माँ के पास शब्दों का टोटा
हमेशा से ही रहा है
वह कर्म को मानती है
कहती है-
”कर्मों से व्यक्ति की पहचान होती है
शब्दों का क्या कोई भी दोहरा सकता है।”
उसका मितभाषी होना ही
मेरी लिए
कविता की पहली सीढ़ि था
मौन में माँ नजर आती है
मैं हर रोज़ उसमें माँ को जीती हूँ और
माँ कहती है-
”मैं तुम्हें।”
जब भी हम मिलते हैं
हमारे पास शब्द नहीं होते
कोरी नीरवता पसरी होती है
वही नीरवता चुपचाप
गढ़ लेती है नई कविताएँ
माँ कविताएँ लिखती नहीं पढ़ती है
मुझ में
कहती है-
"तुम कविता हो अनीता नहीं।"
@अनिता सैनी 'दीप्ति'
माँ की भावनाएँ व्यक्त करने की सामर्थ्य शब्दों में कहाँ - और उन्हें समझ भी एक संवेदनशील मन ही सकता है- दोनो .की गहन पारस्परिकता !
जवाब देंहटाएंमाँ अक्सर कई बार भावनाओं में बहते हुए उभर आती है ...
जवाब देंहटाएंमाँ का प्रेम सदा साथ रहता है ...
नमस्ते.....
जवाब देंहटाएंआप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की ये रचना लिंक की गयी है......
दिनांक 29/01/2023 को.......
पांच लिंकों का आनंद पर....
आप भी अवश्य पधारें....
नमस्ते.....
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