आपके साथ यह ख़ुशी साझा करते हुए मन प्रफुल्लित है कि अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त वैश्विक हिंदी पत्रिका 'अनन्य' जो भारतीय कौंसलावास (न्यूयार्क,संयुक्त राज्य अमेरिका ) से निकलती है, उसमें मेरी कविता 'ग्रामीण औरतें' को स्थान मिला है l
आप भी पढ़िए मेरी कविता और पत्रिका 'अनन्य' का विस्तृत विवरण व लिंक-
https://twitter.com/jagdishvyom/status/1582432743954165760?t=zbfL9XKyOkxkIgMsbI1_hg&s=08
न्यूयॉर्क में स्थित भारतीय कौंसलावास से निकलने वाली वैश्विक हिंदी पत्रिका ‘अनन्य’ (अनन्य मुख्य पत्रिका) का अक्टूबर अंक आप के हाथों में सौंपते हुए हर्ष हो रहा है ।
इस अंक में शामिल हैं -
विनय मिश्र और जगदीश पंकज के नवगीत
प्रत्यक्षा और अशोक मिश्र की कहानियाँ
महेश शर्मा और राम करन की लघु कथा
दुष्यंत कुमार की कविता – गाँधी जी के जन्म दिन पर, प्रस्तुति अनूप भार्गव
अनीता सैनी ‘दीप्ति’ की कविता
डा. अनिता कपूर के हाइकु
दीपक गुप्ता का लोक कला पर आलेख
पवन कुमार जैन का व्यंग्य
हरेराम समीप और डा. भावना की ग़ज़लें
मनोज मोहन का कला पर आलेख : एकांत घर का रहवासी-रामकुमार
चित्र और चित्रकार – मुकेश साह
-डा० जगदीश व्योम
Jagdish Vyom
संपादक
अनन्य
ये कागद की लुगदी से
मटके पर नहीं गढ़ी जाती
और न ही
मिट्टी के लोथड़े-सी चाक पर
चलाई जाती हैं।
माताएँ होती हैं इनकी
ये ख़ुद भी माताएँ होती हैं किसी की
इनके भी परिवार होते हैं
परिवार की मुखिया होती हैं ये भी।
सुरक्षा की बाड़ इनके आँगन में भी होती है
सूरज पूर्व से पश्चिम में इनके लिए भी डूबता है
रात गोद में लेकर सुलाती
भोर माथा चूमकर इनको भी जगाती है।
गाती-गुनगुनाती प्रेम-विरह के गीत
पगडंडियों पर डग भरना इन्हें भी आता है
काजल लगाकर शर्मातीं
स्वयं की बलाएँ लेती हैं ये भी।
भावनाओं का ज्वार इनमें भी दौड़ता है
ये भी स्वाभिमान के लिए लड़ती हैं
काया के साथ थकती सांसें
उम्र के पड़ाव इन्हें भी सताते हैं ।
छोटी-सी झोपड़ी में
चमेली के तेल से महकता दीपक
सपने पूरे होने के इंतज़ार में
इनकी भी चौखट से झाँकता है।
सावन-भादों इनके लिए भी बरसते हैं
ये भी धरती के जैसे सजती-सँवरती हैं
चाँद-तारों की उपमाएँ इन्हें भी दी जाती हैं
प्रेमी होते हैं इनके भी,ये भी प्रेम में होती हैं।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
स्त्री के जीवन चक्र को सधे हुए साँचे में ढाला है आपने ..,आपकी लेखनी की पकड़ राजस्थानी सृजन जैसी ही अतुकांत रचनाओं में भी है ।
जवाब देंहटाएंशब्द नहीं होते कभी-कभी प्रिय मीना दी जी आपके स्नेह हेतु।
हटाएंआपको मेरा लिखा अच्छा लगता आप मेरे ब्लॉग पर देर सबेर ही सही हमेशा आते हो।
स्नेह हेतु हृदय से आभार।
सादर स्नेह
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 19 अगस्त 2022 को 'अपनी शीतल छाँव में, बंशी रहा तलाश' (चर्चा अंक 4526) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:30 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
हृदय से आभार आदरणीय सर मंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर प्रणाम
सुंदर सराहनीय रचना ।
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार आपका प्रिय जिज्ञासा जी।
हटाएंसादर स्नेह
क्यों ना हो ग्रामीण औरतों में ये सब...
जवाब देंहटाएंमेरे ख्याल से और भी खुलकर जीती हैं ग्रामीण औरतें...
सुरक्षा की बाड़ इनके आँगन में भी होती है
सूरज पूर्व से पश्चिम में इनके लिए भी डूबता है
रात गोद में लेकर सुलाती
भोर माथा चूमकर इनको भी जगाती है।
प्रकृति का सानिध्य तो इन्हें शहरी लोगों से अधिक ही मिलता है...
बहुत ही सुन्दर सृजन
वाह!!!
आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा प्रिय सुधा दी जी।यह सब शिक्षा और जागरूकता पर निर्भर करता है।गाँवों की श्रेणियाँ भी अलग-अलग होती हैं कहीं शिक्षा का स्तर अच्छा है तो कहीं बिल्कुल भी नहीं हैं। विविधता में एकता कहे जाने वाले भारत का हृदय देखा।हाल ही मैं राजस्थान और मध्यप्रदेश बॉर्डर पर बसे एक गाँव छबरा में घूमते-घूमते पहुँची।आस-पास के छोटे गाँव भी घूमे वहाँ की संस्कृति से अवगत हुई। ग़रीबी क्या होती है वहाँ पहुँच कर पता चला। अभावों में जीकर हँसना क्या होता है उनसे सीखा।
हटाएंयों ही लिखी गई यह रचना उन औरतों के चेहरे उनकी पीड़ा हृदय में उतर आई।
आपका स्नेह अनमोल है।
सादर स्नेह
शोफ़र ड्रिवेन कार में ब्यूटी पार्लर में जा कर, हज़ारों रूपये फूँक कर, अपनी रूप सज्जा कराए बिना कैसे कोई औरत प्रेम कर सकती है या सपने देख सकती है? दिन-रात काम करते-करते इन्हें शरमाने की फ़ुर्सत कब मिल पाती है?
जवाब देंहटाएंग्रामीण औरतें किसी कविता का विषय कैसे बन सकती हैं?
इन से तो बस, खेत में, घर में काम कराया जा सकता है और इनका दिन-रात शोषण किया जा सकता है.
आदरणीय गोपेश मोहन जी सर।
हटाएंसुप्रभात।
कभी-कभी मन होता है आपके प्रतिउत्तर में एक उपन्यास लिख दूँ।
आपने ठीक कहा परंतु धूप और मिट्टी से चेहरे पर बनी एक नई परत में बड़ी लुभाती हैं ग्रामीण औरतें किसने कहा शरमाती नहीं हैं? स्वयं के रूप की कसमक से उठे भाव से झुकी पलकें, अतिथि सत्कार में कोई कमी न रहे उससे बढ़ी धड़कने। काजल तो ऐसे लगाती हैं जैसे एक माँ ने बच्चे की आँखों में उड़ेला दिया हो।दुखों में भी आँगन में सुख को बिखेरना कोई इनसे सीखे।
शोषण के बारे में क्या कहूँ, मेरी नज़र उधर पड़ी ही नहीं, उस वक़्त मैं उनके प्रेम में पड़ गई।
वैसे एक जागरूक व्यक्ति अशिक्षित का करता ही है। फिर चाहे वह गाँव हो या सहर,सम्पूर्ण राजस्थान में महिलाओं की शिक्षा दर हमारे झुंझुनू में सबसे ज़्यादा है कोई वहाँ की औरतों का शोषण करके बताए। पुरुष आर्मी में ज्यादा है सो वहाँ की औरतें ही पुरुष है। अच्छा लगा आपसे बात करके।
आपका आशीर्वाद अनमोल है।
सादर प्रणाम
बहुत ही सुन्दर रचना एक-एक शब्द मोती सम आभा लिए कविता के मर्म को अभिव्यक्ति दे रहा है।आपकी लेखनी में जादू है सखी
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार प्रिय सखी आपका स्नेह अनमोल है।
हटाएंसादर स्नेह
ग्रामीण है तो क्या है तो इंसान ही इनके भी मन में भाव समंदर लहराता है , ये भी अपने आपका 100% देती हैं ,और चाहती भी हैं खूले आसमान में उड़ना ,पर नहीं मिलता है तो नकारात्मक को भी सकारात्मक बनाती हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत ही गहन और भावात्मक सृजन।
किसी के मनोभावों का इतना सुंदर विश्लेषण!!
अभिनव अनुपम।।
सही कहा दी आपने प्रेम का कोई रूप नहीं होता।आज आपको प्रेम का एक रूप बताती हूँ।घर में पशु अधिक होने पर कुछ दिनों पहले हमारे घर में भैंस बेची थी अचानक मेरा फोन करना हुआ। मेरी माँ फूट-फूट कर रोने लगी। सुनने में आया दो दिन तक उसने खाना नहीं खाया उसके वियोग में।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद हेतु हार्दिक आभार दी।
सादर प्रणाम
वाह!अनीता,बहुत खूबसूरत । भाव और भावना तो सभी के हृदय में होती है न ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार दी।
हटाएंसादर स्नेह
सुंदर 👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार
हटाएंसादर स्नेह
आदरणीय अनीता जी..बहुत सुंदर व्याख्या की है। ग्रामीण परिवेश से आता हूँ इसलिए जानता हूँ कि ग्रामीण महिलाओं के अरमानों से परिचित हूँ। उनकी हिम्मत और हौंसले के सामने तो पहाड़ भी छोटा पड़ जाए। बाकी आपने कविता में सबकुछ कह ही दिया।
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार आदरणीय,
हटाएंआपकी प्रतिक्रिया से उत्साह द्विगुणित हुआ।
सादर
Nice Post Good Informatio ( Chek Out )
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