परग्रही की भांति
धरती पर नहीं समझी जाती
स्त्री की भाषा
भविष्य की संभावनाओं से परे
किलकारी की गूँज के साथ ही
बिखर जाते हैं उसके पिता के सपने
बहते आँसुओं के साथ
सूखने लगता है
माँ की छाती का दूध
बेटी के बोझ से ज़मीन में एक हाथ
धँस जाती हैं उनकी चारपाई
दाई की फूटती नाराज़गी
दायित्व से मुँह मोड़ता परिवार
माँ कोसने लगती हैं
अपनी कोख को
उसके हिस्से की ज़मीन के साथ
छीन ली जाती है भाषा भी
चुप्पी में भर दिए जाते हैं
मन-मुताबिक़ शब्द
सुख-दुख की परिभाषा परिवर्तित कर
जीभ काटकर
रख दी जाती है उसकी हथेली पर
चीख़ने-चिल्लाने के स्वर में उपजे
शब्दों के बदल दिए जाते हैं अर्थ
ता-उम्र ढोई जाती है उनकी भाषा
एक-तरफ़ा प्रेम की तरह।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार 10 नवंबर 2022 को 'फटते जब ज्वालामुखी, आते तब भूचाल' (चर्चा अंक 4608) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
स्त्री की पीड़ा का मार्मिक वर्णन, अब समय बदल रहा है, सुनी जा रही है उनकी आवाज़
जवाब देंहटाएंवाह!!प्रिय अनीता ,बहुत सुंदर !! ..बडी खूबसूरती के साथ हृदय के भावों को अभिव्यक्त किया है
जवाब देंहटाएंअपने ऊपर हो रहे ज़ुल्मों पर अपनी आँखों से स्त्री कब तक आंसू ही बहाती रहेगी?
जवाब देंहटाएंअब समय आ गया है कि उसकी आँखों से विद्रोह की ऐसी चिंगारियां फूटें जिसमें कि अन्यायी जल कर राख हो जाए.
'उसके हिस्से की ज़मीन के साथ
जवाब देंहटाएंछीन ली जाती है भाषा भी
चुप्पी में भर दिए जाते हैं
मन-मुताबिक़ शब्द', -बहुत सुन्दर!
क्या-क्या उद्धरित किया जाए आपकी इस सुन्दर रचना से आ. अनीता जी! स्त्री-विमर्श पर बहुत ही मार्मिक रचना! समय के परिवर्तन के साथ ही पुरुष व समाज की सोच में बदलाव अवश्य आया है, किन्तु वांछित परिमार्जन तभी सम्भव हो सकेगा, जब औरत स्वयं अन्य औरत के प्रति मन में करुणा व न्याय-भाव को स्थान देगी।
सार्थक उपपत्ति।
हटाएंबिल्कुल सही कहा आपने।
जवाब देंहटाएंस्त्री संवेदनाओं को गहराई तक उभारती रचना।
जवाब देंहटाएंगहन सृजन।
स्त्री मन की वेदना की सराहनीय अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंप्रभावी एवं हृदय स्पर्शी सृजन।
जवाब देंहटाएंTest Your iq in 100iQ.fun
जवाब देंहटाएंआदरणीया मैम, बहुत ही सुंदर और मर्मांतक रचना । सच है , समाज और परिवार हर परिस्थिति में स्त्री को दोषी मान लेता है । स्त्री के जीवन में आए उस दुष्ट पुरुष को कोई कुछ नहीं कहता जो उसकी भावनाओं और विश्वास का खिलवाड़ कर, उसे असहाय और दुखी छोड़ देता है । यहाँ तक की अन्य महिलाएं भी उसी पर कलंक लगा देती हैं । पूरे समाज को कन्याओं और महिलाओं के प्रति संवेदनशील और जागरूक होने की आवश्यकता है । आपकी यह कविता बहुत भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी है । सादर प्रणाम आपको, साथ ही साथ एक अनुरोध भी , मैं ने एक नया ब्लॉग आरंभ किया है, चल मेरी डायरी । कृपया उस पर आ कर अपना आशीष दीजिए। मैं पुनः ब्लॉग -जगत में सक्रिय हो चुकी हूँ , अब से यहाँ नियमित आने का प्रयास करूँगी।
जवाब देंहटाएंस्त्री भाषा विशेष होती है क्योंकि उसमें प्रेम,ममत्व, भावुकता, समर्पण होते हैं। जिसने स्त्री की भाषा सुनी, समझी और सीखी, वह जीने का अर्थ समझ गया, सीख गया। पर अधिकतर लोगों को ये भाषा समझ नहीं आती, सही कहा आपने
जवाब देंहटाएं'परग्रही की भांति
धरती पर नहीं समझी जाती
स्त्री की भाषा'
इसीलिए अब स्त्री अपनी भाषा बदलेगी, वह वही भाषा बोलेगी जो लोगों को समझ आती है।
आदरणीया ,
जवाब देंहटाएं"सुख-दुख की परिभाषा परिवर्तित कर....
ऐसी ही पंक्तियाँ पढ़ने की सदा खोज रहती है , स्त्री के अंतस का उत्तम प्रकटीकरण हुवा है
"स्त्री की भाषा" की इस पुरातन जिजीविषा में आपको समर्थन सहित बहुत शुभकामनाएं !
जय श्री कृष्ण जी !