एहसास भर से स्मृतियाँ
बोल पड़ती हैं कहतीं हैं-
तुम सँभालकर रखना इसे
अकाल के उन दिनों में भी
खनक थी इसमें!
चारों ओर
सूखा ही सूखा पसरा पड़ा था
उस बखत भी इसमें सीलन थी।
गुलामी का दर्द
आज़ादी की चहलक़दमी
दोनों का
मिला-जुला समय भोगा है इसने।
अतीत के तारे वर्तमान पर जड़ती
यकायक मौन में डूब जाती थी।
क्या है इसमें ? पूछने पर बताती
विश्वास!
विश्वासपात्र के लिए।
नब्बे पार की उँगलियाँ
साँझ-सा स्पर्श
भोर की हथेलियों पर विश्वास के अँखुए
धीरे-धीरे टटोला करती थी ददिया सास।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
साँझ-सा स्पर्श, बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना सोमवार 19 दिसंबर 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
वाह बहुत ही सुन्दर रचना सखी
जवाब देंहटाएंगुलामी का दर्द
जवाब देंहटाएंआज़ादी की चहलक़दमी
दोनों का
मिला-जुला समय भोगा है इसने।
नब्बे पार की ददिया सास...
अनभवो का खजाना
लाजवाब सृजन ।
'गुलामी का दर्द
जवाब देंहटाएंआज़ादी की चहलक़दमी
दोनों का
मिला-जुला समय भोगा है इसने' - बहुत खूब...सुन्दर अभिव्यक्ति!
बहुत सुंदर सृजन प्रिय अनीता
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