सांसों से उलझते भाव
जीभ से लिपटते स्वर
होंठों का कंपन
समय की कोख में सदियों ठहरे
कितनी ही बोलियों ने गर्भ बदले
असंख्य चोटें खाईं
अभावों को भोग
भावों को जुटा हिंदी अधरों पर आई
अथाह गहराई हृदय की अकुलाहट
हवा में तैरते मछलियों से शब्द
एक-एक शब्द में प्राण फूँके
टहलता जीवन, जीवन जो
स्वयं कहानी कहता है अपनी
कहता है-
विरासत के भोगियों !
प्रेम है मुझसे!
तब ढूँढ़ लो उस ठठेरे को
भोगी जिसने प्रथम शब्द की प्रसव-पीड़ा
गढ़ा जिसने पहला शब्द
ऊँ शब्द में पुकार
माँ शब्द में दुनिया
पिता शब्द में छाँव गढ़ी।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 16 सितंबर 2022 को 'आप को फ़ुरसत कहाँ' (चर्चा अंक 4553) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
हृदय से आभार सर मंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १६ सितंबर २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
हृदय से आभार दी मंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंवाह!प्रिय अनीता ,बहुत सुन्दर भाव !
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार दी
हटाएंबहुत गहरे भाव । सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार आदरणीय संगीता दी जी।
हटाएंवाह! अच्छी अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार सर।
हटाएंवाह अनीता ! हमारी आत्मा को, हमारे विवेक को, झकझोरने वाली बहुत सुन्दर विचारोत्तेजक कविता !
जवाब देंहटाएंआज हम अपनी मातृभाषा से, अपनी मातृभूमि से ही क्या, अपनी माँ से भी अपरिचित होते जा रहे हैं और इस कारण स्वयं अपनी पहचान मिटाते जा रहे हैं.
हृदय से आभार सर आपकी प्रतिक्रिया से विचारों को संबल मिला।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखें।
सादर प्रणाम
सत्य कहा। अति सुन्दर भाव सृजन।
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार आदरणीया अमृता दी जी।
हटाएंसादर स्नेह
कितनी ही बोलियों ने गर्भ बदला
जवाब देंहटाएंअसंख्य चोटें खाईं
अभावों को भोग
भावों को जुटा हिंदी अधरों पर आई
बहुत सटीक... एवं सारगर्भित
लाजवाब सृजन
हिंदी दिवस की अनंत शुभकामनाएं ।
हृदय से आभार मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार सर आपके आने से सृजन सार्थक हुआ।
हटाएंसादर
बहुत सुंदर सृजन अनिता आप का, थोड़े शब्दों में बहुत कुछ कह रही है यह अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंअभिनव भाव!!
सच कितने रूप बदले कितनी भाषाओं के शब्द आकर मिले कितना दर्द सहा तब जाकर आज एक परिष्कृत रूप में हमारे सामने है, पर आज भी उचित सम्मान नहीं पा सकी।।
हृदय से आभार कुसुम दी आपकी प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखें।
सादर स्नेह
बहुत ही सुन्दर रचना सखी
जवाब देंहटाएंजी हृदय से आभार।
हटाएंबेहतरीन रचना सखी
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार सखी।
हटाएंअच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
जवाब देंहटाएंgreetings from malaysia
let's be friend