सैनिकों की बेटियाँ
पिता के स्नेह की परिभाषा
माँ के शब्दों में पढ़ती हैं।
भावों से पिता शब्द तराशतीं
पलक झपकते ही बड़ी हो जाती हैं।
पिता शब्द में रंग भरतीं
माँ को सँवारतीं
स्वप्न के बेल-बूँटों को स्वतः सींचतीं
टूटने और रूठने से परे वे
न जाने कब सैनिक बन जाती हैं।
बादलों की टोह लेतीं
धूप-छाँव के संगम में पलीं वल्लरियाँ
रश्मियों-सी निखर जाती हैं।
हृदय-भीत पर मिट्टी का लेप लगातीं
न जाने कब घर का स्तंभ बन जाती हैं।
जटायू हूँ मैं
कह काल के रावण को डरातीं
छोटे जूतों में बढ़ते पैरों को छिपातीं
माँ की ढाल बनते-बनते
न जाने कब पिता की परछाई बन जाती हैं।
सैनिकों की बेटियाँ
पलक झपकते ही बड़ी हो जाती हैं।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
वाह!बहुत खूब प्रिय अनीता । आपसे बेहतर कौन समझेगा इस बात को ।
जवाब देंहटाएंसत्य कथन अनीता जी ! सैनिकों की लाड़ली बेटियों को समर्पित भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत भाव के साथ रची हुई कविता।
जवाब देंहटाएंनमस्ते अनीता जी कैसी हैं। हमेशा की तरह बहुत ही भावपूर्ण सृजन। पर कहीं-कहीं वर्तनी दोष कविता के सौन्दर्य को चुनौती दे रहा है।
जवाब देंहटाएंसादर
जी कृपया शब्द स्पष्ट कराए।
हटाएंसादर
अब एक ही है 'तराशतीं ' होना चाहिये, बाकी तो आपने ठीक कर लिये हैं।
हटाएंनहीं आप कृपया देखे, मुझे कुछ दिखा ही नहीं हाँ एक जगह देशज शब्द था *बल्लरियाँ* उसका वल्लरियाँ किया मेरे ख़याल से तरासतीं ही है माफ़ी चाहूँगी, तराशतीं नहीं होगा। शब्द उच्चारण और शब्द सौंदर्य से मुझ तरासतीं ही उचित लगा।
हटाएंहृदय से आभार आपका।
सादर स्नेह
आप ठीक थे दी माफ़ी चाहूँगी मेरा उच्चारण गलत था 🙏
हटाएं*तराशतीं* ही होगा न की *तरासतीं *
स, श, ष के उच्चारण में स्थानीय शब्दों या उच्चारण में उलझती हूँ।
दी से माफ़ी यार 🙏
बहुत सुंदर , भवपूर्ण अभव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंयह देख कर अच्छा लगा कि तुमने सुधार की गुँजाइश रखी है । वरना तो लोग बुरा मान जाते हैं ।
सही कहा अनिता दी कि सैनिकों बेटियां जल्दी ही बड़ी हो जाती है। बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (18-7-22}
को सैनिकों की बेटियाँ"(चर्चा अंक 4495)
पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
बहुत सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंसैनिक की बेटी हो या फिर सैनिक की पत्नी हो या फिर सैनिक की माँ हो, उसकी अनुपस्थिति में ये सब मुश्किल हालात से लड़ते-लड़ते ख़ुद एक जुझारू सैनिक बन जाती हैं और ये मुश्किलों की अपनी-अपनी जंग जीतने में कामयाब होती हैं.
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण अभिव्यक्ति सखी मन को छू गई आपकी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर मन भर आया।
जवाब देंहटाएंसेनिकों को बेटियां और पत्नियां भाग ही ऐसा लाती है।
भाई और पिता हो तो माँ को सहारा मिल जाता है परन्तु ये खुद ही अपना सहारा होती है।
अभिनव सृजन, मन को आलोड़ित करता सा। बिल्कुल पास का अनुभव एक सदृश एहसास से सिंचित रचना।
जवाब देंहटाएं"धूप-छाँव के संगम में पली वल्लरियाँ "
बहुत ही सुंदर अभिव्यंजना है ।
धूप छाँव जिंदगी के उतार चढ़ाव वह दैनिक सामने आती परिस्थियाँ, को एक पंक्ति में सुंदरता से समेटा है आपने। गहन भाव दे रही हैं ये पंक्ति।
सस्नेह।
आपका लेखन हृदय स्पर्शी होता है|
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