों रंग सात रचावै
नैणा हिवड़ा घोळे हेत।
पग ध्वणियां असाढ़-सावण री
बाट जोवती नाचे रेत।
दूब उचके काळजे माथे
फले फूलती कूणा है।।
पता घूळे रोळी हींगळू
मेदिणी निरखे सिणगार।
जोत जळावै बादळ चूंखा
पून पांखा सिलग आंगार।
काळ घट गड्या ईबकाळै
भाव सागरा सूणा है।।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
शब्दार्थ
राम-रमौवळ/राम में रमे स्वर या राम मयी स्वर,जूणा/योनि,हूणा/समय,सोनल किरणां/सूर्य की किरण,डिगै/ बैठना ,कोनी /नहीं,जाणै/जानना ,रूसणों/नाराज होना,तड़के/भोर का समय ,बादळियै/बादल,छांटां/बारिस की बुँदे,आभै/आकाश , थूणा/स्तूप,चानणियो/उजाला ,हेत/प्रेम,चूंखा/रुई ,ईबकाळै/इस बार , स्रिस्टा /सृष्टि का निर्माण करने वाला
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 15 जुलाई 2022 को 'जी रहे हैं लोग विरोधाभास का जीवन' (चर्चा अंक 4491) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
हृदय से आभार सर मंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
वाह ! अनीता जी ।
जवाब देंहटाएंसुंदर सराहनीय रचना ।
हृदय से आभार जिज्ञासा जी।
हटाएंसादर
वाह बहुत ही सुन्दर गीत सखी
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार सखी।
हटाएंसादर
'बाट जोवती नाचे रेत' एवं 'भाव सागरा सूणा है' जैसे उद्गार किस भावुक मन को न छू जाएं? एक सुंदर भाषा एवं एक भावनाओं से ओतप्रोत इतिहास व संस्कृति के स्वामी प्रदेश से साहित्य-प्रेमियों को परिचित करवाने का श्लाघनीय कार्य कर रही हैं आप।
जवाब देंहटाएंहृदय से अनेकानेक आभार आदरणीय जितेन्द्र जी से आप की प्रतिक्रिया से उत्साह द्विगुणित हुआ।
हटाएंएक बार फिर हृदय से आभार।
सादर
मरू प्रदेश का सजीव सरस चित्रण के साथ बहुत सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार मीना जी।
हटाएंसादर स्नेह
वाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार भारती जी।
हटाएंसादर
बहुत सुन्दर अनीता. राजस्थानी गीतों की तो तुम मलिका हो.
जवाब देंहटाएंआदरणीय गोपेश जी सर आपका स्नेह है यह, मैं चाहूँगी आपके शब्द यों ही फले फूले।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखें।
सादर प्रणाम
आपरी कवितावां नूंवी दीठ रो उजास देवै। कथ्य अर शिल्प भी घणो लुभावै। शब्दां नै बरतणौ अर परोटणौ साधना रौ अबखौ कारज हौवै।आपरी कवितावां संभावनां रा नुवां किवाड़ खोलसी म्हारी घणी बधाई अर शुभकामणा।लगौलग लिखणै री खैचल करता रैवो अर भलै ई लिखौ थोड़ौ पण पढौ बेसी।
जवाब देंहटाएंसंबल बनती सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु हृदय से अनेकानेक आभार आदरणीय सर।
हटाएंसादर नमस्कार।
घणी चोखी लिखी बाईसा, सोणी भाषा परकरती रो घणों फूठरो बरणन,मनड़ो मोय लियो आपरे इण नवगीत ने।
जवाब देंहटाएंसांची केई राजस्थान में सावण रो स्वागत तो नाचती बालु रेत भी करे।
हृदय से अनेकानेक आभार आदरणीय कुसुम दी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर स्नेह